SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 395
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सम्मति-तर्कप्रकरणम् यति, न ह्यनेनागमेन भगवतो वस्त्रवैकल्यमावेद्यते । ___किंच, यदि यो यद्विनेयः स तल्लिङ्गधारी, तदा भवतामिव भगवतोऽपि कमण्डलु-टट्टिकादिलिङ्गधारित्वप्रसक्तिः। अथ न दैवचरितमाचरितुं शक्यते इति तदगृहीतटट्टिकादिग्रहोऽस्माभिस्तव्यतिरेकेण महाव्रतधारणं कर्तुमशक्तकैराश्रीयते, तर्हि 'जारिसयं गुरुलिङ्गं सीसेण वि तारिसेण होयव्वं' () इत्याद्यभिनिवेशस्त्यज्यताम् । यदपि 'न च वस्त्राद्युपकरणाग्रहवत्सु प्रव्रज्यापरिणामः सम्भवति' इत्याभिधानम् तदप्यसंगतम् परिग्रहाग्रहवत्सु प्रव्रज्यापरिणामस्याऽस्माभिरप्यनिष्टेः। न च सर्वसावद्ययोगविरतिप्रतिज्ञानिर्वाहनिमित्तवस्त्रादिधर्मोपकरणयोगिषु परिग्रहाग्रहवत्त्वम्, अन्यथा शरीरयोगिष्वपि परिग्रहाग्रहवत्त्वं स्यात् । अथ तन्न परित्यक्तुं शक्यते इति, अविधानेन तत्परित्यागेऽनेकभवानुबन्धितदनुषक्तिप्रसक्तिः विधानपरित्यागस्तु तस्य प्रस्तुतविधिनैव तर्हि वस्त्राद्युपकरणत्यागेऽपि अयमेव विधिः, अन्यथा प्रव्रज्यापरिणामस्य प्रकृष्टफलनिवर्त्तकस्य वस्त्राधुपादानमन्तरेण असम्भवात्, तत्सम्भवे च शरीरत्यागवद् वस्त्रादित्याकर के भगवान ग्रामानुग्राम विचरते हैं – यह आगमवचन भगवान् के नग्नत्व को सूचित करता है। यथार्थवादी :- नहीं नहीं, उस आगम में दीक्षाग्रहण काल में भगवान की नग्नता का कतई सूचन नहीं है, वह सूत्र तो यह कहता है कि दीक्षा लेने के बाद भगवान् अपने देहादि में भी रागादि न रखते हुए विचरते हैं। यहाँ इस आगम में भगवान के वस्त्रत्याग का गन्ध भी नहीं है। यह भी सोचना चाहिये कि यदि ऐसा आग्रह रखा जाय कि जो जिस का शिष्य हो वह उसी के लिंग का अनुसरण करता है - तो जैसे आप कमण्डलू और टट्टिकादि को लिंगरूप में धारण करते हैं उस से तो यह सिद्ध होगा कि आप के गुरु तीर्थंकर भी कमण्डलू आदि यतिलिंग को धारण करते होंगे, क्योंकि आप के मत में तो शिष्य गुरु के लिंग का ही उपासक होता है, अर्थात् तीर्थंकर ने कमण्डलू आदि को धारण किया होगा, तभी आप उसे धारण करते होंगे। यदि कहा जाय – 'भगवान के लोकोत्तर आचरण का अनुकरण शक्य नहीं है इसलिये उन्होंने कमण्डलू आदि का ग्रहण नहीं किया था फिर भी हम दिगम्बर यतियों ने टट्टिका आदि का ग्रहण किया है क्योंकि उस के विना हमारे लिये महाव्रतों का पालन अशक्य है।' - अहो ! तब तो 'जैसा गुरु का लिंग हो वैसे ही लिंग का धारण शिष्य को करना चाहिये' ऐसे कदाग्रह को जलाञ्जलि देना ही उचित है। * वस्त्रधारकों में परिग्रहाग्रह का आपादान व्यर्थ * दिगम्बर ने जो यह कहा था – वस्त्रादि उपकरणों का आग्रह (कदाग्रह) रखनेवाले को प्रव्रज्या का परिणाम कभी उदित नहीं होता। - यह भी असंगत विधान है। यह तो हमें भी इष्ट नहीं है कि परिग्रह का कदाग्रह रखे उसे प्रव्रज्या का परिणाम प्रस्फुटित हो। लेकिन, जिन्होंने सर्व सावद्ययोग के त्याग की प्रतिज्ञा की है, उस प्रतिज्ञा के निर्वाह के लिये ही जिन्होंने वस्त्रादि धर्मोपकरणों को धारण किया है – उन योगी महात्माओं के ऊपर परिग्रह के आग्रह का आक्षेप ही गलत है। यदि संयमरक्षा के लिये वस्त्रादिधर्मोपकरणों के धारण में जिस को परिग्रह के आग्रह का दर्शन होता है उसे तो संयमपालन के लिये शरीरधारण में भी परिग्रह के आग्रह का दर्शन करना पड़ेगा। ___ यदि कहा जाय कि – शरीर का परित्याग अशक्य है। तथा, यदि अविधि से उस का त्याग जैसे तैसे आत्महत्यादि कर के किया जाय तो अनेक भवों की परम्परा में पुनः पुनः शरीर की जैल में फँसना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003805
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy