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________________ पञ्चमः खण्डः - का० ६५ ३६१ तस्याऽसिद्धम् - तर्हि आहारग्रहणेऽप्येतत् समानम्, सम्मुर्छनाद्यनेकजन्तुसम्पातहेतुत्वस्य तत्परिभोगनिमित्ततद्विनाशस्य च तत्रापि सम्भवात् । तथाहि – संभवन्त्येवागन्तुकाः सम्मूर्छनजाश्चानेकप्रकाराः तत्र जन्तवः, तत्परिभोगे चावश्यंभावी तेषां विनाशः। भुक्तस्य च तस्य कोष्ठगतस्य संसक्तिमत्त्वात् तदुत्सर्गेऽनेककृम्यादिसत्त्वव्यापत्तिरवश्यंभाविनी। ____ अथ विधानेन तत्परिभोगादिकं विदधतो न सत्त्वव्यापत्तिः, व्यापत्तौ वा शुद्धाशयस्य तद्रक्षादौ यत्नवतो गीतार्थस्य ज्ञानादिपुष्टालम्बनप्रवृत्तेरहिंसकत्वात् न तद्ग्रहणं मुक्तिमार्गविरोधि – तर्हि वस्त्रादिग्रहणमप्येवं क्रियमाणं कथं मुक्तिमार्गविरोधि स्यात् ? अथ वस्त्रादेर्मलदिग्घस्य क्षालनेऽप्कायादिविनाशः यथासम्भव अनन्तजीवघातहेतु अग्निप्रज्वालन आदि शास्त्रनिषिद्ध चेष्टा करते हुए दिखाई देते हैं। तथा, जो अग्निप्रज्वलनादि नहीं करते वे भी शीतादिवेदना सहन न होने से आर्त्तध्यान कर के आत्महिंसा करने द्वारा अविरति तक नीचे उतर जाते हैं ऐसे भी बहत दिगम्बर देखे जाते हैं - अतः उन में असाधता मानना न्यायसंगत हैं। दिगम्बर :- जब शरीर के किसी अंग में खतरनाक ग्रन्थि-फोडादि हो जाता है और उस की वेदना असह्य बन जाती है तब उस का छेद-दाहादि करना पड़ता है। जो दर्दी उस छेद-दाह आदि से होनेवाली पीडा को सहन नहीं कर पाता वह उस फोडा आदि से होने वाली भयंकर पीडा का अन्त नहीं कर सकता। ठीक इसी तरह शीतादिवेदना को सहन न कर सकनेवाला पूरे संसार के दुःखो का अन्त नहीं कर सकता। अतः वस्त्रादिग्रहण नहीं करना चाहिये। श्वेताम्बर :- और आगे समानरूप से यह भी बोलिये कि जो क्षुधावेदना को सहन नहीं कर सकता वह भी संसार के दुःखो का अन्त नहीं कर सकता। अतः आहार ग्रहण भी यति को नहीं करना चाहिये । - यह अनिष्टापादन है। ___ दिगम्बर :- आहारग्रहण मुक्तिमार्ग का विरोधि न होने से निर्दोष है। श्वेताम्बर :- तो ऐसे ही वस्त्रादि धर्मोपकरण का ग्रहण मुक्तिमार्ग का विरोधि न होने से निर्दोष क्यों नहीं मानते ? दिगम्बर :- वस्त्रादि पहनेंगे तो वह शरीर के मल से मलिन होगा, फिर उस में जूं आदि अनेक सम्मूर्छिम जीवों का उद्भव होगा। ऐसे वस्त्रों को पहनने से अवश्यमेव उन जीवों की विराधना होगी, इस प्रकार वस्त्रादि का ग्रहण विराधनाहेतु होने से मुक्तिमार्ग का विरोधी है, मुक्तिमार्ग का अविरोधित्व उस में असिद्ध है। श्वेताम्बर :- आहार ग्रहण करेंगे तो उस में भी कृमि आदि अनेक संमूर्छिम जीवों का उद्भव होगा, ऐसे आहार का भक्षण करने पर उन जीवों की विराधना भी होगी। अथवा पेट के अंदर बिमारी के कारण गृहीत आहार में कृमि आदि जीवों का उद्भव और उन की विराधना भी होगी। तब आहारग्रहण में भी वह विराधना | देखिये - आहार में तो आगन्तक मक्खी आदि सक्ष्म जन्त का पात एवं संमर्छिम अनेक प्रकार के जीवों का उद्भव होता है। ऐसे आहार को खाने पर उन का विनाश अवश्य होगा। तदुपरांत, वह खाया हुआ भोजन जब उदर में जायेगा तो वहाँ भी अनेक सूक्ष्म जीवों की संसक्ति (=उद्भव) होगी जैसे विष्ठा में होती है। जब दिगम्बर यति मलोत्सर्ग करेगा तब कृमि आदि अनेक जीवों का घात भी अवश्य होगा। अतः आहारग्रहण भी मुक्तिमार्ग का विरोधि मानना पड़ेगा। . जयपुर (राज.) में जब चातुर्मास था तब तलाश करवाने पर पता चला था कि जाडे की मौसम में उन के आश्रयस्थानों में रात को चारो कोने में सगडीयाँ जलाई जाती थी। अतः व्याख्याकार का कथन अनुभव से सत्य प्रतीत होता है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003805
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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