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________________ श्री सम्मति - तर्कप्रकरणम् विद्यमानार्थगोचरत्वं चोदनायाः स्यात् तथा च 'त्रिकालशून्यकार्यरूपार्थविषयविज्ञानोत्पादिका चोदना' इत्यभ्युपगमव्याघातः । अपि च वाक्यार्थमवबोधयन्तः पदार्था किं शब्दप्रमाणतयाऽवबोधयन्ति उतानुमानत्वेन आहोस्वित् 'अर्थापत्तितः उतस्वित् प्रमाणान्तरत्वेनेति विकल्पाः । यद्याद्यो विकल्पः स न युक्तः पदार्थानामशब्दात्मकत्वात्। `अथ द्वितीयः सोऽपि न युक्तः, पदार्थानां वाक्यार्थाविनाभावित्वेन प्रागप्रति - पत्तेः : अनुमानानवतारात् । न च वाक्यार्थस्य प्रमाणान्तराऽगोचरत्वात् पदार्थव्यापकताऽनवगता अनुमानगोचरः, अन्यत्रापि तथाभावप्रसक्तेः । वाक्यार्थविनाभावित्वावगमे वा पदार्थानां चोदनाया अनुवादरूपताप्रसक्तेरप्रामाण्यानुषङ्गः । न च पदार्थानां पक्षधर्मता क्वचिदवगम्यते। न च तदवगमव्यतिरेकेणानुमानप्रवृत्तिः। न चार्थापत्तिरूपत्वेन पदार्था वाक्यार्थमवबोधयन्ति ‘चोदनालक्षणोऽर्थो ३४० सभी दोष मिल कर इस पक्ष में प्रसक्त होंगे। ( अथवा सापेक्षरूप से उभयात्मक मानने पर अनेकान्तवादप्रवेश प्रसक्त होगा।) यदि ‘भाव या अभाव में से एक भी नहीं' यह चौथा विकल्प माना जाय तो चोदनाजन्य ज्ञान विषयशून्य बन कर रहेगा क्योंकि भाव या अभाव कोई भी उस का विषय नहीं है । यदि कहा जाय पदार्थ पहले वाक्यार्थ को उत्पन्न करते हैं बाद में उस के ज्ञापक बनते हैं। तो यह भी असंगत है, क्योंकि तब वाक्यार्थ उत्पन्न यानी विद्यमान होने से उस की ज्ञापक चोदना विद्यमानार्थविषयक बन जायेगी और विद्यमानार्थग्राहकप्रत्यक्षादि से अधिगत अर्थ को गोचर करने से चोदना अप्रमाण बन जायेगी। ये सब ^ अनित्यपक्ष में विकल्प हुए । पदार्थों के द्वारा यदि नित्य वाक्यार्थ का प्रतिपादन माना जाय तो चोदना, नित्य यानी 'सदा विद्यमान' अर्थ की अवगाहिनी हो जायेगी । इस स्थिति में आपने जो माना है 'चोदना तो कालत्रयशून्य कार्यात्मक अर्थविषयक विज्ञान को उत्पन्न करती है' उस को चोट पहुँचेगी। - * वाक्यार्थज्ञापक पदार्थ कौन सा प्रमाण ? * १ - ‘शब्दप्रमाण यह भी विचार किया जाय - वाक्यार्थ का अवबोध करानेवाले पदार्थ कौन सा प्रमाण है ? हो कर वे वाक्यार्थप्रकाशक होते हैं ? या अनुमान प्रमाण हो कर ? 'अथवा अर्थापत्ति हो कर ? या अन्य कोई प्रमाण बन कर ? ३ 'पहला विकल्प अयुक्त है क्योंकि पदार्थ शब्दात्मक नहीं होते। दूसरा विकल्प भी युक्त नहीं है क्योंकि अनुमिति के पहले वाक्यार्थ के साथ पदार्थो का अविनाभाव गृहीत होना चाहिये किन्तु वह गृहीत नहीं है। इस लिये अनुमान का अवतार अशक्य है । यदि कहा जाय कि वाक्यार्थ में पदार्थों की व्यापकता यानी वाक्यार्थ के साथ पदार्थों का अविनाभाव ही अनुमान का विषय मानते हैं, क्योंकि अन्य किसी प्रमाण से उस का बोध सम्भव नहीं है अतः अनुमानप्रमाण का ही यहाँ अवतार मानना होगा – तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि अन्य अग्नि आदि अनुमानस्थल में भी आँख मुँद कर ऐसा कहा जायेगा कि अग्नि की व्यापकता आदि अन्य प्रमाण गोचर न होने से अनुमान का ही वहाँ अवतार मानना होगा, फिर उस की व्यापकता भले अनुमानागोचर हो। यदि किसी तरह पदार्थों में वाक्यार्थ के साथ अविनाभाव का ग्रहण अनुमान से हो जाय तो वाक्यार्थ के अनुमानगम्य हो जाने पर चोदना में अनुवादरूपता की प्रसक्ति के द्वारा अप्रामाण्य प्रसक्त होगा । यह भी ज्ञातव्य है कि पक्षधर्मता का ज्ञान न होने पर अनुमान नहीं होता है वाक्यार्थबोध के समय किसी को यह एहसास नहीं होता कि ये पदार्थ पक्षधर्म यानी हेतु हैं, यहाँ पक्षधर्मता का ज्ञान न होने पर भी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003805
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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