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________________ पञ्चमः खण्डः का० ६३ पदार्थास्तस्योत्पादकास्त एव यदि ज्ञापकास्तदा पूर्वं किं ज्ञापका उतोत्पादका" इति वक्तव्यम्“यदि प्राक् ज्ञापकाः तदा तदुत्पादितं ज्ञानमविद्यमानवाक्यार्थविषयत्वात् केशोन्दुकादिज्ञानवत् अप्रमाणं स्यात्। ‘कर्त्तव्यतया ते तं ज्ञापयन्ति' इति चेत् ? न, तस्यामपि भावाभावोभयानुभयविकल्पानतिक्रमात्। 'आद्यविकल्पे तत्कर्त्तव्यताया भावस्वभावतया विद्यमानवाक्यार्थविषया चोदना स्यात्, तथा च विद्यमानोपलम्भनत्व-तत्सम्प्रयोगजत्वोपपत्तेरध्यक्षवद् न भावनाऽर्थविषया स्यात् । 'अथाभावस्वभावा कर्त्तव्यता । न, अभावस्य तुच्छतया कर्तुमशक्तेः । अतुच्छत्वेऽपि स्वेन रूपेण विद्यमानत्वात् कर्त्तव्यताऽसम्भवात् । न चाभावविषयं चोदनायाः परैः प्रामाण्यमभ्युपगम्यते, अभावप्रमाणविषयत्वाच्चाभावस्य तद्विषयत्वे चोदनायाः अनुवादकत्वात् अप्रामाण्यप्रसङ्गश्च । 'न चोभयाकारताऽपि, उभयदोषप्रसक्तेः । ' अनुभयविकल्पेऽपि चोदनाजनितज्ञानस्य निर्विषयताप्रसक्तिः । अथ ते तं प्राग् उत्पादयन्ति पश्चाद् ज्ञापयन्तीत्यभ्युपगमः सोऽपि अनुपपन्नः विद्यमानार्थविषयत्वेन चोदनायाः प्रत्यक्षाद्यवगतार्थगोचरत्वादप्रामाण्यप्रसक्तेः । अथ नित्यो वाक्यार्थः पदार्थैः प्रतिपाद्यते । नन्वेनं - पदार्थ चैत्र है और ‘पचति' का पदार्थ है पाकक्रियानुकुल कृति, अब वाक्यार्थ होगा क्रिया में कारक का संसर्ग, यानी चैत्र का पाकक्रिया के साथ जो संसर्ग भासित होता है वही वाक्यार्थ है । तो यहाँ दो विकल्प होगे कि यह वाक्यार्थ अनित्य है या B नित्य ? यदि अनित्य है तो कारकसम्पाद्य है या पदार्थसम्पाद्य ? कारक सम्पाद्य है ऐसा मानेंगे तो आप का सिद्धान्तरूपी यमराज कोपायमान होगा, क्योंकि आप के मत में वाक्यार्थ कारकसम्पाद्य नहीं पदार्थसम्पाद्य ही माना गया है। यदि यह दूसरा विकल्प मान लेंगे तो यहाँ विकल्प है। जो पदार्थ वाक्यार्थ के उत्पादक हैं वे ही यदि उस के ज्ञापक माने जाय तो पहले वे उस के ज्ञापक हैं और बाद में उत्पादक ? क्या पहले उत्पादक और बाद में ज्ञापक ? Jain Educationa International ३३९ - * असत् वाक्यार्थ की ज्ञापकता के ऊपर विविध विकल्प * प्रथम विकल्प 'यदि कहा जाय कि पदार्थ पहले वाक्यार्थ का ज्ञापक हैं, बाद में उत्पादक; तो यहाँ ज्ञापक पदार्थों से वाक्यार्थ का ज्ञान वाक्यार्थ की असदवस्था में उत्पन्न हो जाने से केशोण्डुकादि असत् पदार्थ के ज्ञान की तरह अविद्यमान विषय स्पर्शी होने से प्रमाणभूत नहीं होगा । यदि ऐसा कहा जाय कि 'ज्ञापक पदार्थ वाक्यार्थ को कर्त्तव्यरूप से परिचित कराता है अतः अप्रमाण नहीं हो सकता।' तो यहाँ भी चार विकल्प हैं। ज्ञात करायी जाने वाली कर्त्तव्यता उस समय 'भावात्मक सद्रूप है ? 'या अभावात्मक है ? या 'उभयात्मक है? या 'अनुभयात्मक ? कर्त्तव्यता भावात्मक होने से उस की ज्ञापक चोदना विद्यमानवाक्यार्थविषयक हो जायेगी । वाक्यार्थ विद्यमान होने से उस के ज्ञान में विद्यमान का उपलम्भकत्व और सत् - संनिकर्षजन्यत्व भी घट सकता है जैसे कि प्रत्यक्षज्ञान में होता है। इस स्थिति भावना अर्थस्पर्शी यानी प्रमाणभूत नहीं रहेगी, क्योंकि भावना तो असिद्धसाधनस्पर्शी होती है । यदि कर्त्तव्यता को अभावात्मक मानी जाय तो वह भी संगत नहीं है क्योंकि तुच्छ होने अभाव कर्त्तव्यरूप नहीं हो सकता । यदि तुच्छस्वरूप न हो कर वह अन्य कोई स्वरूप से है तो वह जिस स्वरूप से विद्यमान है उस स्वरूप से सिद्ध होने के कारण कर्त्तव्यभूत नहीं हो सकता। दूसरी बात यह है कि अभाव तो अभावप्रमाण का विषय होता है, चोदनागोचर नहीं हो सकता अत एव अभाव के विषय में मीमांसको ने चोदना को प्रमाण नहीं माना है । यदि चोदना को भी अभावविषयक मानेंगे तो चोदना अभावप्रमाणाधिगत अभाव की अनुवादक मात्र ही हो जाने से उस में अप्रामाण्य प्रसक्त होगा । तीसरे विकल्प में यदि कर्त्तव्यता को भाव- अभाव उभयस्वरूप माना जाय तो एक-एक पक्ष में कहे गये For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003805
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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