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पञ्चमः खण्डः - का० ४
तापत्तेः, अन्यथा तद्रूपतया तयोस्तत्सत्त्वाऽसम्भवात् - त्रैकाल्याऽयोगात् तस्य तद्विशिष्टतानुपपत्तेस्तथाभूतार्थप्रतिपादकं वचनमप्रतीत्यवचनमेवेत्याशंक्याह -
दव्वं जहा परिणयं तहेव अत्थि त्ति तम्मि समयम्मि ।
विगय-भविस्सेहि उ पज्जएहिं भयणा विभयणा वा ॥४॥ . द्रव्यं = चेतनाचेतनम् यथा = तदाकारार्थग्रहणरूपतया घटादिरूपतया वा परिणतं वर्तमानसमये तथैव अस्ति । विगत-भविष्यद्भिस्तु पर्यायैर्भजना = कथंचित् तैस्तस्यैकत्वम्, विभजना = विगतभजना नानात्वं कथंचित्, 'वा' शब्दस्य कथंचिदर्थत्वात् । ततः प्रत्युत्पन्नपर्यायस्य विगतभविष्यद्भ्यां न सर्वथैकत्वमिति कथं तत्प्रतिपादकवचनस्याऽप्रतीत्यवचनतेति भावः ॥४॥ ननु घटादेरर्थस्य कैः पर्यायैरस्तित्वं अनस्तित्वं वा ? इत्याह -
* अतीत-अनागत काल में वर्तमानत्व की आपत्ति * शंका :- वर्तमान पर्याय का अतीतानागत पर्यायों के साथ अभेद दिखाया गया, उस के ऊपर यह शंका हो सकती है कि अतीत-अनागत काल में अगर वर्तमान कालीन पर्याय की सत्ता स्वीकार लेंगे तो अतीतकाल और अनागत काल अतीतत्व-अनागतत्व को छोड कर वर्त्तमानरूप बन जाने की विपदा होगी । कारण, अतीतअनागत काल में अतीत-अनागतरूप से वर्तमानपर्याय की सत्ता की आधारता सम्भव नहीं है इसलिये वर्तमानताप्राप्त अतीतानागत काल में ही वर्तमान पर्याय की सत्ता हो सकती है । फलतः काल में अतीतत्व-अनागतत्व का भंग हो कर सिर्फ वर्त्तमानत्व ही शेष रहने से त्रैकाल्य का योग नहीं रह पायेगा; तब वर्तमानपर्याय में अतीतकालवैशिष्ट्य या अनागतकाल वैशिष्ट्य भी नहीं रह पायेगा । तात्पर्य, वर्तमानपर्याय की अतीतादिकाल में सत्ता प्रदर्शित करनेवाला वचन भी अप्रतीत्यवचन है ।। उत्तर :- इस शंका को मन में रख कर ग्रन्थकार चौथी गाथा में कहते हैं -
* वर्तमानत्व की आपत्ति का निराकरण * मूल गाथा शब्दार्थ :- द्रव्य जिसरूप में परिणत होता है उस काल में वह वैसा ही होता है । विगतभविष्यत् पर्यायों के साथ भजना अथवा विभजना होती है ।
व्याख्या :- द्रव्य कोई भी हो चेतन या अचेतन, वह वर्तमानकाल में (क्रमशः) देतन है तो किसी एक अर्थाकार ग्रहण के रूप में, और अचेतन है तो घटादिरूप में, जैसा परिणत होता है वैसा ही उस काल में वास्तविक होता है । यानी उस रूप से उसका पूरा अभेद होता है । जब कि विगत-भविष्यत् पर्यायों के साथ उस द्रव्य की भजना यानी कथंचिद् एकत्व अथवा विभजना यानी कथंचित् भिन्नता होती है । मूलगाथा में जो अंतिम 'वा' शब्द है उसका यहाँ 'कथंचित्' ऐसा अर्थ लिया गया है । तात्पर्य यह है कि वर्तमान पर्याय का अतीतानागत पर्यायों के साथ एकद्रव्याश्रय के रूप में अभेद होने पर भी सर्वथा अभेद नहीं है, यानी काल से भी अभेद है ऐसी बात नहीं है, काल से तो कथंचित् भिन्नता ही है । इसलिये शंकाकार की अतीतानागत काल में वर्तमानतापत्ति की शंका निर्मूल हो जाती है । इस स्थिति में वर्तमान पर्याय का अतीतअनागत पर्याय से अभेद प्रदर्शित करनेवाले वचन को अप्रतीत्यवचन कैसे कहा जा सकता है ?! ॥४॥
'तम्मि समयम्मि' इत्यस्य व्याख्या 'वर्तमानसमये' इति ।
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