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________________ पञ्चमः खण्डः - का० ६३ विशेष-समवाया न वाच्याः । एवं प्रमाण-प्रमेय-संशय-प्रयोजन-दृष्टान्त-सिद्धान्तावयव-तर्क-निर्णय - वाद-जल्प-वितण्डा-हेत्वाभास-छल-जाति-निग्रहस्थानानि च न पृथगभिधानीयानि। तथा, प्रकृतेर्महान् महतोऽहंकारस्तस्माद् गणश्च षोडशकः। - तस्मादपि षोडशकात् पञ्चभ्यः पञ्च भूतानिः।। (सांका० २२) चतुर्विंशतिः पदार्थाः पुरुषश्चेति न वक्तव्यम् । तथा, दुःख-समुद(दा?) य-मार्ग-निरोधाश्चत्वारि आर्यसत्यानीति न वक्तव्यम् । तथा 'पृथिवी आपः तेजः वायुः इति तत्त्वानि' इति न वक्तव्यम् । तत्प्रभेदरूपतयाऽभिधानेऽपि न दोषो जात्यन्तरकल्पनाया एवाघटमानत्वात्, राशिद्वयेन सकलस्य जगतो व्याप्तत्वात् तदव्याप्तस्य शशशृङ्गतुल्यत्वात्। शब्दब्रह्मायेकान्तस्य च प्राक् प्रतिषिद्धत्वात्, अबाधितरूपोभयप्रतिभासस्य तथाभूतवस्तुव्यवस्थापकस्य प्रसाधितत्वात्, विद्याऽविद्याद्वयभेदात् द्वैतकल्पनायामपि त्रित्वप्रसक्तेः, बाह्यालम्बनभूतभावापेक्षया विद्यात्वोपपत्तेः। अन्यथा निर्विषयत्वेन उभयोरविशेषात् तत्प्रतिभागस्याऽघटमानत्वात् । न हि द्वयोर्निरालम्बनत्वे विपर्यस्ताऽविपर्यस्तज्ञानयोरिव विद्यात्वाऽविद्यात्वभेदः। ततो नाऽद्वयं वस्तु, नापि तद्व्यतिरिक्तमस्ति। रखते हुए कभी वे उपलब्धिगोचर नहीं होते। यह अनुभवसिद्ध है कि द्रव्य-गुणादि पदार्थ या तो जीव-अभिन्न हैं या अजीव-अभिन्न हैं। यदि वे जीवाजीव इन दोनों से भिन्न होंगे तो उन को शशसींग की भाँति असत् कक्षा में जाना पडेगा। कहने का तात्पर्य यह है कि जीव या अजीव से सर्वथा पृथक् विजातीय रूप से द्रव्य-गुण-कर्म-सामान्य-विशेष और समवाय का निर्वाचन नहीं करना चाहिये। नैयायिकों ने १६ पदाथों की सूचि बनायी है – प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टान्त, सिद्धान्त, अवयव, तर्क, निर्णय, वाद-जल्प-वितण्डा, हेत्वाभास, छल, जाति और निग्रहस्थान । किन्तु जीव-अजीव से पृथक् इन का निर्वाचन-परिगणन करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इन सभी का अन्तर्भाव जीव या अजीव में अभेदभाव से हो जाता है। * सांख्य-बौद्ध-वेदान्त दर्शन के पदार्थों का निराकरण * तथा, सांख्यमत में २५ पदार्थ गिनाये हैं। पुरुष और प्रकृति ये दो मुख्य पदार्थ हैं। प्रकृति से महत् (बुद्धि) तत्त्व का जन्म होता है, बुद्धि से अहंकार और अहंकार से अन्य षोडशवर्ग का जन्म होता है :पाँच सूक्ष्मभूत (तन्मात्रा) - पृथ्वी-जल-अग्नि-वायु-आकाश, पांच ज्ञानेन्द्रिय-स्पर्शन-रसना-घ्राण-नेत्र-श्रोत्र, पाँच कर्मेन्द्रिय- पाणि, पाद, पायु, उपस्थ और वाक्, सोलहवाँ मन है। षोडशवर्ग-अन्तर्गत पाँच सूक्ष्मभूतों से पाँच स्थूल भूतों का पञ्चीकरणप्रक्रिया से जन्म होता है। एक पुरुष और प्रकृति आदि २४, सब मिला कर २५ पदार्थ होते हैं। ये सब पुरुष और प्रकृति अथवा जीव और अजीव पदार्थों में समाविष्ट हो जाते हैं, अतः उनका स्वतन्त्र पदार्थरूप से परिगणन ठीक नहीं है। तथा, बौद्धमत में, पदार्थ के रूप में चार आर्यसत्यों का निरूपण किया गया है दुःख, समुदय, मार्ग और निरोध। इन का भी अन्तर्भाव जीवाजीवयुगल में हो सकता है इस लिये अलग कहने की जरूर नहीं है। नास्तिक लोग पृथ्वी-जल-तेज और वायु ये चार पदार्थ कहते हैं, किन्तु (जीव या) अजीव में उस का समावेश हो जाने से पृथक् दिखाने की जरूर नहीं है। हाँ, यदि द्रव्य-गुण आदि को, या महत्-अहंकार आदि को जीव या अजीव के उपभेदों के रूप में कहा जाय तो कोई हरकत नहीं है। हम तो इतना कहते है कि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003805
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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