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श्री सम्मति - तर्कप्रकरणम्
उत्तरकालभाविनोऽसिद्धत्वात् सर्वसम्बन्धिनस्तादात्विकस्योत्तरकालभाविनश्चासिद्धत्वात् । न ह्यर्वादृशा ‘सर्वत्र सर्वदा सर्वेषामत्र बाधकस्याभावः' इति निश्चेतुं शक्यम् तन्निश्चयनिबन्धनस्याभावात् । नानुपलम्भस्तन्निबन्धनः सर्वसम्बन्धिनस्तस्याऽसिद्धत्वात्, आत्मसम्बन्धिनोऽनैकान्तिकत्वात्, न संवादस्तन्निबन्धनः प्रागनुमानप्रवृत्तेस्तस्याऽसिद्धेः, अनुमानोत्तरकालं तत्सिद्ध्यभ्युपगमे इतरेतराश्रयदोषप्रसक्तेः । तथाहि अनुमानात् प्रवृत्तौ संवादनिश्चयः ततश्चाबाधितत्वावगमेऽनुमानप्रवृत्तिरिति परिस्फुटमितरेतराश्रयत्वम् । न चाऽविनाभावनिश्चयादप्यबाधितविषयत्वनिश्चयः, पञ्चलक्षणयोग्यविनाभावपरिसमाप्तिवादिनामबाधितविषयत्वानिश्चयेऽविनाभभावनिश्चयस्यैवाऽसम्भवात् । यदि च प्रत्यक्षागमबाधितकर्मनिर्देशानन्तरप्रयुक्तस्यैव कालात्ययापदिष्टत्वम् तर्हि 'मूर्खोयं देवदत्तः त्वत्पुत्रत्वात् उभयाभिमत-त्वत्पुत्रवत्' इत्यस्यापि गमकता स्यात्। न हि सकलशास्त्रव्याख्यातृत्वलिङ्गजनितानुमानबाधितविषयत्वमन्तरेणान्यदध्यक्षतो आप वहाँ नहीं मान सकते क्योंकि हेतु को बाधित दिखाने के लिये आपने तीन रूपों का तो उस में स्वीकार कर लिया है। हाँ, यदि आप यहाँ तीन रूपों के सद्भाव का अस्वीकार कर देते हैं तो त्रैरूप्य के अभाव से ही एकशाखोत्पत्ति हेतु में साधकता का निरसन हो जाने से प्रत्यक्ष बाध दोष का अंगीकार निरर्थक ठहरता है । * अबाधितत्व हेतु का लक्षण दुर्घट है
जैसे पक्षवृत्तित्वादि तीन, हेतु के लक्षण हैं वैसे अबाधितविषयता हेतु का लक्षण सम्भव नहीं है । कारण, उस का निश्चय अशक्य है और जैसे पक्षवृत्तित्वादि तीन के निश्चय के विना वे तीन साधकता के अंग नहीं बन सकते वैसे अबाधितविषयता भी अनिश्चित होने पर साधकता का अंग नहीं बन सकती। अबाधितविषयता का सत्य निश्चय सम्भव नहीं है – कैसे, यह देखिये अपना यानी अनुमान करने वाले का अबाधितत्वनिश्चय वहाँ काम आयेगा या सर्वजनों का वैसा निश्चय वहाँ काम आयेगा ? जिस समय में ज्ञाता अनुमान कर रहा है उस समय जो स्वयं उस को अबाधितत्व का निश्चय है वह साधकता का अंग माना जाय तो वैसा निश्चय असत् अनुमान के काल में भी हो सकता है, अतः अतिव्याप्ति प्रसक्त होगी । यदि अनुमान के उत्तरकाल में अबाधितत्व का निश्चय उस ज्ञाता को होगा तो वह भी काम में नहीं आयेगा क्योंकि अनुमानकाल में जब उस की माँग है तब तो वह असिद्ध है । सर्वजनों का अबाधितत्व निश्चय न तो अनुमान काल में हो सकता है, न अनुमान के उत्तरकाल में, अतः वह तो सर्वथा बेकार है । अल्पज्ञ पुरुष को कभी भी ऐसा निश्चय होना सम्भव नहीं है कि 'सभी लोगों को समस्त काल में सर्वथा बेकार है । बाधक की अनुपस्थिति रहती है।' ऐसा निश्चय होने के लिये कोई उपाय होना चाहिये किन्तु वह नहीं है । बाधक का अनुपलम्भ मात्र यहाँ उपायभूत नहीं है क्योंकि सभी लोगों को बाधक का अनुपलम्भ ही हो ऐसा सिद्ध नहीं है। सिर्फ अनुमानकर्त्ता का ही बाधक का अनुपलम्भ तो असत् अनुमानस्थल में भी होने से वह अनैकान्तिक है, अर्थात् निरुपयोगी है। यदि कहा जाय कि • संवादरूप उपाय से बाधकाभाव का निश्चय कर के अनुमान हो सकेगा - तो यह भी शक्य नहीं है क्योंकि अनुमान के पहले तो वैसा संवाद असिद्ध है। अनुमान के पहले वैसा कोई बाधकाभावविषयक संवादी ज्ञान या प्रवृत्ति प्राप्त नहीं है कि जिस से यहाँ बाधकाभाव का निर्णय हो सके । कदाचित् अनुमान के उत्तर काल में संवादीप्रवृत्तिस्वरूप संवाद सिद्ध माना जाय तो वह भी अनुमान के लिये निरर्थक होगा क्योंकि वहाँ अन्योन्याश्रय दोष लग जायेगा अनुमान होने के बाद प्रवृत्ति के द्वारा संवादनिश्चय होगा और संवादनिश्चय के आधार पर अबाधितत्व निश्चय होने से अनुमान प्रवृत्त होगा । स्पष्ट ही यहाँ संवादनिश्चय और अनुमान में अन्योन्याश्रय हो जाता है ।
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