SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 290
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पञ्चमः खण्डः - का० ५६ २६५ किञ्च, अध्यक्षागमयोः कुतो हेतुविषयबाधकत्वमिति वक्तव्यम् । 'स्वार्थाऽसम्भवे तयोरभावादिति चेत् ? हेतावपि सति त्रैरूप्ये तत् समानमित्यसावपि तयोर्विषये बाधकः स्यात् ; दृश्यते हि चन्द्रार्कादिस्थैर्यग्राह्यध्यक्षं देशान्तरप्राप्तिलिङ्गप्रभवतद्गत्यनुमानेन बाध्यमानम् । अथ तत्स्थैर्यग्राह्यध्यक्षस्य तदाऽऽभासत्वाद् बाध्यत्वं तर्खेकशाखाप्रभवत्वानुमानस्यापि तदाऽऽभासत्वाद् बाध्यत्वमित्यभ्युपगन्तव्यम् । न च "एवमस्तु' इति वक्तव्यम् यतस्तस्य तदाभासत्वं किमध्यक्षबाध्यत्वात् उत त्रैरूप्यवैकल्यात् ? न तावदाद्यः पक्षः, इतरेतराश्रयदोषसद्भावात् – तदाभासत्वेऽध्यक्षबाध्यत्वम् ततश्च तदाभासत्वमित्येकाऽसिद्धावन्यतराप्रसिद्धेः। नापि द्वितीयः, त्रैरूप्यसद्भावस्य तत्र परेणाभ्युपगमात्, अनभ्युपगमे वा तत एव तस्याऽगमकतोपपत्तेरध्यक्षबाधाभ्यपगमवैयर्थ्यात् । न चाऽबाधितविषयत्वं हेतुलक्षणमुपपन्नम् त्रैरूप्यवनिश्चितस्यैव तस्य गमकाङ्गतोपपत्तेः। न च तस्य निश्चयः सम्भवति, स्वसम्बन्धिनोऽबाधितत्वनिश्चयस्य तत्कालभाविनोऽसम्यगनुमानेऽपि सद्भावात् * कालात्ययापदिष्ट के लक्षण में असंगतियाँ * कालात्ययापदिष्ट का जो लक्षण कथन किया गया है वह गलत है। जब तीनरूपों का सद्भाव प्रमाणसिद्ध हो तब हेतु के साध्य विषय में प्रतिबन्ध (= बाध) होना सम्भव नहीं है। साध्यप्रतिबन्ध और हेतु के तीन रूप - उन में पक्का विरोध है। कैसे, यह हेतु के तीन रूपों के स्वरूप को खोलने से पता चलेगा - 'साध्य के होने पर ही हेत का होना' यही त्रैरूप्य है. 'हेत का होना' इस से १ पक्षवत्तित्व और 'साध्य के होने पर ही' इस अंश से २ सपक्ष वृत्तित्व और ३ विपक्षव्यावृत्ति दोनों का सद्भाव प्रसिद्ध हो जाता है। दूसरी ओर साध्य के न होने पर ही हेतु का रह जाना – यह बाध है, एक में भावात्मक साध्य है दूसरे में साध्य का अभाव है और एक स्थल में इन दोनों में स्पष्ट विरोध है। यह भी सोचना चाहिये कि हेत के साध्यात्मक विषय में प्रत्यक्ष और आगम का बाध किस ढंग से हो सकता है ? यदि यह उत्तर हो कि जब वहाँ स्वविषयात्मक पदार्थ नहीं होता तब तद्विषयक प्रत्यक्ष या आगम लब्धप्रसर नहीं होता, इसी से उन दोनों का बाध कहा जाता है। यही उत्तर हेतु के बारे में समान है, हेतु में भी त्रैरूप्य तब विद्यमान होता है जब अपना विषय विद्यमान हो, अतः त्रैरूप्य के होने पर प्रत्यक्ष या आगम हेतु के साध्यात्मक विषय का बाध नहीं करेगा, उलटा हेतु ही उन दोनों का (प्रत्यक्ष-आगम का) बाध करेगा। यह दिखता तो है कि चन्द्र और सूर्य स्थिर हो ऐसा प्रत्यक्ष होने पर भी देशान्तरप्राप्ति हेतुक गति के अनुमान से उस प्रत्यक्ष का बाध होता है, यानी चन्द्र और सूर्य गतिशील सिद्ध होते हैं। यदि यहाँ कहा जाय कि उन की स्थिरता का ग्राहक प्रत्यक्ष प्रत्यक्षाभास होता है इस लिये उस का अनुमान से बाध होता है - तो प्रस्तुत बाध के उदाहरण में भी कहा जा सकता है कि आम्रफल में जो पक्वता का अनुमान है वह अनुमानाभास है इस लिये एकशाखोत्पाद हेतु से होने वाले पक्वता के अनुमान में प्रत्यक्ष का बाध हो सकेगा। ___हाँ, ऐसा ही मान लिजिये' ऐसा भी आप यहाँ नहीं कह सकते, क्योंकि यहाँ दो विकल्पप्रश्न प्रसक्त हैं, वह अनुमान प्रत्यक्षबाध्य होने से अनुमानाभास सिद्ध होगा या तीन रूपों के न होने से ? प्रथम पक्ष तो अन्योन्याश्रय दोष होने से स्वीकारयोग्य नहीं है – क्योंकि उस के अनुमानाभासत्व की सिद्धि होने पर ही उस में प्रत्यक्षबाध्यता मानी जा सकेगी और प्रत्यक्षबाध्यत्व सिद्ध होने पर ही अनुमानाभासत्व प्रसिद्ध होगा। इस स्थिति में जब तक एक असिद्ध है तब तक दूसरे की सिद्धि नहीं हो सकेगी। दूसरे पक्ष में त्रैरूप्य का विरह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003805
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy