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________________ २४८ श्री सम्मति - तर्कप्रकरणम् विधर्मा तस्य भावो वैधर्म्यम् ततो वा व्यतिरेकिणो हेतोः प्रकृतं साध्यं साधयेत् । उभाभ्यां वा 'वा' शब्दस्य समुच्ययार्थत्वात् तथापि तत्पुत्रत्वादेरेव गमकत्वप्रसक्तिः, श्यामत्वाभावे तत्पुत्रत्वादेरन्यत्र गौरपुरुषेऽभावाद्, उभाभ्यामपि तत्साधनेऽत एव साध्यसिद्धिप्रसक्तिः स्यात् । अथात्र कालात्ययापदिष्टत्वादिदोषसद्भावाद् न साध्यसाधकताप्रसक्तिः । न, असिद्ध - विरुद्धाऽनैकान्तिक हेत्वाभासमन्तरेणापरहेत्वाभासाऽसम्भवात् । न च त्रैरूप्यलक्षणयोगिनोऽसिद्धत्वादिहेत्वाभासता कृतकत्वादेरिवाऽनित्यत्वसाधने सम्भवति, अस्ति च भवदभिप्रायेण त्रैरूप्यं प्रकृतताविति कुतोऽस्य हेत्वाभासता ?! - यदि वे अन्वयव्याप्तिगर्भित हेतु का उपन्यास कर के पक्ष में अपने इष्ट साध्य को सिद्ध करना चाहते हैं तो सफल नहीं होते। कारण, साधर्म्य मात्र से साध्यसिद्धि मान लेने पर तत्पुत्रत्व आदि हेतु भी साध्यसाधक बन बैठेंगे क्योंकि वैसा अन्वय यानी साधर्म्य तो यहाँ भी विद्यमान है। तात्पर्य यह है कि नूतन जात (गौरवर्ण) पुरुष में श्यामत्व सिद्ध करने के लिये तत्पुत्रत्व को हेतु किया जाय तो वह उस के सहोदर सभी श्याम बन्धुओं में विद्यमान होने से साधर्म्य दृष्टान्त के आधार पर नूतन जात पुरुष में श्यामत्व का साधक हो बैठेगा, क्योंकि अन्वय तो यहाँ भी मौजूद है। यदि प्रतिपक्षी एकान्तवादी वैधर्म्य से अपना उल्लू सीधा करना चाहे तो वहाँ भी वही दोष होगा । साध्यसामान्य साथ अन्वय धारण करने वाला साधनधर्म जिस में नहीं रहता उस की 'विधर्मा' संज्ञा है । विधर्मा का भाव वैधर्म्य, यानी विधर्मा में न रहनेवाला हेतु - व्यतिरेकी हेतु भी इसे कहा जाता है। ऐसे व्यतिरेकी हेतु से साध्यसिद्धि अभीष्ट हो तब भी तत्पुत्रत्व हेतु से नूतन जात ( गौरवर्ण) बच्चे में श्यामत्व सिद्ध हो बैठेगा, क्योंकि जो महिला उस नूतन जात बच्चे की माता नहीं है उस महिला के गौरवर्णवाले पुत्रों में श्यामत्व का अभाव और तत्पुत्रत्व (यानी नूतनजात बच्चे की माता से निरूपित पुत्रत्व ) का अभाव दोनों ही रह जाते हैं । मूल सूत्र में 'बा' शब्द तीसरे 'उभय' विकल्प का समुच्चायक है । अर्थात् केवल साधर्म्य या वैधर्म्य नहीं किन्तु साधर्म्य-वैधर्म्य उभय से यानी अन्वय-व्यतिरेकी हेतु से यदि साध्यसिद्धि अभीष्ट हो तब भी तत्पुत्रत्व से साध्यसिद्धि होने की विपदा तदवस्थ रहती है क्योंकि जिस पुरुष में तत्पुत्रत्व हेतु नहीं है वैसे अन्य गौरवर्णवाले पुरुष में श्यामत्व भी नहीं है । अतः अन्वय - व्यतिरेकी हेतु से यदि एकान्तवादी को साध्यसिद्धि अभीष्ट हो तब तत्पुत्रत्व से भी साध्यसिद्धि प्रसक्त होगी । * प्रासंगिक हेत्वाभास चर्चा : वादी तत्पुत्रत्व हेतु स्थल में गौर पुरुष में श्याम वर्ण प्रत्यक्ष बाधित अर्थात् कालात्ययापदिष्टता आदि दोष से दुष्ट है अतः श्यामवर्णरूप साध्य की सिद्धि का अतिप्रसंग नहीं होगा । प्रतिवादी :- 'बाध' यानी कालात्ययापदिष्टता यह कोई स्वतन्त्र हेत्वाभास (दोष) नहीं है। संभवित हेत्वाभास तीन ही हैं " असिद्ध, विरुद्ध और अनैकान्तिक। इन के अलावा और कोई हेत्वाभास नहीं होता । जो हेतु पक्षवृत्तिता, सपक्षवृत्तिता और विपक्ष से निवृत्ति इन तीन लक्षणों से जुड़ा रहता है उस में कभी भी असिद्धि, विरुद्धता या साध्यद्रोह जैसे हेत्वाभास दोष ठहर नहीं सकता। जैसे अनित्यत्व साध्य की सिद्धि के लिये कृतकत्व हेतु का उपन्यास किया जाय तो वह तीन लक्षणों से अलंकृत रहने कारण हेत्वाभास नहीं होता, सद्हेतु ही होता है । वादी के मतानुसार जो तत्पुत्रत्व हेतु है उस में भी लक्षणत्रयी मौजूद है, तो फिर उस को हेत्वाभास कैसे कह सकेंगे ? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003805
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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