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________________ २३२ श्री सम्मति-तर्कप्रकरणम् न हेतुरस्तीति वदन् सहेतुकं ननु प्रतिज्ञां स्वयमेव बाधते । अथापि हेतुप्रणयालसो भवेत् प्रतिज्ञया केवलयाऽस्य किं भवेत् ।। ( ) इति । न च ज्ञापकहेतूपन्यासेऽपि कारकहेतुप्रतिक्षेपवादिनो न स्वपक्षबाधेति वक्तव्यम् यतो लिंगं तत्प्रतिपादकं वा वचो यदि पक्षसिद्धेरुत्पादकं न भवेत् कथं तस्य ज्ञापकहेतुता स्यात्, अन्यथा सर्वस्य सर्वं प्रति ज्ञापकता प्रसज्येत । न चैवं कारक-ज्ञापकहेत्वोरविशेषः साध्यानुत्पादकस्य ज्ञापकहेतुत्वात्, तदुत्पादकस्य तु कारकहेतुशब्दवाच्यत्वात् । अनुमानबाधितत्वं च प्रतिज्ञायाः स्पष्टमेव । तथाहि – प्रतिनियतभावसंनिधौ ये प्रतिनियतजन्मानः ते सहेतुकाः यथा भवत्प्रयुक्तसाधनसंनिधिभावि तत्साध्यार्थज्ञानम् । तथा च मयूर चन्द्रकादयो भावाः इति स्वभावहेतुः। तन्न स्वभावैकान्तवादाभ्युपगमो युक्तिसंगतः। साध्यसिद्धि अशक्य है। यदि आप निर्हेतुकत्व सिद्ध करने के लिये हेतु का शरण लेंगे तो अपने पक्ष पर ही कुठाराघात हो जायेगा क्योंकि तब आप को स्वीकार करना पडेगा कि आपके पक्ष की सिद्धि हेतुजन्य अर्थात् प्रमाणजन्य है। कहा गया है कि - ___हेतुप्रयोग कर के हेतु का निषेध करने वाला स्वयं ही अपनी प्रतिज्ञा का लोप कर रहा है। यदि वह हेतुप्रयोग में आलस करेगा तो हेतुशुन्य केवल प्रतिज्ञा से क्या सिद्ध होगा ?' इति। * ज्ञापक हेतुपक्ष में भी निर्हेतुकत्वसिद्धि दुष्कर * यदि ऐसा कहा जाय – हम निर्हेतुकत्व की सिद्धि के लिये जिस हेतु का उपन्यास करेंगे वह कारक यानी उत्पादक हेतु नहीं किन्तु ज्ञापक हेतु है। हम तो सिर्फ निर्हेतुकत्व सिद्धि में कारकहेतु का ही निषेध सिद्ध करना चाहते हैं, अतः ज्ञापक हेतु के उपन्यास करने में कोई हमारे पक्ष पर कुठाराघात का सम्भव नहीं है - तो यह विधान भी अज्ञानपूर्ण है। यदि ज्ञापक हेतु या उस का प्रतिपादक वचन पक्षसिद्धि का उत्पादक (यानी कारक हेतुरूप) न माना जाय तो वह ज्ञापक हेतु भी कैसे हो सकेगा ? ज्ञापक का मतलब है ज्ञानोत्पादक, जो पक्षसिद्धि यानी साध्य के ज्ञान का उत्पादक नहीं होगा वह ज्ञापक हो ही नहीं सकता। यदि साध्यज्ञान-उत्पादक न हो उस को भी ज्ञापक हेतु माना जाय, तब तो कोई भी पदार्थ किसी भी भाव का ज्ञापक होने का मान लेना पडेगा। ज्ञापक हेतु यदि उत्पादक बन जायेगा तो फिर कारक और ज्ञापक हेतुओं में क्या भेद रहेगा ? इस प्रश्न का जवाब यह है कि, जो साध्य का उत्पादक न हो सिर्फ प्रकाशक हो वह साध्य का ज्ञापक हेतु है जब कि साध्य के उत्पादक हेतु को 'कारक' हेतु कहा जाता है। उदा० धूम अग्नि का सिर्फ प्रकाशक है, उस को अग्नि का ज्ञापक हेतु कहेंगे और इन्धन अग्नि का उत्पादक है उस को कारक हेतु कहेंगे। ___तथा, निर्हेतुकत्व की सिद्धि के लिये जो अनुमानप्रयोग किया गया है उसकी प्रतिज्ञा, सहेतुकत्वसाधक प्रति-अनुमान से स्पष्टरूप से बाधित है। देख लीजिये - नियत किसी पदार्थ की विद्यमानता में ही जिस भाव का नियमतः जन्म होता है वह भाव सहेतुक ही होता है। उदा० आप के द्वारा प्रयोजित साधन की विद्यमानता में आप के द्वारा प्रतिज्ञात साध्यअर्थ का ज्ञान उस साधन से जन्य होता है। मोरपीच्छ के चन्द्रकादि भाव भी उस साध्य अर्थ के ज्ञान के जैसा ही है इस लिये सहेतुक ही है। इस स्वभावहेतुक अनुमान से निर्हेतुकत्व का अनुमान बाधित हो जाता है। निष्कर्ष, भाव मात्र स्वभाव से ही उत्पन्न होते हैं ऐसा एकान्तस्वभाववाद का स्वीकार युक्तिशून्य है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003805
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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