SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 254
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पञ्चमः खण्डः का० ५३ २२९ न च व्यतिरेकमात्रं कार्यकारणभावनिबन्धनत्वेनाऽभ्युपगम्यते तद्वादिभिः किन्तु तद्विशेष एव । तथाहि - समर्थेषु सत्सु येषु कार्यं भवदुपलब्धम् तेषां मध्येऽन्यतमस्यापि अभावे तद् अभवत् तत्कारणं तद् इति व्यवस्थाप्यते न तु 'यस्याभावे यन्न भवति' इति व्यतिरेकमात्रतः, अन्यथा मातृविवाहोचितपारशीकदेशप्रभवस्य पिण्डखर्जूरस्य तद्विवाहाभावेऽभावादव्यभिचारः स्यात् । न चैवंभूतस्य व्यतिरेकस्य स्पर्शेन व्यभिचारः, न हि रूपादिसंनिधानमुपदर्श्य स्पर्शस्यैकस्याभावात् चक्षुर्विज्ञानं न भवतीति शक्यं दर्शयितुमिति कुतो व्यभिचारः कार्यकारणभावलक्षणस्य ? न केवलं बीजादिः कारणत्वेन भावानां निश्चितः किन्तु देशकालादिरपि । तथाहि यदि प्रतिनियत देशकालहेतुता कण्टकादेस्तैक्ष्ण्यादेर्न स्यात् तदा येयमतद्देश- कालपरिहारेण प्रतिनियतदेश - कालता तेषामुपलम्भगोचरचारिणी सा न स्यात्, तन्निरपेक्षत्वात् तद्वदन्यदेशकाला अपि ते भवेयुः, न चैवम् अतः प्रतिनियतदेशादौ वर्त्तमानास्तदपेक्षास्त इति सिद्धम् । तथा च तत्कार्या अपेक्षालक्षणत्वात् तत्कार्यतीक्ष्णता के प्रति बीजविशेष में कारणता निर्विवाद सिद्ध होती है। अतः ' कारण की सत्ता का उपलम्भ नहीं होता' ऐसा हेतु असिद्ध होने से 'असद्' - व्यवहार - गोचरता की सिद्धि दूर है । चाक्षुष ज्ञान में स्पर्श की कारणता का स्वागत यह जो कह आये कि अन्वय-व्यतिरेक, कार्यकारणभाव के न रहने पर भी स्पर्श और चाक्षुषदर्शन में रह जाने से, व्यभिचारी लक्षण हैं वह भी असिद्ध है। कारण, हमें तो चाक्षुष ज्ञान के प्रति स्पर्श की कारणता इस प्रकार से मान्य ही है कि वह स्पर्श तथाविध रूप का हेतु होता है जिस से चाक्षुष दर्शन जन्म लेता है । यदि वहाँ स्पर्श न रहेगा तो चाक्षुषदर्शनानुकूल अवस्थावाला रूप भी वहाँ नहीं होता । तथा आप को वह भी जान लेना चाहिये कि वादीयों को सिर्फ व्यतिरेकमूलक ही कार्य-कारणभाव होने का मान्य नहीं है। हाँ, अगर कोई विशिष्ट प्रकार का व्यतिरेक रहा तो कार्य-कारण भाव हो सकता है। देखिये जिन समर्थ शक्तिशाली चीज वस्तुओं के रहते हुए कार्य का जन्म देखा हुआ है, उन में से किसी एक के विरह में जब कार्य का जन्म नहीं होता तब वह कारण होने का सिद्ध हो जाता है ऐसा तो मानते हैं। किन्तु 'जिस के विरह में जो नहीं होता' सिर्फ ऐसे थोथे व्यतिरेकमात्र से कारण नहीं मान लिया जाता । कोई कार्य नहीं होने पर जिस का विरह है उन सभी को यदि कारण मान लिया जाय, तब तो कभी पिण्डखजूर के प्रति ऐसे मातृविवाह को भी कारण मान लेना होगा जिसके विरह में कभी पिण्डखजूर का भी विरह हो जाता है। मातृविवाह पारशीयों के देश में होता है । कभी मातृविवाह का अवसर नहीं होता तब पिण्डखजूर भी देखने को नहीं मिलती, इतने मात्र से (व्यतिरेक के बल पर ) क्या यह मान लेना उचित है कि पिण्डखजूर के प्रति मातृविवाह कारण है ? हमने जो कारणतास्थापक व्यतिरेक का स्वरूप बताया है वह स्पर्श के बारे में व्यभिचारी नहीं है, क्योंकि 'रूपादि का संनिधान होने पर एक मात्र स्पर्श के अभाव में चक्षुविज्ञान नहीं हो' ऐसा तो कभी बता नहीं सकते हैं इसलिये स्पर्श और चाक्षुष दर्शन में कार्य कारणभाव का व्यभिचार कैसे होगा ? - Jain Educationa International -- * कण्टक और तीक्ष्णता के प्रति देश - कालहेतुतासिद्धि यह भी जान लेना जरूरी है कि पदार्थों के प्रति सिर्फ बीजादि ही कारण नहीं है, देश कालादि भी कारण होते हैं । कण्टकादि और उस की तीक्ष्णता में यदि नियत देश - काल को हेतु न मानेंगे, तो नियत For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003805
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy