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________________ 22 विषय अनेकान्तवाद सप्तभंगी का निरूपण पट के व्यापकत्व के बारे मे सप्तभंगी एक अनुगतप्रतीति काल्पनिक नहीं अग्नि को अनुष्ण मानने में स्यादवादी को संकट नहीं - मिट्टी आदि भावों की निर्बाध त्रयात्मकता विद्युत् आदि निरन्वयविनाशी नहीं प्रतिभास का भेद - अभेद वस्तुभेद - अभेद का स्थापक न्यायदर्शनोक्त निग्रहस्थान स्वरूप मीमांसा न्यायदर्शनोक्त निग्रहस्थान के स्वरूप की आलोचना दोषोद्भावन में अशक्तिमान से निग्रह अशक्य पक्षादिवचन से निग्रह का बौद्धमत अनुचित अनुवृत्ति आचारा० सू० आ० नि० उत्तरा० ओ० नि० का० जी० वि० जीवाजीवा ० जम्बू० प्र० त० सू० त० सू० भा० त० राज० धर्मसं० Jain Educationa International अनुयोगद्वारवृत्तिः आचारांगसूत्रम् आवश्यक निर्युक्ति उत्तराध्ययनसूत्र ओघनिर्युक्तिसूत्र कारिका जीवविचारप्रकरणम् जीवाजीवाभिगमसूत्र जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रम् पृष्ठाङ्क विषय ३९४ अधिकवचन की निग्रहस्थानता अमान्य ३९५ | योग्यानुपलब्धि से अभावसिद्धि का ३९७ एकान्त अमान्य तत्त्वार्थसूत्रम् तत्त्वार्थसूत्रभाष्यम् तत्त्वार्थराजवार्त्तिकम् धर्मसंग्रहणीसूत्रम् ४०४ वाद में जय-पराजय का आधार है स्वपक्षसिद्धि ४०५ ३९७ हेत्वाभासमात्र से निग्रहस्थान नहीं हो जाता ४०६ ३९८ वादन्यायग्रन्थोक्त निग्रहस्थान लक्षण असंगत ४०७ ३९९ ४०० ४०१ अमृततुल्य जिनवचन का कल्याण हो अन्त्यमंगल | व्याख्याकार-अभयदेवसूरिकृता प्रशस्तिः व्याख्याकार अन्तिम प्रशस्ति अभयदेवसूरिस्तुतिगाथा परिशिष्ट - १ परिशिष्ट - २ ४०१ ४०२ ४०३ | परिशिष्ट-३ परिशिष्ट-४ (संकेतस्पष्टीकरणम् नवत० पात० द० प्रव० सा० प्रव० सारो ० ब्रह्मसू० शां० भग० सू० मनु० महा० शा० विशेषा ० शास्त्रवा० श्लो० वा० षड्द० स्वयंभू० For Personal and Private Use Only नवतत्त्वप्रकरणम् पातञ्जलदर्शनम् प्रवचनसार प्रवचनसारोद्धारः ब्रह्मसूत्रशांकरभाष्यम्- भगवतीसूत्रम् मनुस्मृतिः पृष्ठाङ्क ४०३ महाभारतशान्तिपर्व विशेषावश्यकभाष्यम् शास्त्रवार्त्तासमुच्चयः श्लोकवार्त्तिकः षड्दर्शनसमुच्चयः स्वयंभू स्तोत्रम् ४०७ ४०८ ४०८ ४०९ ४१० ४११ ४१३ ४१४ www.jainelibrary.org
SR No.003805
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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