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________________ 21 विषय ३७२ ३५३ / सप्तमः ३५३ | ३८४ ३८४ पृष्ठाङ्क | विषय पृष्ठाङ्क सामान्य-विशेष उभय की वाच्यता का सूत्रविधानों का परमार्थ तीसरा विकल्प ३४८ स्त्रीमोक्षाधिकारे दिगम्बरमतनिर्मूलनम् ३७३ अनुभव की वाच्यता का चौथा विकल्प ३४९ | स्त्रीमुक्ति के अधिकार में दिगम्बरमतप्रतिक्षेप ३७३ अनेकान्तवाद में शब्दप्रमाण का पदार्थविषय ३४९ । महिलाओं में निर्ग्रन्थता का सद्भाव आगमसिद्ध ३७४ वासना भी अनन्तधर्मात्मक एकवस्तुरूप स्वीकारार्ह ३५० | सिद्धप्राभृत आदि आगमों में स्त्रीमुक्तिविधान ३७५ सुगतज्ञान अभ्रान्त नहीं हो सकता ३५० स्त्रीत्वहेतुक अनुमान में दोषपरम्परा ३७६ विशद नैरात्म्यज्ञान भी मिथ्या है ३५१ चौदहपूर्वज्ञानाभावसाधक आगम से मुक्तिसिद्धि ३७७ दष्टविषयाविसंवादी होने से अनेकान्तवाद प्रमाण है ३५२ कर्मक्षयसाधकाध्यवसायसाधक अनमान की सदोषता ३७८ गाथा - ६४ | सप्तमनरकप्रापकअध्यवसाय न कारण है न व्यापक ३७८ अर्थाधीनं सूत्रम् न सूत्राधीनोऽर्थः ३५३ | अतिक्लिष्ट और अतिशुभ परिणामों में व्याप्तिअभाव ३८० सूत्र अर्थाधीन है अर्थ सूत्राधीन नहीं ३५३ | आगमवचन में अनुमानबाध का असंभव ३८० सूत्र शब्द के विविध व्युत्पत्ति-अर्थ | अतीन्द्रिय वस्तु में आगमनिरपेक्ष अनुमान गतिहीन ३८१ गाथा - ६५ ३५४ | पूर्वो का ज्ञान न होने पर भी तीर्थंकर वस्खादिवतां नैर्ग्रन्थ्यविरहः - दिगम्बर-पूर्वपक्षः । ३५५ | को शुक्लध्यान ३८२ दिगम्बरों का पूर्वपक्षप्रारम्भ ३५५ | गाथा - ६६ वस्त्रादि के आग्रह में प्रव्रज्यापरिणामशून्यता ३५६ महाव्रतिअबन्धत्व हेतु की दुर्बलता श्वेताम्बरों का उत्तरपक्ष ३५६ | जिनप्रतिमा की आभरणादिविभूषा कर्मक्षयसाधक वस्त्रादि के ग्रहण में तृष्णामूलकत्व के गाथा - ६७ ३८६ भ्रम का निरसन ३५८ नय-प्रमाण से शास्त्रार्थ का परिभावन-कर्त्तव्य ३८६ आहारग्रहण की तरह वस्त्रादिग्रहण निर्दोष है ३५९ | चरण-सित्तरी - करण-सित्तरी ३८७ वस्त्रादि के विरह में संक्लेशोत्पत्ति दिगम्बरपक्ष में ३६० | | स्वपरसमयभेद के अजाण चरण-करणसारवंचित ३८८ आशयशुद्धि से अहिंसा और अपरिग्रह ३६२ | सामायिकमात्र पदज्ञानी माषतुषमुनि आहार की तरह वस्त्रादि में जयणा से शुद्धि ३६२ | | की मुक्ति कैसे ? ३८९ वस्त्रादिग्रहण से रागादि का उपचय असिद्ध ३६३ । | गाथा - ६८ दिगम्बरोक्त हेतु में विशेषणादि की असिद्धि | परस्परशून्य ज्ञान-क्रिया से दुःखभयनिवारण वस्त्रादि ग्रन्थरूप नहीं है- अनुमानसिद्धि ३६४ अशक्य वस्त्रादि की धर्मोपकरणतासाधक युक्तिवृंद सम्यग्ज्ञान-सम्यक्रिया से दुःखभय का वारण ३९१ पात्र के विना इस काल में विडम्बना ३६६ जेण विणा लोगस्स. अधिक कारिका ३९१ बाह्य तप का प्रयोजन अभ्यन्तरतपपुष्टि गाथा - ६९ ३९२ शिष्य को गुरुधारितलिंग के ग्रहण जिनवचन मिथ्यादर्शनसमूहमय फिर भी अमृततुल्य ३९२ का उपदेश व्यर्थ ३६९ सांख्यादि के दर्शनों का अवयव समूह, वस्त्रधारकों में परिग्रहाग्रह का आपादन व्यर्थ ३७० जिनदर्शन अवयवी ३९३ आगमों में यति को वस्त्रादिग्रहण का स्पष्ट विधान ३७१ | सप्तभंगीव्युत्पादनेनानेकान्तवादसमर्थनम् ३९४ ३९० ३६३ ३९० ३६५ ___३६७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003805
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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