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________________ 20 विषय - संतुष्ट जनों को उपालम्भ सूत्रधरशब्द गाथा ६२ गाथा ६३ निर्दोष सम्यग्दर्शन का वास्तव स्वरूप शासनभक्ति में सिद्धान्तज्ञान का महत्त्व सात तत्त्व - दो पदार्थों की व्यवस्था सांख्य-बौद्ध-वेदान्त दर्शन के पदार्थों का निराकरण ३०३ पृथक् आस्रवादि तत्त्वों के प्रतिपादन का हेतु जैनमतप्रसिद्धध्यानचतुष्टयनिरूपणम् ३०२ - पृष्ठाङ्क | विषय २९९ | पदार्थान्तरविशेषितपदार्थ-स्वरूप वाक्यार्थ ३०० प्रदर्शक पूर्वपक्ष ३०१ | एकान्तवाद में विशेषणोपराग की दुर्घटता ३०१ लिट् आदि प्रत्ययों से भाव की साध्यता ३०१ के कथन की समीक्षा Jain Educationa International बन्धपदार्थ का निरूपण और प्रकार आर्त्तध्यान का स्वरूप एवं चार भेद रौद्रध्यान स्वरूप एवं भेद प्रशस्त ध्यान का प्रयोगविधि धर्मध्यान : स्वरूप, बाह्य - अभ्यन्तर भेद धर्मध्यान के दश भेद शरीर एवं विषयों के प्रति वैमुख्य का चिन्तन संस्थान - आज्ञा-हेतुविचय धर्मध्यान ३११ ३१३ ३१४ ३१५ ३१६ शुक्लध्यान : स्वरूप एवं बाह्य - आध्यात्मिक भेद ३१२ आद्य शुक्लध्यानभेद का विशेष परिचय द्वितीय शुक्लध्यानयोग स्वरूप-कार्य-फल केवलिसमुद्धातप्रक्रिया एवं चतुर्थ शुक्लध्यान आस्रव एवं बन्ध तत्त्वों का साधक प्रमाण आस्रव की सिद्धि में आक्षेप - समाधान संवर - निर्जरा मोक्ष तत्त्वों की प्रमाणतः सिद्धि मोक्ष के लिये आवश्यक संवरादि तत्त्वों का ज्ञान ३२० बन्ध और मोक्ष के हेतु आगम- गम्य विकल्पचतुष्टयेनैकान्तवादे वाक्यार्थसम्भवप्रदर्शनम् ३२२ ३१७ ३१९ ३२१ वाक्य के वाच्यार्थ पर विकल्प - चतुष्टय सामान्यवादी की ओर से प्रथमविकल्प का समर्थन सामान्यवादी के मत में विशिष्ट अर्थबोध की दुर्घट वाक्य में विशिष्टार्थवाचकता कि सिद्धि शब्दशास्त्र का व्यवहार ३२८ फलसापेक्षभाव से पुरुष - प्रेरणा की अशक्यता ३२९ परस्परसापेक्ष भावाभावात्मक कार्यतापक्ष समीचीन ३३० ३०४ विधि के प्रवर्त्तकत्व सम्बन्ध में द्विविध मत ३३१ ३०६ |विधि के सत्त्व असत्त्व पक्ष में प्रेरकता की दुर्घटता ३३२ ३०६ |विधि - निष्पत्ति के सम्बन्ध में अनवस्थादि दोष ३३३ ३०६ |विधि की प्रतीति पर दो विकल्प ३३४ ३०७ | निष्पन्न धात्वर्थ धातुवाच्य हो तब विधि निरर्थक ३३४ ३०८ || निषेधक विधि का नैरर्थक्य ३०८ ३०९ ३१० ३२२ ३२३ ३२४ ३२५ ३२५ का असंभव क्रिया - कारकसंसर्गरूप वाक्यार्थ की आलोचना असत् वाक्यार्थ की ज्ञापकता के ऊपर विविध विकल्प पृष्ठाङ्क ३३५ न सम्बद्ध भावनादि में विधि का प्रवर्त्तकत्व अयुक्त ३३६ पदार्थप्रतिपाद्य भावना ही वाक्यार्थ मीमांसक ३३७ श्वेत अश्व दौडता है- ऐसी बुद्धि का उदाहरण एकान्तवाद में पुरुषव्यापारस्वरूप वाक्यार्थ ३३७ वाक्यार्थज्ञापक पदार्थ कौनसा प्रमाण प्रत्यक्ष अर्थ धर्मस्वरूप होने की विपदा वाक्य के अनवबोध से वाक्यार्थ अप्रतीति अभिहित अन्वयवाद निरसन अन्विताभिधानवादि एकान्तमत का निरसन पदजन्य पदार्थज्ञान वाक्यार्थपर्यवसायि मानने में अतिप्रसंग अर्थवादादि वाक्यों का प्रामाण्य सुदुर्घट विशेष शब्दवाच्य है ? दूसरा विकल्प अनेकावयवात्मक स्थूल अवयवी का अपलाप अशक्य ३२६ ३२८ For Personal and Private Use Only ३३८ ३३८ ३३९ ३४० ३४१ ३४२ ३४३ ३४४ ३४४ ३४५ ३४६ ३४७ www.jainelibrary.org
SR No.003805
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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