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________________ 19 २७९ विषय पृष्ठाङ्क | विषय पृष्ठाङ्क अन्यतरानुपलब्धि हेतु का असिद्ध में हेतु का लक्षण्य भी एकान्तवाद में दुर्घट २७७ अन्तर्भाव दुष्कर २५२ अनेकान्तमत में एकलक्षण हेतु-कथन का तात्पर्य २७८ असाधारण/असिद्धता की आशंका २५३ | एकान्तवाद में व्याप्तिग्रहण दुष्कर २७८ असाधारण/असिद्धता की आशंका का निर्मूलन २५४ | क्षणिकवाद में कार्य-कारणभाव का ग्रहण दुष्कर २७९ अन्यतरशब्द किसी एक विशेष का वाचक नहीं २५४ क्षणिकवाद में अनुभवबाध कालात्ययादिष्ट स्वतन्त्र हेत्वाभास २५६ | गाथा - ६० हेत्वाभास पाँच नहीं तीन-उत्तरपक्ष | द्रव्यादि आठ से सापेक्षनिरूपण का सन्मार्ग २८० नित्यधर्मानुपलब्धि हेतु में अनैकान्तिकता गर्दभसींग और जीवादिद्रव्यों में विशेषता का मूल २८१ का विरोध - नैयायिक २५८ | गुणादि की पृथग् उपलब्धि के प्रसंग का निरसन २८२ विपक्षीभूतपक्ष में साध्यनिश्चय का अनिष्ट - उत्तरपक्ष २५९ | वस्तुमात्र में एकानेकस्वरूप की सिद्धि २८२ हेतु में पक्षधर्मताग्रहण की सार्थकता। क्षणिक-निराकारज्ञानवाद अनुभव बाह्य २८३ अनुपलब्धि हेतु में प्रसज्य-पर्युदास के दो विकल्प २६१ | क्षणिकत्वसाधक सत्त्वादि हेतु विरुद्ध कैसे ? २८४ एक धर्मी में विरुद्ध दो धर्म के समावेश सादृश्य के आधार पर सन्तानव्यवस्था दुष्कर २८५ से स्याद्वादसिद्धि . २६२ | अन्वय-व्यतिरेक एवं प्रमाणविषयता की अनुपपत्ति २८६ एक अनुमान दूसरे अनुमान का बाधक क्यों नहीं ? २६३ | शुक्ति में रजत-दर्शन कथंचिद् अभ्रान्त २८६ पक्ष-सपक्षान्यतरत्व भी प्रकरणसम नही है २६३ | निरंश-क्षणिकस्वलक्षणग्राही निर्विकल्प का प्रतिषेध २८७ कालात्ययापदिष्ट के लक्षण में असंगतियाँ २६५ | | अक्षणिक अर्थ में अर्थक्रिया अशक्य । २८८ अबाधितत्व हेतु का लक्षण दुर्घट है सर्वदा भेदविशिष्ट अभेद की उपलब्धि अबाधितत्व का निश्चय दुष्कर २६७ | विशिष्ट प्रतीति समवायमूलक नहीं एकान्तवाद में पक्षधर्मता आदि की दर्घटता २६८ | सामान्य के ग्रहण में संकट २९० एकान्तवाद में भाव-अभाव का ऐक्य-दुर्घट २६८ | सामान्य और विशेष का सर्वथा सामान्यात्मक हेतु का प्रयोग निर्हेतुक २६९ | अन्योन्य-विशेष अयुक्त सामान्य की वृत्ति दोनों विकल्प में असंगत २७० | ‘घट सत् है' प्रतीति से सामान्य-विशेषात्मक नित्यसामान्य ज्ञानोत्पाद में अकिंचित्कर २७१ | वस्तु की सिद्धि २९२ सामान्यात्मक हेतु में असाधारणतादोषप्रसक्ति २७१ | सामान्य के पक्ष में निरर्थकतादि दोषसन्तान २९३ सामान्य-विशेष उभय या अनुभय में हेतुत्व दुर्घट २७२ | | व्यतिरेक-अव्यतिरेक पक्ष में दोषों का निराकरण २९४ साध्य में चतुष्कोटि अनुपपत्ति २७३ | विविध मतों का एकान्त अनिष्ट, अनेकान्त इष्ट २९४ गाथा - ५७ वैदिक-हिंसा में सदोषत्व-मीमांसा २९६ एकान्तवाद की आपत्ति एवं परिहार २७४ | | याज्ञिक हिंसा का बचाव निष्फल २९७ गाथा - ५८ वेदमत एवं संसारमोचक मत में क्या विशेष ? २९८ अनेकान्तवादगर्भित निरूपण अजेय २७५ गाथा - ६१ गाथा - ५९ २७६ | दीक्षा अंगीकार से मोक्षप्राप्ति के विधान लौकिक और परीक्षकों में निन्दा का हेतु २७६ | का तात्पर्य २८९ २९० २९१ पत्ति .. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003805
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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