SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 18 विषय पृष्ठाङ्क सत्कार्यवाद में पुनः पुनः कार्योत्पत्ति का संकट २११ २११ कारण सत् ही हो ऐसा एकान्त वर्ज्य एकान्तसत् पदार्थ में अवस्थाभेद असंगत कारण-कार्य में समानकालता मानने पर संकट कथंचित् सदसद्वाद की निर्दोषता प्रासंगिकी चित्ररूपमीमांसा २१४ चित्ररूप एकानेकता परामर्श एक पट में अनेकशुक्लादिरूप कैसे ? २१५ अवयवी में रूपसामान्य की ही उत्पत्ति असंगत २१६ - - तदवस्थ चित्ररूप एकानेकाकार मानने पर संगतिबौद्धमत में चित्रप्रतिभास एकानेक स्वरूप गाथा ५१ निरपेक्ष दो नयों में मिध्यात्व, सापेक्ष में सम्यक्त्व २२२ गाथा ५२ घट - पृथ्वी के दृष्टान्त से भेदाभेदसमर्थन गाथा ५३ - रूपसामान्य से चित्ररूपप्रतीति दुर्घट २१६ एकद्रव्य में अनेकाकार अनेकरूपप्रतिपादन सदोष २१७ एकान्त कर्मकारणवाद युक्तिसंगत नहीं एकान्तवाद में भाष्यकथनविरोधपरिहार अशक्य २१८ | एकान्तपुरुषकारणवादिमतस्थापना एक रूप के उपलम्भ में चित्रप्रतीति क्यों नही ? २१९ एकान्तपुरुषमात्रकारणवादिमत का निरूपण एक अवयव के उपलम्भ में चित्रप्रतीतिप्रसंग विषय कारण- अनुपलम्भहेतु अनैकान्तिक अनुपलब्धि हेतु दोनों विकल्पों में असमर्थ २१२ ज्ञापक हेतुपक्ष में भी निर्हेतुकत्वसिद्धि दुष्कर २१२ एकान्तनियतिकारणवादिमतनिरूपणम् २१३ एकान्तनियतिवादनिरसनम् २१४ कालैकान्तवादनिरसनम् काल ही समस्त कार्यों का कारण एकान्तवाद सृष्टि का कारण एक मात्र काल नहीं स्वभावैकान्तवादविन्यास - निरसने एकान्त स्वभावकारणवाद की समीक्षा कोई कारण न होना ऐसा स्वभाव - पूर्वपक्ष बाह्य-अभ्यन्तर पदार्थमात्र निर्हेतुक - पूर्वपक्ष एकान्तस्वभावकारणवादनिरसनम् Jain Educationa International एकमात्र नियति ही सृष्टिमात्र का कारण- एकान्तवादी एकान्तनियतिकारणवाद में निष्फलताएं २३७ एकमात्रपुरुषकारणवाद की समालोचना २१९ | एकमात्र पुरुषकारणतावाद में प्रयोजन की अनुपपत्ति २३७ प्रशस्तमति के मत का स्थापन - उत्थापन स्वभावतः ईश्वरप्रवृत्ति असंगत २२० २३८ २२१ २४० २४० स्वभाव से या अबुद्धिपूर्वक प्रवृत्ति असंगत गाथा ५४ मिथ्यात्वप्रसक्ति के छः स्थान छः स्थानों में मिथ्यात्व का उपपादन २४१ २४२ २४३ ५५ २४४ २४४ २२३ | मिथ्या छः स्थानकों में अनुमानविरोधप्रदर्शन २२४ | गाथा २२५ अस्ति आत्मा आदि मिथ्यात्व के छः स्थान स्याद् अस्ति आदि सम्यक्त्व के छः स्थान आत्म-अस्तित्वादि साधने में हेतु - दृष्टान्तदोष २२६ निरवकाश २२५ २४५ २२५ २४६ २४७ २२७ गाथा ५६ २२७ साधर्म्य - वैधर्म्य द्वारा एकान्तवाद में सिद्धि दुष्कर २४७ २२७ | प्रासंगिकी हेत्वाभासचर्चा २४८ २२८ २४९ प्रकरणसम यानी सत्प्रतिपक्ष का उदाहरण कण्टकादि की तीक्ष्णता भी सहेतुक - उत्तरपक्ष २२८ | अन्यतरानुपलब्धि हेतु अनैकान्तिक ? चाक्षुष ज्ञान में स्पर्श की कारणता का स्वागत २२९ शंकानिवारण कण्टक और तीक्ष्णता के प्रति देश - कालहेतुतासिद्धि २२९ | प्रकरणसम की स्वतन्त्र - दोषता का समर्थन कर्म जगद्वैचित्र्यकारणम्-कर्मवादी कर्म ही एकमात्र कारण - कर्मवादी - - - पृष्ठाङ्क २३० २३१ २३२ २३३ २३३ For Personal and Private Use Only २३३ २३३ २३४ २३४ २३६ २३६ २३६ २५० २५२ www.jainelibrary.org
SR No.003805
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy