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________________ विषय सामान्य की वृत्ति पर एकदेश- पूर्णता विकल्प गोत्व का सम्बन्ध गो-पिण्ड से या अगोस्वरूप पिण्ड से अनुगताकारप्रतीति स्वव्यक्तिव्यापक सामान्य के पक्ष में एकत्वभंग अनुगताकार बुद्धि भी सामान्य की ग्राहक नहीं क्यों ? पिण्ड - पिण्डान्तर वृत्तिप्रयोजक स्वभाव पर प्रश्न एक पदार्थ अनेकवृत्ति क्यों नहीं ? अनुगत सामान्य के विना भी अभेदबुद्धि शक्य अनुगत निमित्त साधक अनुमान बाधित है। व्यक्ति से अलग प्रतिभास न होने का निमित्त विपरीतसिद्धि एवं साध्यद्रोह दोष अनुगताकार ज्ञान सामान्यविरह में भी अनभिव्यक्ति अप्रयोजक है अभिव्यक्ति स्वरूप सामान्य निराधार है कार्त्स्न्ये- एकदेशवृत्ति से अतिरिक्त वृत्ति का प्रश्न १६५ समवायात्मक वृत्ति के स्वरूप पर प्रश्न उत्पन्न-अनुत्पन्न-उत्पद्यमान पिण्डों में सामान्य कैसे ? उत्पद्यमान व्यक्ति के साथ सामान्य कैसे जुटेगा ? सर्पवत् सामान्य का संक्रम असंभव सामान्य के विना भी अभाव में केवल सामान्य के ग्रहण की अनुपपत्ति सामान्य की वृत्ति पर स्थिति - अभिव्यक्ति के दो विकल्प पृष्ठाङ्क विषय १६१ अभिव्यक्तिस्वरूप वृत्ति के दोनों विकल्प दुर्घट सामान्य की सिद्धि के लिये कुमारिलप्रयास कुमारिलप्रदर्शित अनुमानों में दोषपरम्परा प्रत्येकसमवेतार्थविषयत्व में दोषोद्भावन Jain Educationa International १६२ १६३ ब्राह्मणत्व ज्ञान में अतिरिक्त निमित्त अमान्य १६४ | ब्राह्मणजन्य शरीर में ब्राह्मणत्व असंगत १६४ | विशेषपदार्थनिरूपणम् अन्त्य नित्यद्रव्यवृत्ति विशेषपदार्थ १६६ विशेषपदार्थ पारमार्थिक नहीं है। विशेषों में व्यावृत्तबुद्धि का निमित्त कौन ? १६७ | शुचि - अशुचि भाव कल्पना की निपज कैसे ? समवायपदार्थ की स्थापना - पूर्वपक्ष १७३ १७४ १७५ अनुगतप्रतीति से वस्तुव्यवस्था अशक्य १७५ अतीत - अनागत भावों में अनुगतप्रतीति पर प्रश्न १७५ १७६ पृष्ठाङ्क १८३ अभेदग्राहक अध्यवसाय भ्रान्त क्यों ? जाति की नित्यता एवं एकत्व में बाधक प्रदर्शन १८४ ब्राह्मणत्व स्वतन्त्र जाति नहीं है १८५ १८५ १८६ १८७ १८७ १८९ १८९ १९१ १९२ १९३ १९४ १९५ १६७ समवायपदार्थ निषेध उत्तरपक्ष १६७ १६८ १६९ विशेषणभेद से औपाधिक समवायभेद दुर्घट १७० | समवायएकत्वसिद्धि में संयोगदृष्टान्त व्यर्थ १७१ समवायनित्य होने पर घटादिविनाश दुर्घट नष्ट-अनिष्ट संबन्धियों का एक समवाय दुर्घट समवायनित्यतापक्ष में जन्मपदार्थसमीक्षा १७२ १७२ १७८ १७९ १८० घट में रूपादि की बुद्धि का विश्लेषण समवाय को एक मानने पर अनिष्टप्रसंग एक - समवाय पक्ष में पदार्थपंचक सांकर्यदोष अनिवार्य गाथा .५० बौद्ध न्याय-वैशेषिक और सांख्यमत - में परस्परदूषकता शशसींग की उत्पत्ति क्यों नहीं होती ? असत् की उत्पत्ति अनभिमत है कारण कार्य असहभावी होने पर अनेक संकट सन्तानकृत कारण-कार्यभाव दुर्घट सन्तानकृतपक्ष में अन्वय - व्यतिरेक दुर्घट अर्थक्रियाधान सत्त्व के पक्ष में अनवस्थादि बौद्धमत में प्रत्यभिज्ञा अप्रमाण है १८१ सांख्य के सत्कार्यवाद की समालोचना १८२ | सांख्यसम्मते सत्कार्यवादे दोषाख्यानम् 17 For Personal and Private Use Only १९६ १९६ १९८ १९९ २०० २०१ २०२ २०२ २०३ २०४ २०५ २०६ २०६ २०७ २०८ २०९ २०९ www.jainelibrary.org
SR No.003805
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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