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________________ २०६ ___ श्री सम्मति-तर्कप्रकरणम् तद्धर्मानुविधाने तस्य कारणरूपतापत्तेस्तत्प्राक्कालभावितया तत्कार्यताव्यतिक्रमात्, कथंचित् तद्धर्मानुविधानेऽनेकान्तवादापत्तेः 'असत्कारणं कार्यम्' इत्यभ्युपगमव्याघातात् । ___ अथ सन्तानापेक्षः कार्यकारणभाव इत्ययमदोषः । न, सन्तानस्य पूर्वापरक्षणव्यतिरेकेणाभावाद् भावे वा तस्यैव कार्यकारणरूपस्याऽर्थक्रियासामर्थ्यात् सत्त्वं स्यात् न क्षणानामर्थक्रियासामर्थ्यविकलतया भवेत् । अथ तत्सम्बन्धिनः सन्तानस्य कार्यकारणत्वे तेषामपि कार्यकारणभावः । न, भिन्नयोः कार्यकारणभावादपरस्य सम्बन्धस्याभावात् सन्तानस्य च सर्वजगत्क्षणानन्तरभावित्वेन सर्वसन्तानताप्रसक्तिः स्यात् । किञ्च, तस्यापि नित्यत्वे क्षणकार्यत्वे च सत्कार्यवादप्रसक्तिः क्षणिकत्वे चाऽन्वयाऽप्रसिद्धेस्तस्य तत्कार्यताऽप्रसिद्धिः, व्यतिरेकश्च कार्यतानिबन्धनं क्षणिकपक्षे न सम्भवतीति प्रतिपादितमेव । न चात्रापि अपरसन्तानप्रकल्पनया कार्यकारणभावप्रकल्पनं युक्तम् अनवस्थाप्रसक्तेः । तथाहि – सन्तानस्यापि के सकल धर्मों का अनुगमन करेगी तो १उस में और कारण में भेद लुप्त हो जायेगा, २और कार्य भी कारण की तरह स्वपूर्वकालभावी धर्माक्रान्त हो जाने से वह उस का कार्य भी नहीं रह सकेगा । यदि सकल धर्मों का नहीं किन्तु कथंचित् कुछ धर्मों का अनुगमन होने का मानेंगे तो सर्वत्र कथंचिद् भाव मानने वाले अनेकान्तवाद (जैन मत) में आप का मजबूरन प्रवेश हो जायेगा । तथा कार्यक्षण में कारण सर्वथा असत् होता है' यह मान्यता भी भंग हो जायेगी क्योंकि अब तो कथंचित् असत् मानना होगा न कि सर्वथा । * सन्तानकृत कारण-कार्यभाव दुर्घट * –'पूर्वभाव के जरिये यदि कारणता-कार्यता की व्यवस्था शक्य नहीं है तो एक सन्तानगत पूर्वापर क्षणों में समानसन्तानमध्यवर्ती होने से कारण-कार्यभाव हो सकता है, अत: कोई पूर्वोक्त दोष नहीं होगा-' ऐसा भी कहना गलत है, क्योंकि पूर्वापरक्षणों से अतिरिक्त जब कोई सन्तान जैसी चीज ही नहीं है तो उस के बल पर कारण-कार्य व्यवस्था कैसे शक्य होगी ?! यदि पूर्वापरक्षणों से अतिरिक्त सन्तान पदार्थ का अंगीकार कर लेंगे, तब तो अर्थक्रियासामर्थ्य भी उसी में रहेगा, न कि क्षणों में, फलतः सत्त्व भी सन्तान का मान्य होगा न कि क्षणों का, क्योंकि उन में अर्थक्रिया का सामर्थ्य ही नहीं है । यदि कहा जाय – पूर्वापरक्षणों का सन्तान के साथ कुछ सम्बन्ध अवश्य मानना होगा, अतः सन्तान में कारण-कार्यभाव मानने पर उसके सम्बन्धी क्षणों में भी कारण-कार्यभाव की व्यवस्था घट जायेगी - तो यह व्यर्थ प्रलाप है. क्योंकि सन्तान और सन्तानी (पूर्वापरक्षणों) का भेद पक्ष स्वीकार किया है, और भेद पक्ष में उन दोनों में जन्य-जनकभाव के अलावा और कोई सम्बन्ध मौजूद नहीं होता । दूसरी बात यह है कि सारे जगत् में सकल पदार्थ मिल कर एक ही सन्तान शेष बच जायेगा, क्योंकि कोई भी एक सन्तानव्यक्ति सारे जगत् के सर्व पदार्थक्षण के उत्तर में जन्म लिया हुआ होता है, इसलिये वह विश्वगत समस्तक्षणों का सन्तान कहा जायेगा न कि सिर्फ कपालक्षणों का या तन्तुक्षणों का । अत: घटसन्तान या वस्त्रसन्तान इत्यादि पृथक् पृथक् सन्तान लुप्त हो जायेंगे । * सन्तानपक्ष में अन्वय-व्यतिरेक दुर्घट * ___ यदि सन्तान को नित्य मान कर अनेक क्षणों के कार्यरूप माना जायेगा तो नित्य यानी पूर्वकाल में विद्यमान हो कर क्षणजन्य होने से सत्कार्यवाद आप के गले पड जायेगा । यदि सन्तान को क्षणभंगुर मानेंगे तो अन्य क्षणों के साथ उसका ‘अन्वय सहचार यानी एक की विद्यमानता में ही दूसरे का होना' यह बात न होने से सन्तान में या किसी भी कार्य में क्षणजन्यत्व की संगति नहीं बैठेगी । क्षणिकवाद में यह एक बडा दूषण है और दूसरा यह है कि कार्यकारण भाव संगत करने के लिये जो व्यतिरेक सहचार चाहिये वह भी असंभव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003805
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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