________________
पञ्चमः खण्डः - का० ५०
२०३ न्यथा, प्रागपि कार्यावस्थात एकान्तेन तत्सत्त्वनिबन्धनत्वात् तेषाम्, अन्यथा कथंचित् सत्त्वेऽनेकान्तवादापत्तेर्दोषाभाव एव स्यात् । साङ्ख्या अपि असत्कार्यवाददोषान् असदकरणादीन् यान् वदन्ति ते सर्वे तेषां सत्या एव, एकान्ताऽसति कारणव्यापाराऽसम्भवादन्यथा शशशृङ्गादेरपि कारणव्यापारादुत्पत्तिः स्यात् ।
अथ शशशृङ्गस्य न कारणावस्थायामसत्त्वादनुत्पत्तिः किन्तु कारणाभावात्, घटादेस्तु मृत्पिण्डावस्थायामसतोऽपि कारणसद्भावादुत्पत्तिः । ननु कुतः शशशृङ्गस्य कारणाभावः ? 'अत्यन्ताभावरूपत्वात् तस्ये ति चेत् तदेव कुतः ? 'कारणाभावात्' इति चेत् सोऽयमितरेतराश्रयदोषः । घटादीनामपि च मृत्पिण्डावस्थायामसत्त्वे कुतः कारणसद्भावः ? 'प्रागसत्त्वादेव तत्र कारणसद्भावः, सति कारणव्यापाराऽसम्भवात्' इति चेत् ? असदेतत्, घटस्य मृत्पिण्डावस्थायां सत्त्वे प्रागनवस्थायोगादसत्त्वेऽपि शशशृंगस्येव तदनुत्पत्तेः । अथाऽस्योत्पत्तिदर्शनात् प्रागभावः न शशशृङ्गस्य । न, इतरेतराश्रयदोषप्रसक्तेः । तथाहि - यावदस्य(न) प्रागभावित्वं न तावदुत्पत्तिसिद्धिः यावच्च नोत्पत्तिसिद्धिः न तावत् प्रागभावित्वसिद्धिरिति होना चाहिये, एक नय का अभिनिवेश न हो तो वह मिथ्या नहीं हो सकता, क्योंकि कार्यावस्था के पूर्वकाल में भी एकान्ततः कार्यसत्त्व ही मिथ्यात्व का मूल प्रयोजक है । यदि एकान्ततः कार्यसत्त्व के बदले कथंचित् कार्यसत्त्व माना जाय तो अनेकान्तवाद प्राप्त होने पर एक भी दोष नहीं रहेगा ।
तथा सांख्यवादी भी असत्कार्यवाद में जिन दोषों का – (सांख्यकारिका ९ से) असदकरण, उपादानग्रहण आदि का निदर्शन करता है, वे दोष भी सत्य हैं, क्योंकि एकान्त असत् के लिये कारणों का व्यापार सम्भव नहीं है, यदि वह सम्भव होता तो शशसींग की निष्पत्ति भी कारणव्यापार से सम्भव हो सकती थी ।
* शशसींग की उत्पत्ति क्यों नहीं होती ? * यदि यहाँ कहा जाय कि – 'शशसींग का अनुद्भव कारणावस्था में उस का सत्त्व न होने से नहीं, किन्तु कारणों के न होने से होता है । घट भी मिट्टिपिण्ड की दशा में असत् है किन्तु उस के कारणों की मौजूदगी से उस की उत्पत्ति होती है ।' – इस के ऊपर प्रश्न है कि जब घट के कारण हैं तब शशसींग के क्यों नहीं हैं ? यदि उस के कारण नहीं है क्योंकि वह अत्यन्ताभावरूप यानी अत्यन्तासत् है – ऐसा कहा जाय तो पुनः प्रश्न होगा कि घट उत्पत्ति के पूर्व अत्यन्ताभावरूप नहीं है तो शशसींग क्यों वैसा है ? यदि इस के उत्तर में कारणाभाव को दिखायेंगे तो अन्योन्याश्रय दोष होगा, क्योंकि कारणाभाव का प्रयोजक अत्यन्त असद्रूपता और अत्यन्तासद्रूपता का प्रयोजक कारणाभाव दिखाया जाता है । शशसींग का कारणसद्भाव नहीं होता तो मिट्टीकाल में घट का भी कारणसद्भाव कैसे होता है ? “मिट्टी काल में उस का प्रागभाव होता है इसलिये घट के कारणों का सद्भाव होता है, प्रागभाव के बदले घट-सत्ता होने पर तो कारणों का व्यापार ही असम्भव हो जायेगा।" - ऐसा कहना अयोग्य है, मिट्टीकाल में सिर्फ दो विकल्प हैं, घट यदि उस काल में होगा तो प्रागभावावस्था नहीं कही जा सकती और यदि मिट्टीकाल में घट असत् है तो शशसींग की तरह उस की भी उत्पत्ति अथवा प्रागभाव अशक्य रहेंगे । यदि कहा जाय – उत्तरकाल में घटोत्पत्ति का दर्शन होता है इस लिये उस का मिट्टीकाल में पूर्वाभाव कहा जा सकता है, किन्तु शशसींग की उत्पत्ति का दर्शन कभी नहीं होता इसलिये उस का पूर्वाभाव नहीं माना जा सकता । – ऐसा कहने पर भी ज्ञप्ति में अन्योन्याश्रय दोष होगा । देखिये - जहाँ तक घट का प्रागभाव सिद्ध नहीं वहाँ तक उस की उत्पत्ति सिद्ध नहीं होगी और उत्पत्ति की सिद्धि न हो जाय तब तक प्रागभाव सिद्ध नहीं होता । यदि ऐसा कहा जाय -- मिट्टी आदि कारण कार्यवंचित होते हैं यही प्रागभाव है जो कि उत्पत्ति
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org