SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सम्मति-तर्कप्रकरणम् क्षण्यबुद्धिविषयता, तर्हि परमाण्वादीनामपि तत एव तद्बुद्धिप्रवृत्तिर्भविष्यतीति व्यर्थं विशेषाख्यपदार्थपरिकल्पनम् । अथ विशेषेष्वपरविशेषयोगाद् व्यावृत्तबुद्धिपरिकल्पनायामनवस्थादिबाधकोपपत्तेरुपचारात्तेषु तद्बुद्धिः। न, तथाभूतविज्ञानाधाराणां योगिनामयोगित्वप्रसक्तेः, तद्बुद्धेः “विशेषा इव' इति स्खलद्रूपतया प्रवृत्तावनिर्णयबुद्ध्यधिकरणत्वात्, तेषां 'विशेषा एव' इत्यस्खलद्रूपबुद्ध्यधिकरणत्वेऽपरविशेषविकलानां विशेषाणां परमाण्वादीनामिवाऽविशेषरूपतया तद्बुद्धेविपर्यस्तरूपत्वेन तदाधाराणां कथं नाऽयोगित्वम् ? यदि च बाधकोपपत्तेर्विशेषेषु व्यावृत्तबुद्धि परविशेषनिबन्धना तर्हि परमाण्वादिष्वपि भिन्नविशेषनिबन्धना नासावभ्युपगन्तव्या, तेषां तत्र भिन्नाभिन्नव्यावृत्तरूपकरणानुपपत्तेर्बाधकस्य सद्भावात् । यदप्यत्राध्ययनायुक्तं प्रतिसमाधानम् “यथा श्वमांसाशुच्यादीनां स्वत एवाऽशुचित्वमन्येषां च भावानां तद्योगात् तत्, तथेहापि तादात्म्याद्विशेषेषु स्वत एव व्यावृत्तप्रत्ययहेतुत्वम् परमाण्वादिषु तु तद्योगात् । किञ्च, अतदात्मकेष्वपि अन्यनिमित्तः प्रत्ययो भवत्येव यथा प्रदीपात् पटादिषु न पुनः पटादिभ्यः हो जायेगा। यदि यह कहा जाय – विशेषों में परस्पर वैलक्षण्य अन्यविशेष प्रयुक्त नहीं किन्तु स्वमात्रप्रयुक्त ही होता है अतः अपर विशेष के विना भी उन में विलक्षणबुद्धिविषयता घट सकेगी। - तो फिर परमाणु आदि में भी परस्पर वैलक्षण्य स्वमात्रप्रयुक्त मान कर विलक्षणबुद्धिविषयता का उपपादन हो सकता है, फलतः विशेषसंज्ञक पदार्थ की कल्पना निरर्थक है। यदि ऐसा कहा जाय – ‘परमाणु आदि में विलक्षणप्रतीति के उपपादनार्थ विशेषों की कल्पना उचित है क्योंकि उस में कोई बाधक नहीं है, किन्तु विशेषों में यदि अन्य विशेषों से व्यावृत्ताकार बुद्धि की कल्पना करने जायेंगे तो अनवस्थादि बाधक सिर उठा सकते हैं, अतः विशेषों में होनेवाली विलक्षणप्रतीति को औपचारिक मान ली जाय यही उचित है।' – तो यह अयुक्त है, क्योंकि तब औपचारिक (प्रत्यक्ष) बुद्धि के आश्रयभूत योगीयों में अयोगित्व प्रसक्त होगा। कारण, यदि परमाणु आदि विषय में 'ये विशेष जैसे हैं' ऐसी "स्खलितरूप से योगिजनों की औपचारिक बुद्धि प्रवृत्त होने पर योगिजन अनिश्चयात्मकबुद्धि के आश्रय बन जायेंगे मतलब कि अयोगी बन जायेंगे। और 'इन में अन्य विशेष हैं' ऐसी अस्खलितरूप से औपचारिकबुद्धि के आश्रय होने पर, जो अपर विशेषशून्य हैं वे तो परमाणु आदि की तरह अविशेषरूप होने से उन में विशेषरूपता की बुद्धि, विपर्ययरूप होने के कारण, उन के आश्रयभूत योगिजन में अयोगित्व क्यों प्रसक्त नहीं होगा ? यदि विशेषों में व्यावृत्ताकार बुद्धि को अपरविशेषमूलक मानने में बाधक विद्यमान होने से उस को अपरविशेषमूलक नहीं मानते हैं तो परमाणुआदि में होनेवाली व्यावृत्ताकार बुद्धि को भी भिन्नविशेषमूलक मानने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि परमाणु यदि स्वतः भिन्न होंगे तो विशेष के द्वारा उन का व्यावृत्तीकरण अशक्य है (अनावश्यक है)। यदि स्वयं अभिन्न होंगे तो इस पक्ष में भी व्यावृत्तिकरण शक्य नहीं क्योंकि अभिन्न हैं उन का भेद कैसे होगा ? यह बाधक यहाँ भी विद्यमान है। ____ वैशेषिकों के अध्ययनादि विद्वानों ने इस चर्चा में जो यह प्रतिसमाधान में कहा है – “कुत्ते के माँस आदि में स्वतः ही अशुचिपन होता है जब कि अन्य भावों में स्वतः नहीं किन्तु उन के योग से अशुचिपन होता है। ऐसे ही विशेषों में विशेषों का तादात्म्य होने से वे स्वयं ही व्यावृत्तप्रतीति के उपपादक होते हैं जब कि परमाणुआदि में विशेषों के समवाययोग से ही व्यावृत्तबुद्धि उत्पन्न होती है। तथा, जो तदात्मक न हो उन के म. स्खलद् = विषयग्रहणविपरीताकारम् (प्र.वा.१-२०९ टीका)। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003805
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy