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________________ पञ्चमः खण्डः - का० ४९ च साध्ये अनुमानबाधः प्रतिज्ञायाः । तथाहि-पदार्थानां क्रिया भवन्ती क्षणिकानां भवेत् अक्षणिकानां वा ? न तावत् क्षणिकानाम् उत्पत्तिदेश एव तेषां ध्वंसाद् देशान्तरप्राप्त्यसम्भवात् । तथाहि यो यत्र देशे ध्वंसते स न तदन्यदेशमाक्रामति यथा प्रदीपादिः, जन्मदेश एव च ध्वंसन्ते सर्वभावा इति व्यापकविरुद्धोपलब्धिः । न चाऽसिद्धता हेतोः अन्यस्य क्षणिकत्वायोगात् । अथ यदि नाम भावानां क्षणिकतेष्यते तथाप्युत्पत्तिकाल एव किं नैषां क्रिया भवति ? नैतत्-यतः पाश्चात्यदेशविश्लेषे पुरोवर्तिदेशश्लेषे च सति गन्ता भावो भवति नाकाशादिः । न चैकक्षणमात्रभाविनः क्रियाकालविलम्बः सम्भवति येन प्राक्तनदेशपरिहारेणापरदेशमाक्रामेत् सत्ताकाल एव ध्वंसवशीकृतत्वात् । तन्न जन्मकालभाविनी क्रिया । नापि पूर्वोत्तरयोः कोट्योः, तस्यैव तदानीमभावात् । अतः उत्पत्तिक्षणात् परतः क्षणमपि यो न व्यवतिष्ठेत तस्याऽऽस्तां विदूरतरदेशावक्रमणसम्भवः, परमाणुमात्रप्रदेशसंक्रमणमपि नास्तीति कुतः क्षणिकस्य क्रिया ?! नाप्यक्षणिकस्यासौ युक्ता । यत एकरूपं हि सर्वदा वस्त्वक्षणिकमुच्यते, न च तस्याऽऽकाशवत् प्रतिज्ञा में अनुमानबाधा आ पहुँचेगी । कैसे यह देखिये - उत्पन्न होने वाली क्रिया क्षणिक पदार्थों में होगी या अक्षणिक पदार्थों में ये दो विकल्प हैं । * क्षणिक भाव में क्रियाजन्म अशक्य * क्षणिक पदार्थों में क्रियोत्पत्तिवाला विकल्प प्रशस्त नहीं है, क्योंकि क्षणिक पदार्थ जिस देश में उत्पन्न हुआ उसी देश में ध्वस्त हो जाता है, अन्य देश के साथ उसका संयोग यानी प्राप्ति शक्य ही नहीं है तो तत्प्रेरक क्रिया का क्या मतलब ? प्रयोग देखिये - जो जिस देश में ध्वस्त होता है वह अन्यदेश में नहीं जा सकता जैसे प्रदीपादि । क्षणिक सर्वभाव जन्मस्थान में ही ध्वस्त होते हैं अतः अन्यत्र गति असम्भव है । यहाँ अन्यदेशगमन का व्यापक है जन्मदेश में अध्वंस, उसका विरोधी है जन्मदेश में ध्वंस, उसकी उपलब्धि यहाँ हेतु है । हेतु में असिद्धि दोष को अवकाश नहीं है, क्योंकि जो जन्मदेश में ध्वस्त नहीं होगा उस में क्षणिकत्व नहीं हो सकता, यहाँ तो क्षणिक भाव का विकल्प है । प्रश्न :- भाव क्षणिक भले हो, किन्तु उसकी उत्पत्तिक्षण में अन्यदेशप्राप्तिप्रेरक क्रिया उस में क्यों नहीं हो सकती ? उत्तर :- प्रश्न अनुचित है, वास्तविकता ऐसी है कि पूर्वदेश को छोड कर अग्रिम देश में भाव के गमन की बात है आकाशादि की तो नहीं है । अब भाव तो एकक्षणमात्रस्थायी है वह क्रियाकाल के लिये अपने ध्वंस में विलम्ब तो नहीं कर सकता कि जिस से पूर्वदेश का त्याग कर के अन्य देश में गमन कर सके; वह तो अपनी सत्ताक्षण में ही ध्वंस को समर्पण कर देता है। अतः जन्मक्षण में क्रिया का उद्भव अशक्य है । जन्म के पूर्व या उत्तरक्षण में तो वह स्वयं ही नहीं है तो क्रिया कहाँ उत्पन्न होगी ? फलित यही होगा कि उत्पत्तिक्षण के दूसरे क्षण में जो टिक नहीं पाता वह अति दूर देश में संक्रमण की बात तो दूर, परमाणुप्रमित देश में भी संक्रमण करने में सक्षम नहीं है । निष्कर्ष -- क्षणिक भाव में क्रिया का उद्भव अशक्य है । * अक्षणिक भाव में क्रियोत्पत्ति अशक्य * अक्षणिक भाव में क्रिया का उद्भववाला विकल्प भी प्रशस्त नहीं है । अक्षणिक उस वस्तु को कहते हैं जो सर्वकाल में एक अविचलित स्वरूपधारी हो । आकाश सर्वकाल में एक अविचलित स्वरूपधारी होने से Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003805
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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