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________________ १३६ श्री सम्मति-तर्कप्रकरणम् ____ अथ संयोगाख्यपदार्थान्तरसापेक्षत्वं तेषां साध्यते तदा तथाविधेन धर्मेण हेतोरन्वयाऽसिद्धेरनैकान्तिकता, दृष्टान्तस्य च साध्यविकलताप्रसक्तिः । अथ अवस्थान्तरविशेषापेक्षा बीजादयः स्वकार्योत्पत्तिहेतवो न पुनरर्थान्तरभूतसंयोगापेक्षा इति कुतः सिद्धं येन सापेक्षत्वमात्रे साध्ये सामान्येन सिद्धसाध्यतादोष उद्भाव्यते ? यदि हि संयोगमात्रसापेक्षा एव ते तदारम्भकास्तदा प्रथमोपनिपात एव अंकुरादिकार्यप्रसवो बीजादिभ्यो भवेत् पश्चाद्वद् अविकलकारणत्वात् । अथ प्रथमोपनिपाते न तदुदयः पश्चादपि न स्यात् पूर्ववद् विकलकारणत्वाऽविशिष्टत्वात् । न च बीजादेः संयोगेऽनुपकारिणि अपेक्षा युक्ता अतिप्रसङ्गात् । न च तत्कारणानां क्षिति-बीजादीनामेकस्वभावतया नित्यसंनिहितत्वात् संयोगानां कादाचित्कत्वं युक्तम् । अथ क्षित्यादीनां संयोगेऽपि जन्ये कर्मादिसापेक्षत्वात् संयोगस्य कादाचित्कत्वम्, न, तत्रापि तुल्यपर्यनुयोगत्वात् । तथाहि - कर्मापि कस्मात् सर्वदा न जनयति ? इति पर्यनुयोगस्याऽव्यावृत्तिरेव । न च 'तत्कारणाभावात्' इत्युत्तरं संगतम् नित्यकारणाभ्युपगमे तस्यापि हैं न कि अविशिष्टावस्था में भी । अतः ‘अपने कार्य को उत्पन्न करने के लिये बीजादि को किसी की अपेक्षा है' इतना ही अगर आप सिद्ध करना चाहते हैं तब तो सिद्धसाधन दोष खडा है, क्योंकि हम भी मानते हैं कि अव्यवधानस्वरूप अवस्थाविशेष के सापेक्ष ही बीजादि अंकुरादि कार्य का उत्पादन करते हैं, न कि अप्रसिद्ध संयोग के सापेक्ष । * संयोगसाध्यक अनुमान में अनैकान्तिक दोष * यदि यह कहा जाय -- 'चैत्र सकुण्डल है' इत्यादि प्रतीतियों में विशेषप्रत्ययत्व हेतु से हम संयोगसंज्ञकभावसापेक्षत्व सिद्ध करना चाहते हैं -- तो हेतु में अनैकान्तिकता दोष होगा, क्योंकि तथाविध साध्य के साथ हेतु की व्याप्ति सिद्ध नहीं है और व्याप्यत्वासिद्ध हेतु साध्यद्रोही बन जाता है । तथा, दृष्टान्त में भी वैसा साध्य प्रसिद्ध न होने से दृष्टान्तासिद्धि दोष भी लगेगा । प्रश्न :- आपने अंकुरादि कार्योत्पत्ति के लिये बीजादि को अर्थान्तरभूत संयोग की नहीं किन्तु विशिष्टावस्था की अपेक्षा होती है यह किस प्रमाण से सिद्ध कर दिखाया है जिस से यह गर्जना करते हो कि सामान्यतः ‘यत्किंचित्सापेक्षता' ही सिद्ध करने में सिद्धसाधन दोष होगा ? उत्तर :- संयोगसापेक्षता मानने में यह विपदा होगी कि बीजादि को अपने कार्य के उत्पादन में सिर्फ संयोग की ही अपेक्षा रहती हो तब तो भू-जल-बीज का आपस में संयोग हो जाने पर त्वरित अंकुरादि कार्योत्पत्ति हो जानी चाहिये, जैसे कुछ समय बाद सम्पूर्ण कारण सामग्री से होता है वैसे उस वक्त भी संयोग हो जाने पर तो आप के मत में सामग्री सम्पूर्ण हो जाने से त्वरित अंकुर जन्म हो जाना चाहिये, किन्तु नहीं होता। अतः हमारा वह निर्णय ठीक है कि संयोग की नहीं किन्तु कार्याव्यवहितपूर्वक्षण में जैसी विशिष्टावस्था प्राप्त होती है उसी की अपेक्षा होती है, उस के विरह से ही भू-जल-बीज संयोग होने पर भी पहले कार्य नहीं होता था । जब संयोग का प्रथम आगमन होने पर भी कार्य नहीं होता तो उस का मतलब यह हुआ कि कारणसामग्री में कुछ वैकल्य जरूर है, अतः उस वैकल्य के रहते हुए संयोग के होने पर भी भावि में कार्य होने की आशा नहीं की जा सकती । संयोग से यदि बीजादि का कोई उपकार नहीं होता तो अनुपकारी संयोग की कार्योत्पत्ति में अपेक्षा मानना गलत है, क्योंकि तब तो अनुपकारिभूत सारे विश्व की अपेक्षा मानने का अतिप्रसंग हो सकता है । दूसरी बात यह है कि क्षिति-बीजादि को आप क्षणिक नहीं मानते किन्तु अनेकपलस्थायी अथवा नित्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003805
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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