________________
८६
श्री सम्मति-तर्कप्रकरणम् तथा च प्रयोगः – ये क्रमवत्कार्यहेतवस्तेऽनित्याः, यथा क्रमवदंकुरादिनिवर्त्तका बीजादयः, तथा च परमाणव इति स्वभावहेतुः ।।
यदपि अविद्धकर्णोक्तमणूनां नित्यत्वसाधकं प्रमाणम् – 'परमाणूत्पादकाभिमतं कारणं सद्धर्मोपेतं न भवति, सत्त्वप्रतिपादकप्रमाणाऽविषयत्वात् शशशृंगवत्' इति । तत्र कुविन्दादेरणूत्पादककारणस्य सत्त्वप्रतिपादकप्रमाणविषयत्वाद् असिद्धो हेतुः । यथा च पटादयः परमाण्वात्मकाः कुविन्दोत्पाद्यास्तथा प्रदर्शयिष्यामः । देश-काल-स्वभावविप्रकृष्टानां च भावानां सदुपलम्भकप्रमाणनिवृत्तावपि सत्त्वाऽविरोधाद् अनैकान्तिकश्च हेतुः । ततो न अण्वनित्यत्वप्रसाधकानुमानप्रतिज्ञाया अनुमानबाधा । न च 'यत एव प्रमाणात् परमाणवः प्रसिद्धाः तत एव नित्यत्वधर्मोपेता अपि ते' इति तद्ग्राहकप्रमाणबाधितत्वात् तदनित्यत्वप्रसाधकस्यानुमानस्यानुत्थानम् प्रमाणतोऽप्रसिद्धौ चाणूनामाश्रयासिद्धतया तत्' इति वाच्यम् सर्वस्य प्रमाणविषयस्य अनित्यत्वधर्मोपेतस्यैव तद्विषयत्वात् अन्यथाभूतस्य तदजनकत्वे तद्विषयत्वानुपपत्तेः परमाणु नित्य नहीं है । यहाँ हेतुप्रयोग इस प्रकार देखिये -- जो क्रमबद्ध कार्यकारि हेतु होते हैं वे अनित्य होते हैं, उदा० क्रमबद्ध अंकूर-किसलय आदि कार्य करने वाले बीज आदि । परमाणु भी क्रमबद्ध व्यणुकादि कार्य करने वाले हैं इस लिये अनित्य होने चाहिये । यहाँ ‘क्रमबद्धकार्यकारिहेतुत्व' यह स्वभावहेतु-प्रयोग है ।
* अविद्धकर्णप्रदर्शित परमाणुनित्यत्व अनुमान * परमाणुओं में नित्यत्व की सिद्धि के लिये एक अनुमान ‘अविद्धकर्ण' विद्वान् ने ऐसे कहा है -
“परमाणुओं के जनकरूप में अभिप्रेत कारण सत् पदार्थ का समानधर्मी नहीं होता, क्योंकि वह सत्त्वसाधकप्रमाण का विषय नहीं है जैसे शशसींग'' । ___इस प्रयोग में हेतु असिद्ध है क्योंकि वस्त्रादिस्वरूप अणुओं के उत्पादकरूप में प्रसिद्ध जुलाहा आदि कारण, सत्त्वसाधकप्रमाण का विषयभूत ही है । वस्त्रादि कैसे अणु-आत्मक ही हैं और वे किस प्रकार जुलाहे से निष्पन्न होते हैं यह तथ्य आगे बताया जायेगा । तदुपरांत, कुछ ऐसे भी पदार्थ (पिशाच जैसे) होते हैं जो देशकाल एवं स्वभाव से हमारे लिये दूरवर्ती होने पर भी सत्त्वशाली होते हैं, भले ही वहाँ सत्त्वसाधक प्रमाण न प्रसरता हो; अतः पूर्वोक्त प्रयोग का हेतु साध्यद्रोही ठहरता है । अब यह फलित होता है कि अणुओं में अनित्यत्व की सिद्धि के लिये पहले जो अनित्यवादी ने अनुमानप्रयोग किया है, उस में कोई प्रतिज्ञाबाध जैसा कुछ नहीं है ।
* धर्मीसाधक प्रमाण से नित्यत्वसिद्धि अशक्य * __ शंका :- लघु-परिमाण कहीं पर जरूर विश्रान्त है... इस प्रकार के अनुमान से चरम अवयव के रूप में अणु की सिद्धि होती है, यदि इसे जन्य माना जाय तो उस के भी अवयव सिद्ध होने पर चरमावयवत्व के भंग की आपदा प्रसक्त होती है और वह अणुसाधक अनुमान भी व्यर्थ हो जाने की मुसीबत पैदा हो जाती है । अतः जिस अनुमान से अणु सिद्ध होगा उसी से वह नित्यत्वधर्मशाली ही सिद्ध होता है । अतः क्रमिककार्यहेतुत्वहेतुक अनित्यत्वसाधक अनुमान, धर्मी(अणु)साधकप्रमाण से बाधित हो जाने पर, प्रस्तुतिपात्र ही नहीं रहता। यदि उक्त धर्मीसाधक प्रमाण से अणु की सिद्धि ही नहीं मानेंगे तब तो अणु में अनित्यत्वसाधक अनुमान का हेतु पक्षशून्य हो जाने से आश्रयासिद्धिदोषग्रस्त बन जायेगा ।
उत्तर :- यह शंका ठीक नहीं है, क्योंकि जितने भी प्रमाणसिद्ध विश्ववर्ती पदार्थ हैं वे सब अनित्यत्व
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org