________________
६६
सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-२
न चाश्रयासिद्धस्य परैर्गमकत्वमभ्युपगम्यते अन्यथा सामान्यादिनिषेधे ‘सामान्यस्याऽसिद्धौ परं प्रत्याश्रयासिद्धो हेतुः' इति दोषोद्भावनमयुक्तियुक्तं भवेत्।।
अथ घटादिज्ञानस्य प्रमाणत: प्रसिद्धर्नायं दोषः। ननु तत्प्रसिद्धिरध्यक्षतः, अनुमानतो वा प्रमाणान्तरस्यात्रानधिकारात् ? न तावदध्यक्षतः, तस्येन्द्रियार्थसंनिकर्षजत्वाभ्युपगमात्, न च ज्ञानस्य 5 चक्षुरादीन्द्रियेण संनिकर्षः, न च तद्व्यतिरिक्तमिन्द्रियान्तरमस्ति। अथ मनोलक्षणमन्तःकरणमस्ति तस्य
च ज्ञानेन संयुक्तसमवायः संनिकर्ष इति तत्प्रभवमध्यक्षं तत्र प्रवर्त्तते इति। तथाहि- आत्मना मनः संयुक्तम् आत्मनि च समवेतं ज्ञानमिति मनोज्ञानेन्द्रियार्थसंनिकर्षोत्पन्नतदेकार्थसमवेताध्यक्षग्राह्यत्वाद् घटादिज्ञानस्य कथमाश्रयासिद्धत्वादिहतोर्दोषः ? युक्तमेतद् यदि इन्द्रियं मनः सिद्धं भवेत् । अथानुमानात् तत्सिद्धिः ।
तथाहि- घटादिज्ञानज्ञानमिन्द्रियार्थसंनिकर्षजम् प्रत्यक्षत्वे सति ज्ञानत्वात् चक्षुरादिप्रभवरूपादिज्ञानवत् । न, 10 स्वप्रकाशवादी कहते हैं कि इस अनुमानप्रयोग में हेतु स्वरूपासिद्ध है एवं आश्रयासिद्धि दोष
भी है। ज्ञानपरोक्षतावादी नैयायिक मत में घटादि ज्ञान ही प्रत्यक्षादिसिद्ध न होने से स्वयं (पक्ष ही) असिद्ध है अतः आश्रयासिद्धि दोष हुआ। तथा ज्ञानरूप धर्मि प्रसिद्ध न होने से उस का आश्रित ज्ञेयत्व हेतु भी स्वरूपतः असिद्ध हो गया। नैयायिकवर्ग आश्रयासिद्ध हेतु को सद्धेतु नहीं मानते हैं।
यदि उसे सद्धेतु मानेंगे तो जातिपदार्थ के निषेधकों के प्रति उसने जो कहा है कि 'सामान्य के निषेध 15 के लिये जो हेतु प्रयुक्त होगा वह आश्रयासिद्ध दोष से दुष्ट बन जायेगा क्योंकि हेतु के आश्रयरूप
जाति का आप अस्वीकार करते हैं' ऐसा कहते हुए नैयायिकने जो दोषाविर्भाव किया है वह अयुक्त ठहरेगा।
नैयायिक :- घटादिज्ञान प्रमाणसिद्ध ही है फिर हमारे अनुमानप्रयोग में हेतु को आश्रयासिद्धि दोष कैसे होगा ? 20 जैन : किस प्रमाण से घटादिज्ञान को आप सिद्ध करेंगे ? प्रत्यक्ष प्रमाण से या अनुमानप्रमाण
से ? इन दो के अलावा तीसरे किसी प्रमाण का तो यहाँ कुछ उपजने वाला नहीं है। प्रत्यक्ष तो इन्द्रिय और अर्थ के संनिकर्ष से (संयोजन से) उत्पन्न होता है अत यहाँ प्रत्यक्ष से ज्ञानसिद्धि असंभव है, चक्षुआदि पाँच में से एक भी इन्द्रिय का ज्ञान के साथ संनिकर्ष नहीं होता। चक्षु आदि पाँच
के अलावा और कोई इन्द्रिय ही नहीं है। 25 नैयायिक :- पाँच के उपरांत भी एक ' मन' इन्द्रिय है, उस को अन्तःकरण (अभ्यन्तर इन्द्रिय)
कहा जाता है। ज्ञान के साथ मन का संयुक्तसमवाय संनिकर्ष होता है तब मन इन्द्रिय से ज्ञान का (उस ज्ञान से भिन्न) प्रत्यक्षज्ञान होता है। संयुक्तसमवाय संनिकर्ष कैसे है यह देखिये - मन से संयुक्त है आत्मा, उस में ज्ञान समवेत (यानी समवाय संबंध से रहनेवाला) है - इस प्रकार मनःसंयुक्त (आत्मा)
का समवाय ज्ञान में रह गया। तात्पर्य घटादि ज्ञान मनरूपी इन्द्रिय - ज्ञानरूप अर्थ के संनिकर्ष से 30 उत्पन्न होने वाले प्रत्यक्ष से, जो कि ज्ञान के ही समान अधिकरण आत्मा में समवेत है - उस से
घटादिज्ञान गृहीत होता है, इस प्रकार घटादि ज्ञान प्रत्यक्षसिद्ध होने पर ज्ञेयत्व हेतु आश्रयासिद्धि दोष से दूषित कैसे होगा ?
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org