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________________ ५४ सन्मतितर्कप्रकरण - काण्ड - २ प्रमाणस्य सामान्यलक्षणम् तया स्वकारणस्य प्रमाणाभासेभ्यो व्यवच्छिद्यमानत्वात् । इन्द्रियजत्वादिविशेषणविशेषिता सैवोपलब्धि: प्रमाणस्य विशेषलक्षणम् इति स्थितं सामग्री प्रमाणमिति । सामग्रीप्रामाण्यनिषेधः कारकसाकल्ये विकल्प-चतुष्कम् अत्र प्रतिविधीयते— यत् तावदुक्तम् 'कारकसाकल्यस्य करणत्वेनाभ्युपगमे पूर्वोक्तदोषाभाव:' इति अत्र वक्तव्यम् - किमिदं कारकसाकल्यम् ? किं ^ सकलान्येव कारकाणि आहोस्वित् तद्धर्मः, उत तत्कार्यम्, किंवा पदार्थान्तरम् इति पक्षाः । A तत्र न तावत् सकलान्येव कारकाणि साकल्यम् कर्तृकर्माभावे तेषां करणत्वानुपपत्तेः तत्सद्भावे वा नान्येषां कर्तृकर्मरूपता सकलकारकव्यतिरेकेणान्येषामभावात् भावे वा न कारकसाकल्यम् । अथ तेषामेव कर्तृकर्मरूपता । न तेषां करणत्वाभ्युपगमात् न च कर्तृकर्मरूपाणामपि तेषां करणत्वम् तेषां परस्परविरोधात् । 10 तथाहि-- ज्ञानचिकीर्षाधारता स्वातन्त्र्यं वा कर्तृता, निर्वर्त्यादिधर्मयोगिता कर्मत्वम्, प्रधानक्रियानाधारत्वम् न्यायदर्शन की तरह वैशेषिक दर्शन में भी प्रमाणसामान्य का यही लक्षण कहा गया है। यदि वैशेषिकदर्शन में जड सामग्री को प्रमाण मानने में झिझक हो तो ऐसा कहिये कि, १- तथाविध सामग्री से जन्य अर्थोपलब्धि जब अव्यभिचारादि विशेषणों से विशिष्ट हो तब वही प्रमाणसामान्य का लक्षण है, क्योंकि वह अपने कारणों को प्रमाणाभासों से व्यवच्छिन्न करती है, पृथक् कर दिखाती है । २ वही उपलब्धि अगर इन्द्रियजन्यत्वादिविशेषणों से विशिष्ट हो तब प्रमाणविशेष ( प्रत्यक्ष ) का लक्षण बन जाती है। आखिर बात यही सिद्ध होती है कि सामग्री ही प्रमाण है । 'कारकसाकल्य को * सामग्री की प्रमाणता का निषेध, कारकसाकल्य के चार विकल्प * कारकसाकल्य की अब प्रतिक्रिया की जाती है। यह जो कहा गया कि कारण मानने में पूर्वोक्त कोई दोष नहीं है।' उस के सामने ये विकल्प प्रश्न हैं क्या है यह करणात्मक 20 कारकसाकल्य ? सभी कारक या B उन कारकों का कोई धर्म ? या उन का कोई कार्य अथवा कोई अन्य ही पदार्थ ? ये चार विकल्पप्रश्न हैं । 5 15 - - ** A सकलकारकरूप साकल्य दुर्घट ** (A) पहला विकल्प, सकलकारकरूप साकल्य कारणरूप से घटता नहीं है । कर्त्ता-कर्म को छोड कर उन में करणत्व ही घट नहीं सकता । अर्थात् जिस कार्य के प्रति कोई कर्त्ता या कर्म नहीं होगा 25 उस कार्य का कोई करण भी नहीं हो सकता। यदि कहेंगे कि कर्त्ता और कर्म भी मानेंगे तो सवाल यह होगा कि किस को कर्त्ता और कर्म मानेंगे ? सकल कारकों के समुदाय से अतिरिक्त तो कोई कर्म या कर्त्ता नहीं होगा। यदि कारकसमुदायबाह्य व्यक्ति को भी यहाँ कर्म और कर्त्ता रूप में स्वीकार लेंगे तो कारक - साकल्य कहाँ रहा ? अब तो कारकवैकल्य हो गया, चूँकि कर्त्ता-कर्म तो कारक समुदाय से बाह्य पृथक्भूत है । अब बोलेंगे कि 'समुदित कारक ही स्वयं कर्त्ता और कर्मरूप मान लेंगे30 कारकों से बहिर्भूत नहीं मानेंगे, अतः कारक वैकल्य नहीं होगा ।' तो यह भी असंभव है, क्योंकि मानते हैं। यदि बोलेंगे 'करण भी मानेंगे एवं कर्त्ता - कर्म भी विरोध ही बाध है, एक ही समुदाय में पूर्णतया कर्तृत्व-कर्मत्व और आप तो समुदित कारकों को 'करण' मान लेंगे - क्या बाध है ?' Jain Educationa International For Personal and Private Use Only - - - www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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