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खण्ड - ४, गाथा - १
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साधकतमत्वमुपपन्नमिति प्रेरणीयम् यतो न सामग्र्यन्तर्गतानामेकदेशानां जनकत्वव्याघातः तेषामेव धर्ममात्रत्वात् सामग्र्यस्येति, जनकैकदेशापेक्षया तत्सामग्र्यस्य साधकतमत्वात् प्रमाणत्वमुपपन्नमेव ।
एतेन यत्परैः प्रेरितम् - "किल सामग्री करणम् तच्च कर्तृकर्मापेक्षम् सामग्रीजनकत्वेन तयोर्व्यापृतेरर्थान्तरभूतयोरभावात् किमपेक्ष्य साधकतमत्वमासादयेद्” [ ] इति - तदपि निरस्तम्; यतः कर्तृकर्मणोः सामग्रीजनकत्वेन स्थितयोः कथमसत्त्वम् ? तत्सद्भावे च तदपेक्षा कथं न तस्याः करणता ? 5 अथापि स्यात् तस्यास्तज्जन्यत्वे करणत्वव्याघातः अन्यतः सिद्धस्य करणत्वसद्भावात् । असदेतत्तो दृश्यत एव प्रदीपादेस्तज्जन्यस्यापि करणत्वसद्भाव इति न कश्चिद्व्याघातस्तज्जन्यत्व-करणत्वयोः । ततोऽव्यभिचारादिविशेषणार्थोपलब्धिजनिका सामग्री बोधाबोधस्वभावा तदेकदेशभूतकारणजन्या प्रमाणम् । वैशेषिका अप्येतदेव प्रमाणसामान्यलक्षणं प्रतिपादयन्ति । एतत्कार्यभूता वा यथोक्तविशेषणविशिष्टोपलब्धिः या समग्रता उन अवयवों का ही धर्मविशेष है। अतः उन एक एक अवयवों को जनकता होते हुए 10 उन्हें साधक या साधकतर मानेंगे और उन की अपेक्षा सामग्र्य को साधकतम मानने में कोई आपत्ति नहीं । निष्कर्ष, सामग्री का प्रामाण्य सुघटित 1
* सामग्री के साधकतमत्व के प्रति प्रश्न - समाधान *
सामग्री में उपरोक्त प्रकार से प्रमाणत्व या साधकतमत्व प्रसिद्ध है तब दूसरों के एक प्रश्न का भी समाधान मिल जाता है। प्रश्न- समाधान देखिये
प्रश्न :- हालाँकि सामग्री करण है किन्तु करण तो कर्त्ता-कर्म सापेक्ष ही होता है । किन्तु समस्या यह है कि कर्त्ता-कर्म सामग्री के जनक होते हैं, इसलिये सामग्री कर्ता-कर्म का व्यापाररूप है । व्यापार व्यापारी से पृथक् नहीं होता, अतः सामग्री से अतिरिक्त यहाँ कोई कर्त्ता-कर्म शेष नहीं बचते । तब कर्त्ता - कर्म सापेक्ष करण भी छू हो गया। तब किस की अपेक्षा रख कर सामग्री को साधकतम कहेंगे ?
समाधान :- कर्त्ता- कर्म सामग्री के जनक है, सामग्री कर्ताकर्मजन्य है यह तो ठीक है किन्तु इतनेमात्र 20 से कर्ता-कर्म असत् कैसे माने जाय ? व्यापार से व्यापारी पृथक् नहीं होता इत्यादि वाङ्मात्र से कर्त्ता - कर्म का अभाव दिखाना अयुक्त है । कर्त्ता और कर्म सत् हैं, क्यों उन की अपेक्षा सामग्री की करता न मानी जाय ? यदि कहा जाय 'सामग्री तो कर्त्ता - कर्म जन्य है, जो जिस से जन्य हो वह उस
ही सिद्ध रहता
का करण नहीं होता, क्यों कि करण तो कर्त्ता-कर्म निरपेक्ष अन्य किसी उपाय शिल्पी के सब लोहे के औजार शिल्पीनिर्मित नहीं होते, वे तो लुहार से सिद्ध होते 25
है । उदा० हैं ।' तो यह ठीक नहीं है क्योंकि 'करण अवश्य अन्यतः सिद्ध हो' ऐसा कोई नियम नहीं है । आदमी जब स्वयं दीप जला कर प्रकाश कर के लेखनादि करता है तब लेखनकर्त्ताजन्य दीपादि भी करण बनते ही हैं। इसलिये सामग्री में कर्तृ-कर्मजन्यत्व एवं कर्तृ-कर्मसापेक्ष करणत्व, दोनों के साथ रहने में कोई बाधा नहीं है ।
इस चर्चा का निष्कर्ष यह है कि
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अव्यभिचारादि विशेषणों से विशिष्ट अर्थोपलब्धिजनक अपने ही एक एक देशभूत कारकों से उत्पन्न होने वाली, चाहे बोधरूप हो या जडस्वरूप हो, ऐसी सामग्री ही प्रमाण है ।
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