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________________ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-२ प्रमेयसद्भावेऽपि पूर्वोदितस्य नियमस्य तुल्यता। न, कारकसाकल्यभावाभावनिमित्तत्वात् तन्मुख्यगौणभावस्य । तथाहि- कथंचित् कारकवैकल्ये तयोः सत्त्वेऽपि गौणता तत्साकल्ये कुतश्चिद् निमित्तान्तरात् यथोक्तप्रमितिलक्षणकार्यनिष्पत्तावगौणता, प्रमातृ-प्रमेययोः तयोश्चानुपपत्तौ साकल्यस्याऽसत्त्वम् अतः कारकसाकल्ये कार्यस्यावश्यंभाव इति तस्यैव साधकतमत्वम् । अनेककारकसन्निधाने उपजायमानोऽतिशयः सन्निपत्यजननं साधकतमत्वं यधुच्येत तदा न कश्चिद् दोषः । तथाहि- सामग्र्यैकदेशकारकसद्भावेऽपि प्रमितिकार्यस्यानुत्पत्तेरेकदेशस्य न प्रमाणता, सामग्रीसद्भावे त्ववश्यतया विशिष्टप्रमितिस्वरूपोपपत्तेः एकदेशतया तस्या एव सन्निपत्यजनकत्वेन साधकतमता। न चात्र किमपेक्षया तस्याः साधकतमत्वम् अन्यस्मिन्नसाधकतमे साधके साधकतरे वा सति तदपेक्षया तस्याः के बारे में कहा गया था कि सन्निपत्यजनक के उपस्थित होने पर नियमतः कार्य उत्पन्न होता है 10 – ऐसा ही नियम प्रस्तुत में मुख्य प्रमाता-प्रमेय के लिये कहा जा रहा है।' – तो यह ठीक नहीं है, प्रमाता या प्रमेय की गौण-मुख्यता स्वतः नहीं होती किंतु कारकसाकल्य के अभाव एवं भाव के ऊपर अवलम्बित होती है। देख लिजिए - (प्रमाता कुछ कारणवश किसी कारक को नहीं जुटा पाया तब) प्रमाता और प्रमेय के रहते हुए भी कर्मवश कोई कारक उपस्थित न रहा तब वही कारक मुख्य बन जायेगा, प्रमाता-प्रमेय गौण बन जायेंगे। मान लो किसी अन्य निमित्त से वह कारक प्रारम्भ 15 से ही उपस्थित है तब तो प्रत्यक्षादि प्रमात्मक बोधकार्य उत्पन्न हो कर ही रहेगा, वहाँ प्रमाता और प्रमेय गौण नहीं बनेंगे। इस बात में और सन्निपत्यजनकता के पूर्वोदित नियम में इतना फर्क हो जाता है। निष्कर्ष यही है कि प्रमेय एवं प्रमाता के न रहने पर कैसे भी कारकसाकल्य नहीं बन पाता, उन के होते हुए ही कारक एकजूट हो जाते हैं, कारकसाकल्य कैसे भी होना चाहिये, उस के विना कार्य नहीं होता, इसलिये कारकसाकल्य को साधकतम कह सकते हैं। * संनिपत्यजनन एक अतिशय, वही साधकतमत्व * ___ सन्निपत्यजनकतावादी को यदि सन्निपत्यजननरूप अतिशय - जो कि अनेक (सर्व) कारकों के संनिहित रहने पर ही प्रादुर्भूत होता है - साधकतम अभिमत हो तो कोई दोष नहीं होगा। देखिये- सामग्री का एक एक अवयव पृथक् पृथक् रहते हुए भी प्रमारूप कार्य उत्पन्न नहीं होता, अत एव एक एक अवयव को प्रमाण नहीं मान सकेंगे। किन्तु सामग्रीरूप में सभी अवयव मिल कर कार्य करेंगे तो 25 अवश्य विशिष्ट प्रमा का उद्भव होगा। इसी लिये एक एक कारक के बदले सामग्री में ही सन्निपत्य जननातिशय रहेगा, वही साधकतमत्व कहा जा सकता है। *सामग्री में साधकतमत्व की उपपत्ति * ___सामग्री पक्ष में पहले जो कहा था कि - “सामग्री को किस की अपेक्षा से साधकतम कहेंगे ? सामग्री से अतिरिक्त कोइ असाधकतम हो, या साधक किं वा साधकतर हो तभी उन की अपेक्षा 30 सामग्री को साधकतम कहना उचित हो सकता है, ऐसा तो कुछ है नहीं तब सामग्री साधकतम कैसे ?" - ऐसा प्रश्न अनुचित है क्योंकि सामग्री को प्रमाण मानने पर भी उस के एक एक अवयव (कारक) की जनकता तो अक्षुण्ण ही रहती हैं (क्योंकि उन सभी के मिलने से ही सामग्री बनती है)। सामग्री 20 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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