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________________ खण्ड - ४, गाथा - १ एवं प्रमाणत्वस्याऽव्यवस्थितिप्रसक्तेः । तथाहि - दीपादे: प्रकाशस्य सामग्र्येकदेशस्य कस्याञ्चिदवस्थायां प्रमाणत्वेनाऽभिमतस्य सद्भावेऽपि प्रमेयाभावात् कार्याऽनिष्पत्तौ तत्सद्भावे तु तन्निष्पत्तौ तस्यापि प्रदीपवत् सन्निपत्यकारकत्वात् प्रमाणताप्रसक्तिर्भवेत् । तथा प्रमातुरपि मूर्छाद्यवस्थायामनवधाने वाऽन्यकारकसन्निधाने ऽपि कार्यानुत्पत्तौ तदवधानादिसन्निधाने तज्जन्यकार्यनिष्पत्तेः सन्निपत्यजनकत्वेन साधकतमत्वप्रसक्तिः । अत्र कारकसाकल्यस्य साधकतमत्वेनाभ्युपगमात् पूर्वोक्तदोषाभावं केचिन्मन्यन्ते । तथाहि - नैकस्य 5 प्रदीपादे: सामग्यैकदेशस्य करणता अपि तु कारकसाकल्यस्य । तदभावे कारकसाकल्याभावेनाभिमतकार्याऽसत्त्वमिति प्रमातृ-प्रमेयसद्भावे कारकसाकल्यस्योत्पत्तौ प्रमितिलक्षणस्य कार्यस्य भाव एव । अथ मुख्यप्रमातृअन्त में ही उपस्थित होता है, उस की उपस्थिति के विलम्ब से कार्योत्पत्ति में विलम्ब होता है, जब वह अतिनिकटरूप से उपस्थित हो जाता है तब नियमतः कार्योत्पत्ति हो जाती है। तब क्यों उस में साधकतमत्व न माना जाय ?' ५१ प्रतिवादी कहता है यह गलत है क्योंकि ऐसा मानने पर प्रमाणत्व की व्यवस्था तूट पडेगी । कारण देखिये- प्रत्यक्ष की कारणसामग्री सब उपस्थित है किन्तु पदार्थ के ऊपर दीपक का प्रकाश नहीं है तब तक चाक्षुष प्रत्यक्ष नहीं होता, जब प्रकाश अति निकट आ गया तो तुरंत चाक्षुष प्रत्यक्ष हो गया, इसलिये आप उस को साधकतम मान कर प्रमाण घोषित करेंगे; किन्तु मान लो कि प्रकाश के आने पर खुद (मक्खी आदि) विषय ही कहीं गुम हो गया, चाक्षुष प्रत्यक्ष न हो पाया, अचानक 15 (मक्खी) विषय वहाँ आ गया, चाक्षुष प्रत्यक्ष हो गया - इस स्थिति में प्रदीप या प्रकाश की तरह वह विषय भी सन्निपत्यजनक हो गया- साधकतम बन गया, इस लिये विषय को भी यहाँ प्रमाण मानने की आपत्ति आ पडेगी । एवं कभी चाक्षुष प्रत्यक्ष की सब सामग्री उपस्थित है किन्तु बेहोशी या व्याषङ्ग आदि के कारण ज्ञाता का ( प्रमाता का ) वहाँ ध्यान ( अवधान) नहीं है, तब अन्य कारक होने पर भी चाक्षुष प्रत्यक्ष नहीं होता, अचानक ज्ञाता होश में आ गया, व्याषङ्ग चला गया, तब 20 चाक्षुष प्रत्यक्ष का उद्भव हो जाता है- ऐसी स्थिति में प्रमाता को या प्रमाता के अवधानादि को भी सन्निपत्य जनक होने से साधकतम मानने का अनिष्ट प्रसङ्ग होगा । * कारक साकल्य में साधकतमत्व का उपपादन प्रयास ★ Jain Educationa International 10 यहाँ कुछ विद्वानों का उत्तर ऐसा है : कारकसाकल्य ही साधकतमत्व है इस मान्यता में पूर्वोक्त किसी भी दोष को अवकाश नहीं 25 है । देखिये- प्रत्यक्षादि कार्य के प्रति सामग्री अन्तर्गत कोई एक दीपक आदि को नहीं, किन्तु उस से मिलित कारकसाकल्य को ही करण मानना चाहिए। प्रदीप की अनुपस्थिति में यह कारकसाकल्य ही खंडित हो जाता है फलतः अभिमत प्रत्यक्षादिरूप कार्य जन्म नहीं लेता । ऐसे ही, अवधानयुक्त प्रमाता और विषयवस्तु रूप प्रमेय के होने पर प्रमाता के प्रयत्न से शेष कारकसाकल्य अखंड बन जाता है और प्रत्यक्षादि प्रमारूप कार्य उदित होता । यदि कहें कि मुख्य हैं और उन के होने पर प्रमाता के प्रयत्नों से शेष कारक भी यही सामने आती है जो सन्निपत्यजनकता के लिये नियम के रूप में " प्रमाता और प्रमेय दो तो 30 जूट जाने से बात तो आखिर कही गयी है । सन्निपत्यजनकता For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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