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सन्मतितर्कप्रकरण - काण्ड - २
उक्तं च— “प्रापणशक्तिः प्रामाण्यम् तदेव च प्रापकत्वम् अन्यथा ज्ञानान्तरस्वभावत्वेन व्यवस्थापिताया: प्राप्तेः कथं प्रवर्त्तकज्ञानशक्तिस्वभावता ? तत्र यद्यपि प्रत्यक्षं वस्तुक्षणग्राहि तद्ग्राहकत्वं च तस्य प्रदर्शकत्वम् तथापि क्षणिकत्वेन तस्याऽप्राप्तेः तत्सन्तान एव प्राप्यते इति सन्तानाध्यवसायोऽध्यक्षस्य प्रदर्शकव्यापारो दृष्टव्यः । अनुमानस्य तु वस्त्वग्राहकत्वात् तत्प्रापकत्वं यद्यपि न सम्भवति तथापि स्वाकारस्य बाह्यवस्त्वध्यवसायेन 5 पुरुषप्रवृत्तौ निमित्तभावोऽस्तीति तस्य तत्प्रापकत्वमुच्यते” [ ]।
एतदुक्तं भवति — प्रत्यक्षस्य हि क्षणो ग्राह्यः । स च निवृत्तत्वान्न प्राप्तिविषयः । सन्तानस्त्वध्यवसेयः प्रवृत्तिपूर्विकायाः प्राप्तेर्विषय इति तद्विषयं प्रदर्शितार्थप्रापकत्वमध्यक्षस्य प्रामाण्यम् । अनुमानेन त्वारोपितं दोनों में अर्थक्रियासक्षम अर्थ का प्रदर्शकत्व रूप लक्षण संगत होता है, यानी वे दोनों अर्थ के प्रापक होते हैं। ऐसा नहीं होता कि उन दोनों के द्वारा प्रदर्शित अर्थ के लिये प्रवृत्ति करने पर उस की 10 प्राप्ति न हो। तथाविध अर्थ का प्रदर्शकत्व यही वास्तव में प्रापकत्व है जो कि एक विशिष्ट शक्तिरूप है। * प्रत्यक्ष और अनुमान के प्रापकत्व का स्वरूप *
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कहा गया है। को ही यदि प्रामाण्य
प्रापणशक्ति ही प्रामाण्य है और प्रामाण्य ही प्रापकत्व है । शक्ति के बदले प्रापणक्रिया रूप माना जाय तो बौद्ध मत में संगत नहीं होगा, क्योंकि प्रथम ज्ञान तो सिर्फ अर्थ का अवगम करता है, फिर दूसरे क्षण का ज्ञान ही वस्तु का प्रापक बनता है, ऐसा नहीं 15 माना जायेगा तो यह प्रश्न होगा कि प्राप्ति (यानी प्रापकत्व) तो दूसरे क्षण के विकल्प ज्ञान के स्वभाव के रूप में तय की गयी है, अब वह प्रथमक्षण के प्रवृत्तिकारकज्ञानशक्तिरूप स्वभाववाली कैसे मानी जायेगी ? प्रथमक्षण के और दूसरे क्षण के दोनों ज्ञानों का स्वभाव अलग अलग है, शक्तिस्वभाव है और दूसरा प्रापणस्वभाव है, उन दोनों का ऐक्य कैसे माना जाय ? यह समझना जरूरी है कि प्रत्यक्ष तो क्षणमात्रवस्तुग्राहि होने से उस में प्रदर्शकत्व जो है वह क्षणग्राहकत्वस्वरूप 20 ही है। किन्तु प्राप्ति की बात अलग है वस्तु क्षणिक होने से प्रदर्शन के बाद उसी का प्रापण
पहला
शक्य नहीं है, अनन्तर क्षण की, यानी सन्तान की ही प्राप्ति शक्य है। इस का फलितार्थ यह होगा कि प्रत्यक्ष का जो सन्तानविषयक अध्यवसाय है वही प्रदर्शकव्यापार है, यही उस का प्रापकत्व है। और प्रामाण्य भी । अनुमान का प्रामाण्य प्रत्यक्ष के मुकाबले में कुछ अन्यथा है । अनुमान वस्तुस्पर्शी (स्वलक्षणग्राही ) नहीं होता किंतु (सामान्यग्राही यानी ) अवस्तुग्राही होता है । अत एव अनुमान में वास्तविक 25 वस्तुप्रापकत्व घटेगा नहीं । तथापि अनुमानगृहीत आकार में बाह्यवस्तु का अध्यवसाय हो जाता है जिस
से अर्थी पुरुष की वहाँ प्रवृत्ति भी होती है। इस प्रकार अध्यवसित वस्तु का आकार पुरुषप्रवृत्ति में निमित्त बनता है इसी को उस का प्रापकत्व कहा जा सकता है और प्रामाण्य भी ।
* बौद्धमत में प्रत्यक्षग्राह्य क्षणिक पदार्थ 'प्राप्य' नहीं होता
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कहने का तात्पर्य यह है बौद्ध मत में पदार्थमात्र क्षणिक है इसलिये वह प्रत्यक्ष से ग्राह्य 30 होने पर भी उस का प्राप्य नहीं होता क्योंकि ग्रहण के बाद उस क्षण की निवृत्ति (= ध्वंस) हो जाती है । तो प्रत्यक्ष के बाद प्राप्त होने वाला कौन है - इस का उत्तर यह है कि प्रत्यक्ष के बाद प्राप्ति के लिये पुरुषप्रवृत्ति होने पर सन्तान की ही प्राप्ति होती है जो प्रत्यक्ष का ग्राह्य नहीं है।
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