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________________ ४१ खण्ड-४, गाथा-१ वस्तु गृहीतम् स्वाकारो वा तयोर्द्वयोरप्यवस्तुत्वान्न प्रवृत्तिविषयतेति न तद्विषयं तस्य प्रापकत्वम् अपि तु आरोपित-बाह्ययोरभेदाध्यवसायेन वस्तुन्येव प्रवर्तकत्व-प्रापकत्वे अस्य दृष्टव्ये । तेनानुमानस्य ग्राह्योऽनर्थः प्राप्यस्तु बाह्यः स्वाकाराऽभेदेनाध्यवसित इति तद्विषयमस्यापि प्रदर्शितार्थप्रापकत्वं प्रामाण्यम्। उक्तं च “ततोऽपि विकल्पात् तदध्यवसायेन वस्तुन्येव प्रवृत्तेः प्रवृत्तौ च प्रत्यक्षेणाऽभिन्नयोगक्षेमत्वात्" [ ] तथाऽपरमप्युक्तम्- “न ह्याभ्यामर्थं परिच्छिद्य प्रवर्त्तमानोऽर्थक्रियायां विसंवाद्यते” [ ] इति। अत्र च 5 प्रत्यक्षानुमानयोर्द्वयोरपि परिच्छेदः सन्तानविषयोऽध्यवसायो द्रष्टव्यः, तथा प्रामाण्यं वस्तुविषयं द्वयोरिति च। उक्तमत्रापि- 'सन्तानविषयत्वेन वस्तुविषयत्वं द्वयोरुक्तम्'। [ ] लौकिकं चैतदविसंवादकत्वं प्रामाण्यम् किन्तु प्रत्यक्ष से गृहीत क्षण के साथ अभिन्न रूप से अध्यवसित होता है - यानी वह अभेदमानी अध्यवसाय का विषय होने से अध्यवसेय कहा जाता है। यह अध्यवसेय संतान ही प्राप्य होता है। यहाँ प्रापक तो अध्यवसाय है किन्तु वह प्रत्यक्ष के द्वारा प्रदर्शितअर्थ के सन्तानीय को ही अध्यवसित 10 करता है अत एव प्रत्यक्ष को भी प्रदर्शित अर्थ का प्रापकत्व प्राप्त होता है और यही प्रत्यक्ष का प्रामाण्य है। * अनुमान में प्रदर्शित अर्थप्रापकत्व की उपपत्ति* अनुमान के प्रामाण्य का स्वरूप कुछ अलग है। अनुमान से कभी भी वस्तुक्षण का ग्रहण नहीं होता किन्तु आरोपित (कल्पित) वस्तु का ही ग्रहण होता है; अथवा सिर्फ अपने आकार का ही ग्रहण 15 होता है। दो में से एक भी वस्तुभूत नहीं होने से प्रवृत्ति का विषय बन ही नहीं सकते। अत एव उस अवस्तुभूत अर्थ का प्रापकत्व भी नहीं घट सकता। इस स्थिति में प्रवर्तकत्व और प्रापकत्व इस ढंग से हो सकेगा कि बाह्य पदार्थ एवं आरोपित अर्थ दोनों में अभेद के अध्यवसाय के द्वारा बाह्य अग्नि आदि पदार्थ के विषय में प्रवृत्ति होने पर उस की प्राप्ति होगी - यानी वस्तुभूतअर्थ के विषय में ही प्रवर्तकत्व एवं प्रापकत्व घटेगा। फलितः यह हुआ कि अनुमान का ग्राह्यार्थ अवस्तुभूत 20 है किन्तु उस के साथ अपने आकारसादृश्य प्रयुक्त अभिन्नरूप से अध्यवसित बाह्य पदार्थ वस्तुभूत ही है। फलतः परम्परया वस्तुभूत अर्थ का प्रदर्शन होने पर प्रदर्शितअर्थप्रापकत्व उस में घटित होता है - यही अनुमान का प्रामाण्य है। * विकल्प भी वस्तुलक्षी प्रवृत्ति कारक होता है * ___कहा भी गया है - उस विकल्प (विकल्परूप अनुमान) से भी (अभेद के) अध्यवसाय के द्वारा 25 प्रवृत्ति तो वस्तु में ही होती है। (इस प्रकार) प्रवृत्ति के बारे में प्रत्यक्ष (और विकल्प) के योगक्षेम भिन्न नहीं होने के कारण प्रवृत्ति अनुमान से भी होती है। दूसरा यह भी कहा गया है - 'प्रत्यक्ष और अनुमान से अर्थ का बोध कर के प्रवृत्ति करने वाला अर्थक्रिया में धोखा प्राप्त नहीं करता।' यहाँ इतना याद रखना चाहिये कि सविकल्प प्रत्यक्ष एवं अनुमान इन दोनों से जो परिच्छेद होता है वह स्वलक्षणस्पर्शी नहीं किन्तु सन्तानविषयक अध्यवसायरूप ही होता है। उपरांत, दोनों का प्रामाण्य 30 और वस्तुविषयत्व भी उपरोक्त रीति से तुल्य योगक्षेम से बना रहता है। इस विषय में ऐसा भी कहा गया है कि - "दोनों का वस्तुविषयत्व सन्तानविषयत्व के द्वारा प्राप्त होता है।" Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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