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________________ २२ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-२ यथोक्तदोषानुपपत्तिः। अथवा विज्ञानवादेऽसिद्धिप्रेरणं सिद्धसाध्यतया न दोषावहमिति साकारमेव ज्ञानं प्रमाणमभ्युपपन्नाः सौत्रान्तिक-योगाचाराः। [साकारज्ञानप्रमाणवादिनिरसनम् ] अत्र प्रतिविधीयते- निराकारं विज्ञानमर्थग्राहकमिति न प्रत्यक्षतः प्रतीयते शरीर-स्तम्भादिव्य5 चाहते हैं। कार्यव्यतिरेक यानी कार्य का व्यति०सहचार ऐसा है कि अर्थ नहीं होता तब ज्ञानरूप कार्य भी नहीं होता। अर्थापत्ति इस तरह है कि बाह्यार्थ के विना बाह्याकार विज्ञान असंगत होता हुआ अर्थतः बाह्यार्थ को सिद्ध करेगा। हम भी इन दोनों का स्वीकार कर के यही कहते हैं कि इस तरह सिद्ध हुआ बाह्यार्थ भी प्रकाशकोटि आरूढ एक किस्म का ज्ञानाकार ही है। अब कोई असंगति या दोषप्रसक्ति 'फिर भी स्वतन्त्र ज्ञानभिन्न बाह्यार्थ तो विज्ञानवाद में सिद्ध नहीं ही हुआ न' ऐसे अर्थासिद्धि 10 की यदि आप आपत्ति देना चाहेंगे तो सुन लो कि वह तो हमारे लिये इष्टापत्ति ही है। हम जो सिद्ध करना चाहते है वही आप आपत्ति के रूप में पेश कर रहे हो तब आप के मत में सिद्धसाधन दोष ही गले पडेगा। हमारे मत में कोई दोषप्रवेश नहीं होगा। सौत्रान्तिक एवं योगाचार (= विज्ञानवादी) मत का निष्कर्ष यही है - साकार ज्ञान प्रमाण है (बाह्यार्थ हो या न हो।) * सिंहावलोकन - संदर्भस्मृति * 15 [वैभाषिक के ‘बोधः प्रमाणं' (पृ.३-पं०३) निरूपण के बाद 'निराकारो बोधः प्रमाणं' (पृ.५-पं०२) इस वैभाषिक मत के प्रतिवाद में साकार ज्ञानवादीने (पृ०६-पं०२) अपना मत प्रस्तुत किया। उस के विरोध में ननु च... (पृ०६-पं०२) से ले कर पीतादि... प्रसंगात् (पृ०७-पं०५) यहाँ तक निराकारवादी का बयान हुआ। साकारवादीने अथ साकारं (पृ.७-पं०५) ... ज्ञानमभ्युपगन्तव्यम् (पृ०७-पं०९) तक अपना ब्युगल बजाया। उस के प्रतिकार में असदेतत्...(पृ०७-पं०९) से लगा कर साकारवाद का प्रतिकार चालु 20 किया। पुनः साकारज्ञानवादी ने बाह्यार्थनिह्नव से बचने के लिये अथानुमानाद्... (पृ.११-पं०१) तथा, अथार्थापत्त्या... (पृ.११-पं०३) एवं अथ दुरस्थित (पृ.११-पं०७) आदि प्रयास किया। पुनः निराकारवादी ने असदेतत् (पृ.१२-पं०१) से ‘बाह्यार्थसिद्धिरभ्युपगन्तव्या' (पृ.१३-पं०२) पर्यन्त साकार वाद का निषेध किया। अब विज्ञानवादी अथ निराकारं.. (पृ०१३-पं०३) ग्रन्थ से निराकारवाद का निषेध कर के विज्ञप्तिमात्रता की स्थापना करता है। निराकारवादी अयुक्तमेतद् (पृ.१५-पं०२) से बचाव करता है। 25 विज्ञानवादी असदेतत् ... (पृ.१६-पं०१) कह कर खंडन करता है। पुनः अथ ‘अर्थस्य... (पृ.१७-६०२) इत्यादि निराकारवादी ने कहा। विज्ञानवादी ने असदेतत् (पृ.१७-पं०५) से उस का खंडन किया। पुनः अथ सुख... (पृ.१८-पं०३) से निकारारवादी ने जो कहा उस का एतदप्यसत्.... (पृ.१८-पं०१०) कह कर खंडन किया। साकारवाद में कथं तर्हि... (पृ०२०-५०४) यह प्रश्न उठाया तो उस का भी साकारवादियों ने बाह्यार्थवादि... (पृ०२०-पं०४) से जवाब भी दे दिया। इस प्रकार बाह्यार्थ माननेवाले साकारज्ञानवादी 30 सौत्रान्तिक एवं बाह्यार्थ न माननेवाले साकारज्ञानवादी योगाचार मत (= विज्ञानवादी), दोनों का वक्तव्य पूर्ण हुआ। अब उन दोनों के प्रतिवाद में सिद्धान्तपक्ष में यह कहा जायेगा कि बाह्यार्थ वास्तविक है, ज्ञान निराकार-साकार कथंचिद उभयरूप मान्य है। बाह्यार्थशन्य साकारज्ञानवाद आ * बाह्यार्थ का साधन, निराकार विज्ञान का निरसन-सिद्धान्तपक्ष * अब साकार ज्ञानवादी के प्रति सिद्धान्तपक्ष का यह कहना है कि - साकार ज्ञान पक्ष में जो निराकार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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