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________________ [ दिगम्बराभिप्रायनिरसनम् व्याप्त्यभिप्रायश्च ] - अत्र प्रतिविधीयते - यदुक्तम् (४६२-६) ' छद्मस्थे उपयोगक्रमस्य दृष्टत्वात् केवलिनि च छद्माभावादुपयोगक्रमाभावः । ' तत्र क्रमोपयोगस्य क्षयोपशमकार्यत्वात् केवलिनि च तदभावात् क्रमोपयोगस्यापि तत्कार्यस्याभावः । तथाहि - यद् यत्कारणं तत् तदभावे न भवति, यथा चक्षुरभावे चक्षुर्ज्ञानम् । क्षयोपशमकारणश्च क्रमोपयोग इति क्षायिकोपयोगवति केवलिनि क्रमोपयोगाभावः । अथ क्षयोपशमाभावे भवतु तत्र मतिज्ञानादिक्रमवदुपयोगाभावः केवलज्ञानदर्शनयोस्तु क्षायिकत्वात् कथं क्षयोपशमाभावे तयोः क्रमाभावः ? - उच्यते, यद् यदाऽविकलकारणं 10 उक्त तीनों विकल्पों में जो दोष दिखाये गये हैं वे बरकरार रहेंगे । चौथा कोई विकल्प है नहीं । अतः निष्कर्ष यह है कि केवली में कवलाहार की कल्पना युक्तिसंगत नहीं । [ दिगम्बरमतनिरसनप्रारम्भ श्वेताम्बर उत्तरपक्ष ] दिगम्बरमत का प्रतिकार करते हुए श्रीव्याख्याग्रन्थकार अभयदेवसूरि कहते हैं। केवली में कवलाहार निषेध के लिये दिगम्बर विद्वान् ने मूलग्रन्थ का तात्पर्य निकाल कर जो कहा (४६२-२३) कि 15 में ( ही ) उपयोग की क्रमिकता दृष्टिगोचर है किन्तु केवली में छद्म न होने से उपयोगक्रम भी नहीं हो वहाँ एक तथ्य भूलने जैसा नहीं है कि उपयोग की क्रमिकता छद्ममूलक नहीं होती किन्तु क्षयोपशममूलक होती है । केवली में अत एव छद्माभाव मूलक क्रमाभाव नहीं होता किन्तु क्षयोपशमाभावमूलक ही उपयोगक्रमाभाव होता है। मतलब, कारण (क्षयोपशम) के न होने से कार्य (उपयोगक्रम ) भी नहीं होता । यहाँ यही नियम प्रस्तुत बनता है कि जो भी कार्य जिस कारण से निष्पन्न होता है वह उस 20 कारण के विरह में नहीं निष्पन्न होता है । उदा० चक्षु-कारण के विना चाक्षुष प्रत्यक्ष नहीं होता । प्रस्तुत में, क्रमोपयोग का कारण क्षयोपशम है, अतः क्षायिकोपयोगवन्त केवली में क्षयोपशम के न होने से क्रमोपयोग कार्य नहीं होता । (छद्म और कवलाहार में ऐसा कारण- कार्यभाव में छद्म के विरह से कवलाहार न होने की दिगम्बर मान्यता का यहाँ [ क्षयोपशम क्रमोपयोग का कारण न होने की शंका 'छद्मस्थ सकता' 5 ४६८ सन्मतितर्कप्रकरण - काण्ड - २ प्रकृताहारादिकं तु क्लेशोपशमनार्थं कथं तत्स्वभावतः कल्पयितुं युक्तम् ? न च भगवति क्लेशः नापि तदुपशमनवाञ्छा तस्येति कवलाहारपरिकल्पनायां भगवति पक्षत्रयेपि दोषानतिवृत्तेः प्रकारान्तरस्य चाऽसंभवाद् न तत्र प्रकृताहारकल्पना युक्तिसंगता । 25 30 - - दिगम्बर ] दिगम्बर शंका क्षयोपशम तो क्रमोपयोगवाले मत्यादि चार ज्ञानों का कारण है ( न कि क्रमोपयोग का) अतः क्षयोपशम न होने पर मति आदि चार ज्ञानों का यानी उन के क्रमोपयोग कार्य का न होना मंजूर है किन्तु केवलज्ञानदर्शन तो क्षायिक (यानी आवरणक्षयमूलक) है, उन का क्रमोपयोग क्षयोपशम का कार्य नहीं है, तो क्षयोपशम के न होने पर केवल - ज्ञान-दर्शन के क्रमोपयोग का अभाव कैसे माना जाय ? - Jain Educationa International नहीं है अत एव केवली भंग हो जाता है ।) [ कारणसामग्री बलवती होने से समकालोत्पत्ति उत्तर ] श्वेताम्बर उत्तर :- केवल ज्ञान-दर्शन में क्रमोपयोग नहीं हो सकता इस को समझने के लिये पहले यह नियम देख लो 'जो कार्य जब पूर्ण कारण सामग्रीयुक्त होता है वह कार्य उस वक्त For Personal and Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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