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________________ ४१४ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-२ इति हेतुप्रतिषेध एव तस्य कृतः स्यात्। एवं च देशकालादिप्रतिनियमो न स्यात्। अपि च- ( ) शब्दस्य वृत्तेः सर्वत्र पंचानामपि न क्वचित् । प्रमाणानामभावोऽतो नार्थाभावविनिश्चयः ।। अगृहीतान्न चाभावात् प्रमेयाभावनिर्णयः। तद्ग्रहोऽप्यन्यतो भावादनवस्था दुरुत्तरा।। मेयाऽभावात् प्रमाभावनिर्णयेऽन्योन्यसंश्रयः। मेयाभावात् प्रमाणस्य तस्मात् तस्य विनिर्णयात् ।। अज्ञातस्यापि चाक्षस्य प्रमाहेतोः प्रमाणता। प्रमाभावस्त्वसामर्थ्यान्नाज्ञातोऽभाववेदकः ।। द्वितीयपक्षे तु- यत् तदन्यज्ञानं प्रत्यक्षमेव तत् प्रमाणम् पर्युदासवृत्त्या च तदेवाभावप्रमाणशब्दवाच्यतामनुभवति। तथाविधेन च तेन तदन्यभावलक्षणो भावः परिच्छिद्यत एव। यत् पुनः ‘इह घटो नास्ति' इति ज्ञानं तत् प्रत्यक्षसामर्थ्यप्रभवत्वात् स्मृतिरूपतामासादयन्न प्रमाणम्। तया हि सकलत्रैलोक्य10 लिये उस में अभावविषयकज्ञानजनकता का योग शक्य नहीं है। देखिये - वस्तु ही कार्यजनक होती है न कि अवस्तु। अवस्तु तो सर्वसामर्थ्यहीन होती है। यदि उस में कुछ सामर्थ्य मान लिया जाय तो वह अवस्तु नहीं किन्तु भावात्मक वस्तु ही प्रसक्त होगी। इस संदर्भ से स्पष्ट होता है कि 'अभाव से (ज्ञान) उत्पन्न होता है' ऐसा जो आपने कहा उस का फलितार्थ यही होगा कि भाव से (अभाव में कुछ सामर्थ्य माना तब वह भावरूप हो गया अतः भाव से) नहीं उत्पन्न होता है। (यानी भावात्मक 15 हेतु से कुछ भी उत्पन्न नहीं होता।) यह तो स्पष्ट हेतु (= कारण) का अपलाप ही हुआ। कारण का अपलाप करने पर उत्पन्न भावों में कही भी देश-काल का नियम नहीं होगा। कारणाधीन उत्पत्तिवाला भाव कारण के देश-काल से नियत होता है ऐसा नियम है। और कहा भी है - ( ) 'शब्द प्रमाण की प्रवृत्ति सर्वत्र होती है इस लिये पाँचों प्रमाण का अभाव तो कहीं भी नहीं होता। अत एव उस से अर्थाभाव का निश्चय भी नहीं हो सकता। अभावनिश्चय न होने से प्रमेयाभाव 20 का निर्णय शक्य नहीं होगा। यदि (प्रमेयाभाव निश्चायक) अभाव का निर्णय अन्य प्रमाण से करेंगे तो उस का भी निर्णय अन्य अन्य प्रमाण से, (इस प्रकार) अनवस्था को पार नहीं उतरेंगे ।। यदि प्रमाणअभाव का निर्णय (अनिश्चित) प्रमेयाभाव से करने जायेंगे तो अन्योन्याश्रय दोष होगा क्योंकि प्रमेयाभाव से प्रमाण अभाव का और प्रमाणाभाव से प्रमेयाभाव का निर्णय होने से। हाँ, अज्ञात होने पर भी इन्द्रिय प्रमा का हेतु होने से प्रमाण गिना जा सकता है, किन्तु प्रमाणाभाव सामर्थ्यहीन होने 25 से (तच्छ) होने से वह अज्ञात रह कर अभावज्ञापक नहीं हो सकता।। [ अभावप्रमाण के दूसरे प्रकार का निरसन - बौद्ध ] अभाव के तीन प्रकारों में जो दूसरा प्रकार है प्रतियोगिभिन्न (भूतलादि) का भान, वह तो प्रत्यक्ष प्रमाण ही है (न कि अभावप्रमाण)। हाँ, पर्युदासनञ् अनुसार उसी प्रत्यक्ष को 'अभावप्रमाण' शब्द वाच्य कहा जा सकता है। प्रत्यक्षात्मक तथाकथित अभावप्रमाण से प्रतियोगिभिन्न पदार्थस्वरूप भाव 30 का परिबोध होता है। यदि 'यहाँ घट नहीं है' ऐसी प्रसज्यनञ् की प्रतीति ली जाय तो इस में जो घट के अभाव का भान होता है वह पूर्वजातघटप्रत्यक्ष के सामर्थ्य से उत्पन्न स्मृतिरूप ही है, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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