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________________ खण्ड - ४, गाथा - १ ३९९ 'न चाऽवस्तुनः एते स्युर्भेदास्तेनास्य वस्तुता । कार्यादीनामभावः को भावो यः कारणादि न । । ' इति । अनुमानप्रमाणावसेया वाऽभावस्य वस्तुरूपता । यदाह - ( श्लो० वा० अभाव० श्लो०९) यद्वाऽनुवृत्तिव्यावृत्तिबुद्धिग्राह्यो यतस्त्वयम् । तस्माद् गवादिवद् वस्तु प्रमेयत्वाच्च गृह्यताम् ।। इति । अभावश्च चतुर्धा व्यवस्थितः प्रागभावः प्रध्वंसाभावः इतरेतराभावः अत्यन्ताभावश्चेति। तदाह(श्लो० वा० अभाव० श्लो० २ - ३ - ४ ) क्षीरे दध्यादि यन्नास्ति प्रागभावः स उच्यते । । २ । । नास्तिता पयसो दध्नि प्रध्वंसाभावलक्षणम् । गवि योऽश्वाद्यभावस्तु सोऽन्योन्याभाव उच्यते । । ३ ॥ शिरसोऽवयवा निम्ना वृद्धिकाठिन्यवर्जिताः । । शशशृंगादिरूपेण सोऽत्यन्ताभाव उच्यते । । ४ । । यदि चैतद्व्यवस्थापकमभावाख्यं प्रमाणं न भवेत् तदा प्रनियतवस्तुव्यवस्था दूरोत्सारितैव स्यात् । (श्लो० वा० अभाव० श्लो० ५-६) तदुक्तम् क्षीरे दधि भवेदेवं दध्नि क्षीरं घटे पटः । शशे शृंगं पृथिव्यादौ चैतन्यं मूर्तिरात्मनि ।। अप्सु गन्धो रसश्चाग्नौ वायो रूपेण तौ सह । व्योम्नि संस्पर्शता ते च न चेदस्य प्रमाणता ।। इति । न च निरंशभावैकरूपत्वाद् वस्तुनस्तत्स्वरूपग्राहिणाऽध्यक्षेण तस्य सर्वात्मना ग्रहणादगृहीतस्य चापरस्यासदंशस्य तत्राऽभावात् कथं तद्व्यवस्थापनाय प्रवर्त्तमानमभावाख्यं प्रमाणं प्रामाण्यमश्नुत इति Jain Educationa International ये ( प्रागभावादि) प्रकार अवस्तु के हो नहीं सकते अतः उस की वस्तुरूपता सिद्ध है । कारणादिभावरूप से यदि ( उस का) अस्तित्व ही नहीं है तो कार्यादि का अभाव क्या है ? अथवा अभाव की वस्तुरूपता तो अनुमानप्रमाण से भी सिद्ध है श्लो० वा० (अभाव० श्लो०९) में कहा है अथवा, ‘चूँकि अभाव अनुवृत्ति-व्यावृत्ति बुद्धिगोचर अत एव (अभाव) वस्तु है क्योंकि प्रमेय है उदा० गौ आदि इस ( अनुमान) से जान लो ।' ३ - अन्योन्याभाव, ४- अत्यन्ताभाव । यहाँ 'दूध में जो दहीं आदि का नास्तिपन है 20 नास्तिपन है वह प्रध्वंसरूप अभाव है । गाय अत्यन्ताभाव है । 'यदि इन अभावों अभाव के चार प्रकार हैं १ - प्रागभाव, २ - प्रध्वंस - अभाव, श्लो०वा०(अभाव०२-३-४ ) में उन के ये लक्षण कहे हैं वह प्रागभाव कहलाता है ।। दहीं में जो दूध आदि का में जो अश्वादि का नास्तिपन ( भेद ) है वह अन्योन्याभाव कहलाता है ।। (शश के ) शिर के जो निम्न भाग में वृद्धि कठोरता वर्जित अवयव हैं, वे ही शशशृंगादि के का निश्चायक कोई अभावसंज्ञक प्रमाण न होता तो 'यह अभाव का उच्छेद ही हो जाता । श्लो०वा० (अभाव० न होती तो दूध में दहीं रह जाता, दहीं में दूध रह जाता, घट में वस्त्र रह जाता, शश में भी शृंग मिल जाता, पृथ्वी आदि में चैतन्य एवं आत्मा में मूर्त्तता, जल में सुगन्ध, आग में स्वाद, वायु में रूप-रस- गन्ध, गगन में स्पर्श एवं रूपादि इत्यादि रह जाते ।' यह भाव' इत्यादि नियत वस्तुव्यवस्था श्लो०५ - ६ ) में कहा है 'यदि अभाव (प्रमाण) की प्रमाणता 25 ऐसा कहना नहीं कि “ वस्तु निरंश एकमात्र भावरूप होती है, उस के स्वरूप का ग्राहक प्रत्यक्ष उसे सर्वात्मना गृहीत कर लेता है, प्रत्यक्ष से अगृहीत ऐसा अन्य कोई असद् अंश उस में 30 4. शशशृंगादिरूपेणेति - शृंगस्य यदसद्रूपं शशमूर्द्धावयवसमवेतं सोऽत्यन्ताभाव उच्यते । इति पार्थसारथि टीका ।। For Personal and Private Use Only — 5 - 10 15 www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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