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________________ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड - २ “ प्रमाणपञ्चकं यत्र वस्तुरूपे न जायते । वस्तुसत्तावबोधार्थं तत्राभावप्रमाणता ।। प्रत्यक्षादेरनुत्पत्तिः प्रमाणाभाव उच्यते । सात्मनोऽपरिमाणो वा विज्ञानं वान्यवस्तुनि ।। " न च प्रत्यक्षेणैवाभावोऽवसीयते तस्याभावविषयत्वविरोधात्, भावांशेनैवेन्द्रियाणां संयोगात् । तदुक्तम् (श्लो० वा० अभाव० श्लो०१८) “ न तावदिन्द्रियेणैषा नास्तीत्युत्पाद्यते मतिः । भावांशेनैव संयोगो योग्यत्वादिन्द्रियस्य हि ।।” नाप्यनुमानेनासौ साध्यते हेत्वभावात् । न च प्रदेश एव हेतु:, तस्य साध्यधर्मित्वेनाभ्युपगमात्। न चैवमपि हेतु:, प्रतिज्ञार्थैकदेशताप्राप्तेः । न च प्रदेशविशेषो धर्मी तत्सामान्यं हेतु, तस्य घटाभावव्यभिचारात् । न हि सर्वत्र प्रदेशे घटाभावः शक्यः साधयितुम्, सघटस्यापि प्रदेशस्य सम्भवात् । अथ घटानुपलब्ध्या प्रदेशे धर्मिणि घटाभावः साध्यते । असदेतत् - साध्य - साधनयोः कस्यचित् सम्बन्धस्याभावात् । तस्मादभावोऽपि प्रमाणान्तरमेव । न चाभावस्य तद्विषयस्याभावादभावप्रमाणान्तरवैयर्थ्यम् प्रागभावादिभेदान्यथानुपपत्तेरर्थापत्त्या 10 वस्तुरूपताऽवसीयते । तदुक्तम् ( श्लो० वा० अभाव० श्लो०७) न च स्याद्व्यवहारोऽयं कारणादिविभागतः । प्रागभावादिभेदेन नाभावो यदि भिद्यते ।। अभावस्य च प्रागभावादिभेदान्यथानुपपत्तेरर्थापत्त्या वस्तुरूपताऽवसीयते । तदुक्तम् (श्लो० वा० अभाव० श्लो०८) जाता है, वह आत्मा का ( प्रत्यक्षादिरूप से) अपरिणामरूप माना जाय अथवा अन्य वस्तु के विज्ञान रूप माना जाय । ।" अभाव का ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण से नहीं होता, क्योंकि उस का अभावविषयत्व 15 से विरोध है। इन्द्रियों का संयोग तो सिर्फ भावात्मक वस्तु से ही शक्य है । श्लोकवार्त्तिक में कहा है (अभाव० श्लो०१८) 'नास्ति - ऐसी बुद्धि इन्द्रियों से तो नहीं उत्पन्न होती । योग्यताविशिष्ट होने से भावांश के साथ ही इन्द्रिय का संयोग होता है ।' 5 ३९८ - [ अनुमान से अभाव की उपलब्धि अशक्य ] अनुमान से भी अभाव सिद्ध नहीं हो सकता, हेतु के न होने से । प्रदेश (= अभावाधिकरण ) 20 को हेतु नहीं बना सकते, क्योंकि उस का ग्रहण तो साध्यधर्मी के रूप में है । फिर भी उसको यदि हेतु करें तो प्रतिज्ञार्थैकदेश दूषण प्राप्त है। प्रदेशविशेष को धर्मी कर के प्रदेशसामान्य को हेतु करें तो वह घटाभाव का व्यभिचारी होगा। वह इस प्रकार :- प्रदेश सामान्य तो सर्वत्र है किन्तु सर्व देश में घटाभाव सिद्ध करना अशक्य है क्योंकि कई प्रदेश घटयुक्त भी हो सकते हैं । यदि घटानुपलब्धि वह भी गलत है, क्योंकि साधन को को हेतु कर के प्रदेश धर्मि में घटाभाव सिद्ध किया जाय तो 25 साध्य के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है । साध्य-साधन के सम्बन्ध के विना अनुमान हो नहीं सकता । अतः मानना पडेगा ' अभाव प्रमाणान्तर ही ।' यदि कहें कि 'अभाव प्रमाण का विषय ही कोई न होने से प्रमाणान्तरत्व निरर्थक है' तो यह निषेधपात्र है क्योंकि प्रागभाव आदि चार प्रकारवाले वस्तुरूप अभाव का अस्तित्व है, ऐसा न मानें तो 'प्रागभाव सभी कार्यों का कारण है' इत्यादि विभागपूर्वक जो लोकविदित व्यवहार है उस का उच्छेद हो जायेगा । श्लो०वा० (अभाव० श्लो० ७) में कहा है 30 'प्रागभाव आदि भेद से अभाव यदि अस्तित्व में नहीं है तो कारणादिविभाग से व्यवहार भी नहीं हो पायेगा ।' तात्पर्य, अभाव के अस्तित्व के विना प्रागभावादि प्रकारों की उपपत्ति शक्य न होने से, इस अर्थापत्ति से उस की वस्तुरूपता सिद्ध है । श्लो० वा० ( अभाव० श्लो०८) में और भी कहा है. Jain Educationa International - For Personal and Private Use Only — - www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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