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सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-२ वाहदोहादिशक्तियोगस्तस्य प्रतीयते, अन्यथा गोत्वस्यैवाऽयोगात्। 'शब्दपूर्विकार्थापत्तिः यथा शब्दादर्थप्रतीतौ शब्दस्यार्थेन सम्बन्धसिद्धिः। ५अर्थापत्तिपूर्विकार्थापत्तिः यथोक्तप्रकारेण शब्दस्यार्थेन सम्बन्धसिद्धावानित्यत्वसिद्धिः, पौरुषेयत्वे शब्दस्य सम्बन्धाऽयोगात्। ६अभावपूर्विकाऽर्थापत्तिः यथा जीवतो देवदत्तस्य गृहेऽदर्शनाद् अर्थाद् बहिर्भावः।
अत्र चतसृभिरर्थापत्तिभिः शक्तिः साध्यते, पञ्चम्यां नित्यता, षष्ठ्यां गृहाबहिर्भूतो देवदत्त एव साध्यत इत्येवं षट्प्रकारा अर्थापत्तिः। अन्ये तु श्रुतार्थापत्तिमन्यथोदाहरन्ति 'पीनो देवदत्तो दिवा न भुङ्क्ते' इति वाक्यश्रवणाद् रात्रिभोजनवाक्यप्रतिपत्तिः श्रुतार्थापत्तिः। गवयोपमितस्य गो: तज्ज्ञानग्राह्यताशक्तिरुपमानपूर्विकार्थापत्तिः। तदुक्तम् - (श्लो॰वा०अर्था०)
तत्र प्रत्यक्षतो ज्ञातात् दाहाद्दहनशक्तिता। वझेरनुमितात् सूर्ये यानात् तच्छक्तियोगिता।।३।। 10 पीनो दिवा न भुङ्क्ते, इत्येवमादिवचः श्रुतौ। रात्रिभोजनविज्ञानं श्रुतार्थापत्तिरुच्यते ।।५१ ।।
गवयोपमिताया गोः तज्ज्ञानग्राह्यशक्तिता।।४।। से प्रतीत होता है, क्योंकि उस शक्ति के विना तो गोत्व का योग भी अनिश्चित हो जायेगा। ४शब्दपूर्वक अर्थापत्तिः- उदा० शब्द से अर्थ ज्ञात होने पर अर्थ के साथ सम्बन्ध अर्थतः सिद्ध होता
है। ५-अर्थापत्तिपूर्वक अर्थापत्ति :- पूर्वोक्त अर्थापत्ति से अर्थ के साथ शब्द का सम्बन्ध सिद्ध होने पर, 15 शब्द में अर्थतः नित्यत्व भी सिद्ध होगा, क्योंकि अनित्य या पौरुषेयत्व पक्ष में अर्थ के साथ शब्द
का सम्बन्ध ही मेल नहीं खायेगा। ६-अभाव (प्रमाण) पूर्वक अर्थापत्ति :- जीवित देवदत्त की गृह में अनुपलब्धि (यही अभावप्रमाण, जिस) से अर्थतः उस का गृहबहिर्भाव सिद्ध होता है। 1
[विविध अर्थापत्तियों के विविध साध्यों की स्पष्टता ] स्पष्टता :- पहली चार अर्थापत्तियों से शक्ति सिद्ध होती है, पाँचवी से नित्यत्व (शब्द का), 20 तथा छट्ठी से 'देवदत्त का गृह से बहिर्भाव' सिद्ध होता हैं - इस विधि से अर्थापत्ति के छह प्रकार
है। सूत्र के लक्षण में जो ‘दृष्ट या श्रुत' ऐसा लिखा है उस में श्रुत अर्थापत्ति का विवरण अन्य विद्वान् दूसरी तरह करते हैं – 'तगडा देवदत्त दिन में नहीं खाता' इस वाक्य के श्रवण से रात्रिभोजनसूचक 'रात्रि में खाता है' ऐसे वाक्य का स्फुरण होता है - यह है श्रुतअर्थापत्ति। तथा गवय से उपमित
(= सदृशीकृत) गौआ में सादृश्यज्ञान की ग्राह्यता (= विषयता) संज्ञक शक्ति (की कल्पना) ही उपमानपूर्विका 25 अर्थापत्ति किसी के मत से मानी गयी है। जैसे कि श्लोकवार्तिक में कुमारिल ने कहा है – (अर्था०श्लो०३
५१-४-५-८-९) _ 'अर्थापत्ति (प्रकरण) में प्रत्यक्ष से ज्ञात दाह से दहन शक्ति वहिन में। सूरज की अनुमित गति से गमनशक्तियोग । तगडा (देवदत्त) दिन में नहीं खाता... इस प्रकार का वचन श्रवण होने पर रात्रिभोजन
का ज्ञान यह श्रुतार्थापत्ति कही जाती है। गवय से उपमित गौआ में सादृश्यज्ञानग्राह्यता। अर्थापत्ति 30 से बोधित (शब्द में) वाचकसामर्थ्य के द्वारा, अभिधान (सामर्थ्य की) सिद्धि के लिये शब्द में नित्यत्व
प्रमेयता (अभिधान की अनुपपत्तिप्रयुक्त अर्थापत्ति से शब्द में वाचकशक्ति की कल्पना, फिर उस की भी अनुपपत्ति से शब्द में नित्यत्व की कल्पना यह अर्थापत्तिपूर्विका अर्थापत्ति है।) (पाँच) प्रमाण निवृत्ति
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