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________________ 10 खण्ड-४, गाथा-१ ३८९ प्रतिज्ञार्थेकदेशो हि हेतुस्तत्र प्रसज्यते। पक्षे धूमविशेषे हि सामान्यं हेतुरिष्यते ।।६३॥ शब्दत्वं गमकं नात्र गोशब्दत्वं निषेत्स्यते। व्यक्तिरेव विशेष्याऽतो हेतुश्चैकः प्रसज्यते ।।इति।। शब्दस्य चार्थेन सम्बन्धाभावतो यथा न पक्षधर्मत्वं तथाऽन्वयोऽपि प्रमेयेण व्यापाराभावतोऽसंगत एव। तदुक्तम्- (श्लो॰वा०शब्द०८५ से ८८) अन्वयो न च शब्दस्य प्रमेयेण निरूप्यते। व्यापारेण हि सर्वेषामन्वेतृत्वं प्रतीयते।। 5 यत्र धूमोऽस्ति तत्राग्नेरस्तित्वेनान्वयः स्फुटः । न त्वेवं यत्र शब्दोऽस्ति तत्रार्थोऽस्तीति निश्चयः।। न तावत्तत्र देशेऽसौ न तत्कालेऽवगम्यते। भवेन्नित्यविभुत्वाच्चेत् सर्वार्थेष्वपि तत्समम्।। तेन सर्वत्र दृष्टत्वाद् व्यतिरेकस्य चागतेः। सर्वशब्देरशेषार्थप्रतिपत्तिः प्रसज्यते।। अन्वयाभावे व्यतिरेकस्याप्यभावः। उक्तं च - 'अन्वयेन विना तस्माद् व्यतिरेकः कथं भवेत् ?' ( ) इति। तदेवमनुमानलक्षणाभावात् शाब्दं प्रमाणान्तरमेव । [ उपमानं प्रमाणान्तरमिति मीमांसकमतम् ] उपमानमपि प्रमाणान्तरम्। तस्य लक्षणम् - ( ) दृश्यमानाद् यदन्यत्र विज्ञानमुपजायते। सादृश्योपाधि तत्त्वज्ञैरुपमानमिति स्मृतम् ।। यथोक्तम् - 'उपमानमपि सादृश्यादसंनिकृष्टेऽर्थे बुद्धिमुत्पादयति, यथा गवयदर्शनं गोस्मरणस्य' (शाबर०१-१-५) इति । ही हेतु प्रसक्त होता है (यही दोष है)। (यदि) धूमविशेषात्मक पक्ष में ही सामान्य को हेतु (गमक) 15 किया जाता है किन्तु वैसे शब्दत्व गमक नहीं बन सकता। गोशब्दत्व का भी (गमकत्वरूप से) आगे निषेध किया जायेगा। अतः विशेषित एक व्यक्ति ही हेतु (रूप से) प्रसक्त होती है। .. [शाब्द में अनुमान के लक्षणों का अभाव - मीमांसक ] ___ अर्थ के साथ सम्बन्ध के विरह में जैसे शब्द पक्षधर्म नहीं बन सकता वैसे ही प्रमेय के प्रति उस का कुछ भी व्यापार न होने से अर्थ के साथ अन्वय (व्याप्ति) भी असंगत ही है। श्लोकवार्तिक 20 में कहा है (शब्द० ८५ से ८८) “शब्द का प्रमेय के साथ अन्वय अनिरूपित है। किसी भी वस्तु के (प्रमेय के साथ) व्यापार के जरिये ही अन्वेतृत्व (= अन्वय की) सत्ता के साथ स्फुट अन्वय है, किन्तु 'जहाँ शब्द है वहाँ अर्थ है' ऐसा निश्चय नहीं है। और शब्द के देश में एवं शब्द के काल में वह (अर्थ) ज्ञात नहीं होता। 'नित्य और व्यापक होने के कारण नहीं होता' ऐसा यदि कहें तो यह कथन सभी अर्थों के प्रति समान है। शब्द तो सभी अर्थों के प्रति दृष्ट साधारण होने 25 से, व्यतिरेक (कहीं भी) न दिखने से सभी शब्दों से सभी अर्थों की प्रतीति प्रसक्त होगी।" तात्पर्य, अन्वय नहीं बैठता इस लिये 'अर्थ के विना शब्द का भी न होना' ऐसा व्यतिरेक भी नहीं हो सकता। कहा है - इस हेतु से, अन्वय के विना व्यतिरेक भी कैसे हो सकता है ? निष्कर्ष, शाब्द में अनुमान का लक्षण संगत न होने से शाब्द प्रमाणान्तर ही है यह सिद्ध होता है। [उपमान एक स्वतन्त्र प्रमाण - मीमांसक ] 30 मीमांसक कहते हैं – सिर्फ शाब्द नहीं, उपमान भी प्रमाणान्तर है। उस का यह लक्षण कहा है – 'दृश्यमान वस्तु से अन्य सम्बन्धि जो सादृश्यमूलक विज्ञान उत्पन्न होता है, तत्त्वविद् जनों ने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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