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________________ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड - २ अस्यायमर्थः येन प्रतिपत्त्रा गौरुपलब्धो न गवयः, न चातिदेशवाक्यं 'गौरिव गवयः' इति श्रुतम् तस्याटव्यां पर्यटतः गवयदर्शने प्रथमे उपजाते परोक्षगवि सादृश्यज्ञानं यदुत्पद्यते 'अनेन सदृशो गौ: ' इति तदुपमानमिति । तस्य विषयः सादृश्यविशिष्टः परोक्षो गौः, तद्विशिष्टं वा सादृश्यम् । सादृश्यं च वस्तुभूतमेव । यदाह - ( श्लो० वा० उपमान० श्लो० १८ ) सादृश्यस्य च वस्तुत्वं न शक्यमवबोधितुम् । भूयोऽवयवसामान्ययोगो जात्यन्तरस्य तत् ।। अस्य चानधिगतार्थाधिगन्तृतया प्रामाण्यमुपपन्नम् यतोऽत्र गवयविषयेण प्रत्यक्षेण गवय एव विषयी - कृतो न पुनरसन्निहितोऽपि सादृश्यविशिष्टो गौः तद्विशिष्टं वा सादृश्यम् । यदपि तस्य पूर्वे 'गौः' इति प्रत्यक्षमभूत् तस्यापि गवयोऽत्यन्तमप्रत्यक्ष एवेति कथं गवि तदपेक्षं तत्सादृश्यज्ञानम् ? तदेवं 'गवयसदृशो गौः' इति प्रागप्रतिपत्तेरनधिगतार्थाधिगन्तृ परोक्षे गवि गवयदर्शनात् सादृश्यज्ञानम् । तदुक्तम् 10 वा० उप० श्लो० ३७ तः ३९) (श्लो० 5 ३९० - 25 तस्माद् यत् स्मर्यते तत् स्यात् सादृश्येन विशेषितम् । प्रमेयमुपमानस्य सादृश्यं वा तदन्वितम् ।। प्रत्यक्षेणावबुद्धेऽपि सादृश्ये गवि च स्मृते । विशिष्टस्यान्यतोऽ सिद्धेरुपमानप्रमाणता ।। प्रत्यक्षेऽपि यथा देशे स्मर्यमाणे च पावके । विशिष्टविषयत्वेन नानुमानाऽप्रमाणता । । इति । । उसे 'उपमान' कहा है । शाबरभाष्य में कहा है – 'असंनिकृष्ट अर्थ में सादृश्य के प्रभाव से जो बुद्धि 15 पैदा होती है वह उपमान है, जैसे गवय का दर्शन गोस्मरण की।' इस की स्पष्टता यह है जिस दृष्टाने गाय को देखा है, गवय को नहीं देखा, न तो किसी 'गवय गौ जैसा होता है' ऐसे अतिदेशवाक्य को सुना है ऐसा आदमी कभी अरण्य में अटन करता था तब पहली बार गवय को देखा, तब गाय तो परोक्ष है लेकिन उस में जो सादृश्यबोध हुआ 'इस के सरिखी गाय है' यही उपमान प्रमाण है । इस का विषय है सादृश्यविशिष्ट परोक्ष गाय अथवा परोक्षगायविशेषित सादृश्य । सादृश्य 20 भी वस्तुभूत पदार्थ है । श्लोकवार्त्तिक ( उपमान० श्लो० १८ ) में कहा है 'सादृश्य के वस्तुत्व का निषेध नहीं हो सकता, अन्य जातिवाले का अनेक उपांगो से समानता का योग ही सादृश्य है ।' [ उपमान के प्रामाण्य का समर्थन - मीमांसक ] - यह उपमानप्रमाण अनधिगतार्थाधिगन्तृत्वविशिष्ट होने से उस का प्रामाण्य अक्षुण्ण है। कारण, गवयसम्बन्धि प्रत्यक्ष सिर्फ संनिहित गवय को ही विषय करता है, सादृश्यविशिष्ट गौ को या गौविशिष्ट सादृश्य को नहीं, क्योंकि वह असंनिहित है । वह जो पहले 'गौ' ऐसा गाय का प्रत्यक्ष हुआ था उस के लिये गवय तो परोक्ष ही था, फिर उस वक्त गाय में गवयप्रतियोगिक सादृश्यज्ञान होगा कैसे ? तो इस प्रकार पहले 'गाय गवयसदृश है' ऐसा बोध अशक्य होने से परोक्ष गाय में गवय के दर्शन से हुआ सादृश्य ज्ञान अनधिगतार्थाधिगन्तृ होने से प्रमाणान्तर सिद्ध होता है । श्लो० वा० में कहा है - इस हेतु से, सादृश्य से विशेषित स्मर्यमाण गौ उपमान ( प्रमाण ) का प्रमेय ( गोचर ) है । अथवा 30 स्मर्यमाण गौ से विशिष्ट सादृश्य उस का प्रमेय है ।। गाय स्मृतिगोचर है और सादृश्य प्रत्यक्षदृष्ट है किन्त उन दोनों का वैशिष्ट्य अन्य (प्रमाण) से गृहीत न होने से वहाँ उपमान की प्रमाणता है ।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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