SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 404
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 15 खण्ड-४, गाथा-१ ३८५ तदपास्तं दृष्टव्यम्, यथाप्रदर्शितन्यायेन स्वभावविरुद्धोपलब्धेरत्र व्यापारात्। स्यादेतत्- भवतु परोक्षविषयस्य प्रमाणस्यानुमानेऽन्तर्भावः अर्थान्तरविषयस्य च तस्याऽसावयुक्तः । न, प्रत्यक्ष-परोक्षाभ्यामन्यस्यार्थस्याभावात्, प्रमेयरहितस्य च प्रमाणस्य प्रामाण्याऽसम्भवात्, प्रमीयतेऽनेनेत्यागृहीतप्रमेयस्यैव प्रमाणम् इति व्युत्पत्त्या तस्य प्रमाणत्वव्यवस्थितेः। तथाहि- यदविद्यमानप्रमेयं न तत् प्रमाणम् यथा केशोन्दुकादिज्ञानम्, अविद्यमानप्रमेयं च प्रमेयद्वयातिरिक्तविषयतयाऽभ्युपगम्यमानं प्रमाणान्तरमिति 5 कारणानुपलब्धिः, प्रमेयस्य साक्षात् पारम्पर्येण वा प्रमाणं प्रति कारणत्वात्। तदुक्तम्- 'नाननुकृतान्वयव्यतिरेकं कारणम् नाऽकारणं विषयः' ( ) इति। न च प्रत्यक्ष-परोक्षातिरिक्तप्रमेयान्तराभावप्रतिपादकप्रमाणान्तराभावादसिद्धो हेतुः-इति वक्तव्यम् अध्यक्षेणैव प्रमेयान्तरविरहप्रतिपादनात्। तद्धि पुरस्थितार्थसामर्थ्यादुपजायमानं तदात्मनियतप्रतिभासावभासादेव तस्य प्रत्यक्षव्यवहारकारणं भवति। तदन्यात्मतां च तस्य व्यवच्छिन्दानमन्यदर्थजातं सकलं राश्यन्तरत्वेन व्यवस्थापयत् 10 भी यहाँ (अभाव के बारे में) असंभवी है क्योंकि अत्यन्त असत् अर्थ का किसी के भी साथ सहअनवस्थानरूप विरोध संभव नहीं है।".... इत्यादि जो कहनेवाले अन्य लोग कहते हैं वह इस लिये निरस्त हो जाता है कि पूर्वप्रदर्शित चर्चा युक्ति के अनुसार अभाव के विषय में स्वभावलिंगक एवं विरुद्धोपलब्धिमूलक अनुमान सक्रिय है। [ प्रत्यक्षपरोक्षभिन्न कोई भी अर्थ प्रमेय नहीं ] कदाचित् ऐसा सोचे कि – 'परोक्षविषयक प्रमाण का अन्तर्भाव अनुमान में ठीक है किन्तु (प्रत्यक्षपरोक्ष से) अन्य अर्थसंबन्धी प्रमाण का उस में अन्तर्भाव युक्त नहीं है' - तो यह सोचना ठीक नहीं है, क्योंकि प्रत्यक्ष-परोक्ष के अलावा विश्व में कोई अन्य अर्थ ही नहीं है। अर्थ यानी प्रमेय, प्रमेयशून्य कोई प्रमाण नहीं होता, मतलब वैसे आभासिक प्रमाण में प्रमाणत्व संभव नहीं होता। 'जिस से प्रमित किया जाय वह प्रमाण' इस सुविदित व्याख्या के अनुसार प्रमेय का आकलन करनेवाले प्रमाण में 20 ही प्रमाणत्व सुव्यवस्थित घट सकता है। प्रयोग देखिये - जिस का कोई प्रमेय नहीं है वैसा कोई प्रमाण नहीं होता। उदा० असत् अर्थ केशोन्दुकादि का ज्ञान । (प्रत्यक्ष-परोक्ष) दो प्रमेय से अधिक विषयक माने गये प्रमाणान्तर भी प्रमेयशून्य ही है, (अतः केशोन्दुक ज्ञान प्रमाण नहीं है) – यह कारणानुपलब्धि प्रकार का अनुमान है। (प्रमाणत्व प्रयोजक प्रमेय की कारणरूप से अनुपलब्धि)। कोई भी प्रमेय साक्षात् या परम्परया प्रमाण का कारण होता है (जो यहाँ नहीं है।)। कहा है कि 'अन्वय-व्यतिरेक अननुसारि 25 'कारण' नहीं होता, कारण नहीं होता वह (किसी प्रमाण का) विषय नहीं होता।' ( ) इति । [ प्रत्यक्षप्रमाण से प्रमेयान्तराभाव की सिद्धि ] शंका :- प्रत्यक्ष-परोक्ष से अधिक अन्य प्रमेय के अभाव का साधक जब कोई अन्य प्रमाण ही नहीं है तब उस को पक्ष बनाकर अविद्यमान प्रमेयता को हेतु भी कैसे बना सकते हैं ? आप का हेतु असिद्ध है। उत्तर :- अन्य प्रमेय के अभाव का साधक कोई प्रमाणान्तर नहीं है ऐसा नहीं - अपि तु प्रत्यक्ष से ही प्रमेयान्तर का अभाव निश्चित है। प्रत्यक्ष प्रमाण संमुखस्थित अर्थ के बल से उत्पन्न होता ॐ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy