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सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-२ सिद्धम्। कार्यं हि पूर्ववत् समवायिकारणापेक्षम्, पृथिव्यादेश्च समवायिकारणत्वनिषेधात् व्योम्नः तं प्रति समवायिकारणता शब्दस्य च प्रत्यक्षत्वाऽन्यथानुपपत्त्या सन्तानकल्पना, सन्तानश्च शब्दान्तरहेतुत्वमन्तरेणानुपपन्न:इति नासिद्धौ हेतु-दृष्टान्तौ। प्रतिषिध्यमानकर्मत्वं चेच्छादीनां कर्मत्वानधिकरणतयाऽध्यक्षप्रतिपत्तित एव सिद्धम्। एकद्रव्यत्वं च यज्ञदत्तेच्छादीनां देवदत्तादावनुभवाभावतो व्यवस्थितमेव ।
असदेतत्- कार्यत्वस्य समवायिकारणप्रभवत्वेन शब्दादावसिद्धेः न पूर्वोक्तप्रक्रिययाऽप्येकद्रव्यत्वसिद्धिः । अत एव शब्दान्तरहेतुत्वाद् न कर्मत्वप्रतिषेधः शब्दस्य, हेतु-दृष्टान्तयोरसिद्धेः । न हि शब्दलक्षणस्य कार्यस्य निराधारस्य सम्भवे व्योम्नः समवायिकारणत्वेन शब्दान्तरहेतुत्वं शब्दस्य वाऽसमवायिकारणत्वेन तद् युक्तम् । न च शब्दप्रत्यक्षताऽन्यथानुपपत्त्या सन्तानकल्पना युक्तिसंगता, तामन्तरेणापि शब्दप्रत्यक्षतोपपत्तेः
प्रतिपादनात्। एकद्रव्यत्वस्य प्रतिषिध्यमानकर्मत्वस्य चेच्छादिष्वध्यक्षतः एव सिद्धौ गुणत्वसमवायाद् गुणरूपताया 10 अपि तत एव सिद्धेरनुमानोपन्यासस्य वैयर्थ्यं स्यात् । न चाऽध्यक्षसिद्धेऽपि गुणत्वयोगे व्यवहारसाधनार्थं
सिद्ध हुआ। अब अनुमान :- शब्द गुण है, क्योंकि कर्मभिन्न होने के साथ एकद्रव्याश्रित है जैसे रूपादि । इस तरह शब्द में गुणत्व सिद्ध हो जाने पर उस को दृष्टान्त करने में दृष्टान्तासिद्धि दोष नहीं है।
प्रश्न :- शब्द में कर्मभिन्नत्व कैसे सिद्ध होगा ?
उत्तर :- शब्द 'कर्म' नहीं है क्योंकि शब्दान्तरका जनक है, जैसे आकाश। शब्द में कार्यत्व और 15 अव्यापकत्व के आधार से शब्दान्तरजनकत्व, सिद्ध करते हैं। देखिये - पूर्वकथनानुसार कार्य
समवायिकारणजन्य होता है। शब्द के प्रति पृथ्वीआदि में समवायिकारणता संगत नहीं है इसलिये आकाश में उस के प्रति समवायिकारणता सिद्ध की गयी है। क्षणिक एवं अव्यापक शब्द का दूर से प्रत्यक्ष तभी हो सकता है जब उस का सन्तान माना जाय। संतान के विना शब्द के प्रत्यक्षत्व की घटना
की नहीं जा सकती। शब्द को शब्दान्तर का जनक नहीं मानेंगे तो सन्तान भी संगत नहीं होगा। 20 इस प्रकार सन्तान के द्वारा शब्दान्तरहेतुत्वसिद्धि, उस के द्वारा कर्मभिन्नत्व की सिद्धि, कर्मभिन्नत्व विशिष्ट
एकद्रव्याश्रितत्व के द्वारा गुणत्व की शब्द में सिद्धि हुई। इस प्रकार इच्छादि में गुणत्व की सिद्धि में न तो कर्मभिन्नत्वविशिष्ट एकद्रव्यत्व हेतु असिद्ध है, न तो गुण दृष्टान्त की असिद्धि है। तथा इच्छादि में कर्मत्व की अनधिकरणता (कर्मत्व के अभाव) का प्रत्यक्ष सर्वजनविदित होने से कर्मभिन्नत्व
सिद्ध ही है। एवं यज्ञदत्त की इच्छादि का देवदत्तादि अन्य किसी को प्रत्यक्षानुभव न होने से इच्छादि 25 में एकद्रव्यत्व यानी यज्ञदत्तादि एक आत्मद्रव्य में आश्रितत्व भी सिद्ध है।
[शब्द में कार्यत्वासिद्धि अतः एकद्रव्यत्वासिद्धि - बौद्ध । बौद्ध :- नैयायिक का यह सब प्रलाप गलत है। पहली बात तो यह है कि शब्दादि में समवायिकारणजन्यत्व रूप कार्यत्व सिद्ध नहीं है। इस लिये पूर्वोक्त नैयायिकप्रक्रिया से शब्दादि में
एकद्रव्याश्रितत्व की सिद्धि आशाविहीन है। यही सबब है कि शब्द में शब्दान्तरहेतुत्व हेतु से कर्मत्व का 30 प्रतिषेध शक्य नहीं। फलतः इच्छादि में कर्मभिन्नत्वविशिष्ट एकद्रव्यत्व हेतु, तथा उस के लिये शब्द का
दृष्टान्त दोनों असिद्ध रह गया। शब्द कार्य के प्रति आकाश में समवायिकारणता की सिद्धि भी अनुचित है क्योंकि शब्द कार्य निराधार हो सकता है। अत एव आकाश दृष्टान्त में शब्दान्तरहेतुत्व भी निरस्त
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