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________________ खण्ड-४, गाथा-१ ३७९ शब्दस्तु प्रतिषिध्यमानकर्मत्वे सत्येकद्रव्यः तस्माद् रूपादिवद् गुणः इत्येवं शब्दस्य गुणत्वसिद्धौ दृष्टान्तसिद्धिर्भवेत् । न चैतत् शब्दगुणत्वसिद्धौ साधनमुपपत्तिमत् । शब्दस्य हि गुणत्वसिद्धौ निराश्रयस्य गुणस्याऽसम्भवादाश्रयभूतेन गुणिना भवितव्यम् पृथिव्यादेश्च तद्गुणत्वनिषेधात् परिशेषादाकाशाश्रयः शब्दः, तस्य चैकत्वं शब्दलिङ्गाऽविशेषाद् विशेषलिङ्गाभावाच्च। ततो गुणत्वसिद्धौ शब्दस्यैकद्रव्यत्वसिद्धिः ततश्च यथोक्तविशेषणाद् गुणत्वसिद्धिरितीतरेतराश्रयत्वाद् न शब्दस्य दृष्टान्तत्वसिद्धिः । 5 ____अथ नानेन प्रकारेणैकद्रव्यत्वं शब्दस्य साध्यते किन्तु कादाचित्कत्वाच्छब्दः कार्यम् कार्यस्य च क्षणिकत्वनिषेधे अनाधारस्यासम्भवात् समवायिकारणेन भवितव्यम् पृथिव्यादेश्च समवायिकारणत्वनिषेधे आकाशस्यैव समवायिकारणत्वम् तस्यैकत्वं पूर्ववद् द्रष्टव्यम्। अत एकद्रव्यत्वं शब्दस्य सिद्धमिति प्रतिषिध्यमानकर्मत्वे एकद्रव्यत्वात् रूपादिवद् गुणः शब्दः सिद्धः इति न दृष्टान्ताऽसिद्धिः । प्रतिषिध्यमानकर्मत्वं च 'शब्दः कर्म न भवति शब्दान्तरहेतुत्वात् आकाशवत्' । शब्दान्तरहेतुत्वं च शब्दस्य कार्यत्वाऽव्यापकत्वाभ्यां 10 वैशेषिकों ने द्रव्य के दो प्रकार कहें हें १-अनेकद्रव्य (यानी अनेक अवयवों में आश्रित) जैसे घटपटादि, २ निर्द्रव्य (द्रव्य में अनाश्रित) जैसे आकाश आदि । शब्द दृष्टान्त की सिद्धि के लिये आप कहेंगे कि 'शब्द कर्मभिन्न होने के साथ एकद्रव्याश्रित होने के कारण (उक्त द्रव्य के दो प्रकार में से एक भी प्रकार शब्द में न घटने से) 'गुण' है जैसे रूपादि'। किन्तु शब्द में गुणत्व की सिद्धि के लिये यह अनुमान असमर्थ है क्योंकि यहाँ अन्योन्याश्रय दोष है। कैसे ? देखिये - शब्द में पहले 15 गुणत्व सिद्ध होना चाहिये तभी शब्द में एकद्रव्याश्रितत्व की सिद्धि हो सकती है। शब्द में गुणत्व सिद्ध रहेगा तो सोचेंगे कि गुण निराश्रित नहीं होता अतः शब्दगुणी कोई आश्रय द्रव्य होना चाहिये। पृथ्वी आदि द्रव्य शब्दगणी नहीं हो सकते अतः परिशेषन्याय से शब्दाश्रयद्रव्य के रूप में आकाश सिद्ध होगा। (ध्यान में रखो शब्द में गुणत्व सिद्ध होने पर ही आकाश की सिद्धि होगी।) तब आकाश में एकत्व भी सिद्ध करना पडेगा (शब्दगुण में एकद्रव्याश्रितत्व की सिद्धि करने के लिये)। वह इस 20 प्रकार :- आकाशमात्र का शब्द ही एक लिङ्ग है शब्द के अलावा और कोई लिंग नहीं है - ऐसा द्रव्य एक (अद्वितीय) ही होता है। अब अन्योन्याश्रय स्पष्ट है, क्योंकि गुणत्व की सिद्धि होने पर उक्त ढंग से शब्द में एकद्रव्याश्रितत्व की सिद्धि होगी और आकाश एकद्रव्य सिद्ध होने पर शब्द में एकद्रव्यत्व के आधार पर गणत्व सिद्ध होगा। इस दोष के कारण शब्द में गुणत्व सिद्धि रुक जाने पर, इच्छादि में गुणत्व साधक अनुमान के (शब्दात्मक) दृष्टान्त की असिद्धि स्पष्ट है। 25 [कादाचित्कत्वहेतुक शब्द में एकद्रव्यत्वसिद्धि - नैयायिक ] नैयायिक :- आप के कथित प्रकार से हम शब्द में एकद्रव्यत्व सिद्ध नहीं करते (जिस से कि अन्योन्याश्रय दोष हो।) हम तो कादाचित्कत्व हेतु से शब्द में एकद्रव्यत्व सिद्ध करेंगे (तब अन्योन्याश्रय नहीं होगा)। प्रक्रिया देखिये - शब्द कार्य है, कार्यमात्र को हम क्षणिक नहीं कहते। जब क्षणिकत्व निषिद्ध है तब निराधार कार्य का सम्भव न होने से उस का समवायिकारण ढूँढना चाहिये। पृथ्वी 30 आदि में शब्द का समवायिकारणत्व घटता नहीं अतः आकाश को ही शब्द का समवायिकारण मानना होगा। उस के एकत्व की सिद्धि तो अभी आपने कहा उसी तरह होगी। इस तरह शब्द में एकद्रव्यत्व Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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