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खण्ड-४, गाथा-१
३७५ एवं यत् पक्षधर्मत्वं ज्येष्ठं हेत्वङ्गमिष्यते। तत् पूर्वोक्तान्यधर्मत्वदर्शनात् व्यभिचार्यते।। पित्रोश्च ब्राह्मणत्वेन पुत्रब्राह्मणतानुमा। सर्वलोकप्रसिद्धा न पक्षधर्ममपेक्षते ।। क्लेशेन पक्षधर्मत्वं यस्तत्रापि प्रकल्पयेत्। न संगच्छेत तस्यैतल्लक्ष्येण सह लक्षणम् ।। यथा लोकप्रसिद्धं च लक्षणैरनुगम्यते। लक्ष्यं हि लक्षणेनैतदपूर्वं न प्रसाध्यते।। इति तदपि प्रत्युक्तम्
यतः किमित्यधस्तान्नदीपूरमुपलभ्योपर्येव वृष्ट्यनुमानं नान्यत्र ? तथा, शिशुरयं ब्राह्मणो मातापित्रोः ब्राह्मण्यादिति किमिति यस्यैव शिशो: ब्राह्मण्यं साध्यं तस्यैव मातापितृब्राह्मण्यलक्षणो धर्मः सम्बन्धी गमको न माता-पितृब्राह्मण्यमात्रम् ? अथ नदीपूरस्योपरिदेशसम्बन्धिनः अन्यसम्बन्धिमातापितृब्राह्मणस्य चाऽगमकत्वादेवमनुमानम् तर्हि नदीपूरो यतः समायातस्तत्रैव वृष्ट्यनुमानं नान्यत्र व्यभिचारात्, तस्य च तत्सम्बन्धित्वनिश्चये गमकत्वं नान्यथा, अनैकान्तिकत्वप्रसक्तेः, एवं च कथं न पक्षधर्मतानिश्चयो हेत्वङ्गम् ? 10 तद् मातापितृब्राह्मण्यस्यापि पक्षधर्मत्वं तन्निश्चयश्च समस्त्येवान्यथा गमकताऽयोगाद्, नात्रापि क्लेशेन पक्षधर्मत्वकल्पना। जो पक्षधर्मत्व को ज्येष्ठ हेत्वंग समझा जाता है वह पूर्वोक्त (उपरिदेश) से अन्य (निम्नदेश) में वृत्ति दिखाई देने से व्यभिचारग्रस्त किया जाता है। मातापिता के ब्राह्मणत्व से पुत्र में ब्राह्मणत्व की अनुमिति सर्वजनप्रसिद्ध है जिस में पक्षधर्मता अपेक्षित नहीं होती।। क्लेशपूर्वक (यानी खिंचातानी कर के) जो 15 वहाँ भी पक्षधर्मता की कल्पना करते हैं उस के लक्ष्य से लक्षण की संगति नहीं बैठती।। लक्षणों के द्वारा जो लोकप्रसिद्ध होता है उस का ही अवबोध कराया जाता है। लक्षण के द्वारा कोई अपूर्व लक्ष्य की निष्पत्ति नहीं की जाती।।
यह पक्षधर्मता की व्यर्थता का कथन निरस्त होने का कारण, ये प्रश्न हैं - निम्नदेश में नदीपूर के देखने से उपरिप्रदेश में ही वृष्टि का अनुमान होता है तो अन्यप्रदेशों में क्यों नहीं होता ? तथा, 20 'यह बच्चा ब्राह्मण है क्योंकि माता-पिता ब्राह्मण है' यहाँ जिस बच्चे का ब्राह्मणत्व सिद्ध करने का
वे के माता-पिता के सम्बन्धी ब्राह्मणत्वरूप धर्म को ज्ञापक बनाते हैं - सिर्फ माता-पिता के ब्राह्मणत्व सामान्य को क्यों नहीं ? यदि आप कहेंगे - “उपरिदेशसम्बन्धि नदीपूर एवं अन्य बच्चे के संबन्धि माता-पिता का ब्राह्मणत्व ज्ञापक नहीं होते इसी लिये निम्नदेशवाले नदीपूर और उसी बच्चे के माता-पिता के ब्राह्मण्य द्वारा अनुमान किया जाता है।” अरे ! तब तो फलितार्थ यही हुआ कि 25 निम्नदेश का नदीपूर जिस देश से बहता आया है वहाँ ही वृष्टि का अनुमान करा सकता है अन्य देश में नहीं, क्योंकि तब व्यभिचार होगा। तात्पर्य, (निम्न देश का भी) नदीपूर उपरिदेश का सम्बन्धितया, निश्चित हो कर ही ज्ञापक बन सकता है, अन्यथा व्यभिचार होगा। यहाँ उपरिदेशसम्बन्धितया नदीपुर का पक्षधर्मतानिश्चय हुआ, तभी तो अनुमान हुआ। फिर पक्षधर्मत्व को हेत्वंगता क्यों नहीं होगी ? इसी प्रकार उसी बच्चे के मातापिता के ब्राह्मणत्व को ज्ञापक मानने पर तबालमाता-पिताब्राह्मणत्व 30 में पक्षधर्मता और उस का निश्चय आवश्यक बन गया, क्योंकि उस के विना ज्ञापकता संगत नहीं होती। इस प्रकार तो विना खिंचातानी के पक्षधर्मता सिद्ध होने पर मानना पडेगा कि यहाँ पक्षधर्मता
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