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सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-२ 'इदानीमिह साध्यधर्मिणि साध्यधर्मः' इति विशेषावगमः तेनाऽप्रतिपन्नविशिष्टदेशादिसम्बन्धिसाध्यार्थप्रतिपादकत्वेनानुमानं नाऽप्रामाण्यमश्नुते । न चान्यदेशादिस्थेन साध्यधर्मेणान्यदेशादिस्था साधनधर्मः सम्बन्धमनुभवति, तेन प्रतिनियतदेशादिविशेषितसाधनप्रतिपत्तिबलादेव प्रतिनियतदेशाधवच्छिन्नसाध्यप्रतिपत्तिरेवानुमानमिति
न पक्षधर्मत्वमन्तरेणानुमानसम्भवः । न च धूममात्राद् वह्निमात्रस्यावगतिरनुमानम् व्याप्तिग्राहकप्रमाणफलत्वात् 5 तस्याः। न च हेतोः पक्षधर्मत्वं 'यत्र साधनधर्मस्तत्र साध्यधर्मः' इति अविशिष्टावगतिमात्रात् सिध्यति,
साध्यधर्मिधर्मतया साधनधर्मस्याऽप्रतीते: सामान्येनाऽभिधानात्, ततो विशष्टदेशाद्यवच्छिन्नसाध्यावगतये पक्षधर्मत्वं प्रदर्शनीयम् । अतः – 'यत्र यत्र धूमः तत्र तत्राग्निः' इत्यनेनैव पक्षधर्मत्वस्योक्तत्वात् प्रदेशविशेषे अग्नि-सिद्ध्यर्थं 'धूमश्चात्र' इति न वक्तव्यम् उक्तार्थत्वात्- इति यदुक्तं तन्निरस्तं द्रष्टव्यम् ।
एतेनैव यदुक्तं कुमारिलेन-- 10 नदीपुरोऽप्यधोदेशे दृष्टः सन्नुपरि स्थिताम्। नियम्यो गमयत्येव वृत्तां वृष्टिनियामिकाम् ।।
वहाँ नहीं होता। विशिष्ट देश-काल अवरुद्ध साध्यार्थ का निरूपण सर्वोपसंहारि व्याप्ति से नहीं होता किन्तु वह अनुमान से होता है अत एव अनुमान में अप्रामाण्य असंगत नहीं रहता है। एकदेशकालवर्ती साधनधर्म भिन्नदेश-कालवर्ती साध्यधर्म के साथ संलग्न नहीं होता। अतः नियत देश-कालवृत्ति साधन
के बोध के बलबुते पर ही नियतदेशादिविशेषित साध्य का भान होता है और वही अनुमान है। 15 फलित हो गया कि साधनधर्म का नियतदेशादिवृत्तित्व यानी पक्षधर्मत्व के विना अनुमान का उत्थान अशक्य है।
केवल धूम से केवल अग्नि का बोध अनुमान नहीं होता, क्योंकि धूम से अग्नि का भान व्याप्तिग्राहकप्रमाण को अधीन है। व्याप्तिग्रह के विना धूम से अग्नि का बोध असंभव है। जहाँ साधनधर्म
होता है वहाँ साध्यधर्म रहता है - इतने सामान्य कोटि के व्याप्तिज्ञान में पक्षधर्मत्व का (सामान्य 20 से) ज्ञान आ गया ऐसा भी नहीं है, क्योंकि इस अवबोध से देश-काल का सामान्यरूप से ही निर्देश
किया गया है जो प्रवृत्ति-उपयोगी नहीं होता। सामान्यनिर्देश में साधनधर्म प्रतिनियत साध्यधर्मी के धर्मरूप में विदित नहीं होता। अतः प्रतिनियत देश-काल से विशिष्ट साध्य का बोध कराना हो तो पक्षधर्मत्व का निर्देश करना जरूरी है।
अत एव शंकाकार ने जो कहा था - 'जहाँ जहाँ धूम वहाँ वहाँ अग्नि - इतने कथन से 25 ही पक्षधर्मत्व निर्दिष्ट हो जाने से, नियत प्रदेश में अग्नि की सिद्धि के लिये ‘यहाँ धूम है' ऐसा पक्षधर्मत्व का निर्देश (उपनय) कहने की जरूर नहीं है' - यह कथन निरस्त हो जाता है।
[कुमारिलमत निरसन के साथ पक्षधर्मत्वसमर्थन ] पक्षधर्मत्व की आवश्यकता के उक्त समर्थन से वह निरस्त हो जाता है जो कुमारिलने कहा है -
निम्नप्रदेश में देखा हुआ नदीपुर (जो कि उपरिप्रदेशरूप साध्यधर्मी (पक्ष) का धर्म नहीं है) 30 उपरि देश में अवस्थित नियामक (नियमतः) जात वृष्टि को अवश्य बोधित करता है। इस प्रक
4. कुमारीलनाम्ना ख्यापिता इमे श्लोका अधुना श्लोकवार्त्तिके नोपलभ्यन्ते । प्रमेयकमल-मार्तण्ड-स्याद्वादरत्नाकरयोः आद्यास्त्रयः प्रमाणमीमांसा-रत्नाकरावतारिकयोः आद्यश्लोकः समुद्धृता दृश्यन्ते - इति भूतपूर्वसम्पादकयोः टीप्पण्याम् ।
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