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________________ खण्ड-४, गाथा-१ ३४९ कार्यानुमानम् । न च कारणदर्शनात् कार्यप्रतिपत्तिः सम्भविनी। तथाहि- कारणात् कार्ये साध्ये यदि कार्यस्य धर्मित्वं तदा तस्याऽसिद्धत्वादाश्रयाऽसिद्धो हेतुः । अथ तस्य सिद्धत्वाद् न धर्म्यसिद्ध्या हेतोराश्रयाऽसिद्धता तर्हि साधनवैफल्यम् कार्यसत्त्वस्य हेतुव्यापारात् प्रागेव सिद्धत्वात् । न च कार्यसत्तायां साध्यायां कारणलक्षणो हेतुर्भावधर्मः सिद्धः, तत्सत्तासिद्धौ हेतोस्तद्धमतासिद्धेः । नाऽप्यभावधर्मोऽसौ, तत्सत्तासाधने तस्य विरुद्धत्वात् । नाऽप्युभयधर्मः, तत्र तस्य व्यभिचारित्वात्, न ह्युभयधर्मो भावमेव प्रतिपादयेत्। उक्तं च - 'नाऽसिद्धे 5 भावधर्मोऽस्ति' (प्र.वा०३-१९१) इत्यादि। किञ्च, कारणात् ‘कार्यमस्ति' साध्ये हेतुळधिकरण: स्यात् । कारणाच्च यदि प्रतिबद्धसामर्थ्यात् कार्यास्तित्वं भाव्यनुमीयते तदाऽनैकान्तिकत्वं हेतोः। तदुक्तम्- ‘नावश्यं कारणानि तद्वन्ति भवन्ति' ( ) प्रतिबन्धवैकल्यसम्भवात् । अथाऽप्रतिबद्धसामर्थ्यात्, तदा तथाभूतकारणदर्शनसमय एव कार्यस्योत्पत्तेरनन्तरसमये तस्याध्यक्षत्वात् प्रतिबन्धाद्यनुस्मरणं व्यर्थम् । यदपि समग्रेण हेतुना कार्योत्पादानुमानं सौगतैरभ्युपगतम् तदपि योग्यतानुमानम्। तथाहि- योग्येयं बीजादिसामग्री प्रतिबन्धवैकल्याऽसम्भवे 10 कोई ऐसा कहें (पूर्वपक्ष) - ‘पूर्व = कारण, वह है जिस का' ऐसा पूर्ववत यानी कार्य - तो इस का फलितार्थ होगा कार्य से कारण का अनुमान, न कि कारण से कार्य का अनुमान। उपरांत, (पूर्वपक्ष चालु) कारणदर्शन से कार्य की उपलब्धि का संभव नहीं है। कैसे यह देखिये - कारण से कार्य की सिद्धि के लिये धर्मी (पक्ष) कौन होगा ? कार्य (जो सिद्ध करने का है अभी सिद्ध नहीं है) को धर्मी करेंगे तो वह असिद्ध होने से हेतु को आश्रयासिद्धि दोष स्पर्शेगा। यदि धर्मी कार्य 15 सिद्ध है अतः 'उस की असिद्धता को दीखा कर आश्रयासिद्धि दोष के प्रदर्शन' को निष्फल बनायेंगे - तो साधन (हेतुप्रयोग) को निष्फलता मिलेगी, क्योंकि उसके प्रयोग के पहले ही कार्य (धर्मी) सिद्ध ही है। कार्य की नहीं किन्तु कार्यसत्ता की सिद्धि यदि कारणात्मक हेतु से अभिलषित है - तो तीन प्रश्न है कि वह हेतु भावधर्मरूप से सिद्ध है ? अभावधर्मरूप से सिद्ध है ? या उभयधर्मरूप से 20 सिद्ध है ? भावधर्मरूप से सिद्ध नहीं हो सकता क्योंकि कार्यसत्ता सिद्ध होने पर ही कारण की भावधर्मता सिद्ध हो सकती है, कार्यसत्ता सिद्ध न होने पर वह कारण कैसे ? यदि हेतु अभावधर्मरूप से सिद्ध रहेगा तो वह कार्य की सत्ता के बदले कार्यसत्ता का विरोधी होने से कार्यसत्ता के अभाव को सिद्ध कर बैठेगा। यदि हेतु भावाभाव - उभय धर्म के रूप में सिद्ध मानेंगे तब तो कभी कार्यसत्ता का, कभी कार्यसत्ताभाव का सहचारी होने से व्यभिचारी बन जायेगा। मतलब कि नियम नहीं होगा 25 कि वह भाव (यानी सत्ता) की ही सिद्धि करे। प्रमाणवार्तिक में भी यही कहा है (३-१९१) कि '(कार्यसत्ता की) सिद्धि के विना भावधर्म भी (सिद्ध) नहीं होता।' [ कारण से कार्य यानी योग्यता का अनुमान ] (पूर्वपक्ष चालु) यह भी विचारणीय है – 'कारण से कार्य होता है' ऐसा साध्य करेंगे तो कारणात्मक हेतु साध्य का व्यधिकरण बन बैठेगा। मतलब, हेतु साध्य का समानाधिकरण नहीं रहेगा, क्योंकि 30 कार्यसत्ता तो कार्य में रहेगी और कारण तो कार्य में रहता नहीं है। यदि प्रतिबन्धित सामर्थ्ययुक्त कारण से भावि कार्यसिद्धि (अस्तित्व) का अनुमान होगा, तो यहाँ हेतु अनैकान्तिक होने से वह शक्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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