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________________ अथ यद्यपि नायना रश्मयोऽध्यक्षतो न प्रतीयन्ते तथाप्यनुमानतः प्रतीयन्ते । अनुमानं च 'तेजो5 रश्मिवत् चक्षु, रूपादीनां मध्ये रूपस्यैव प्रकाशकत्वात् प्रदीपकलिकावद्' इति तद्ररश्मिसत्त्वप्रतिपादकम् नैवं भास्करकरसत्त्वप्रतिपादकं क्षपायामनुमानमस्ति । न, निशायां बहुलान्धकारायां वृषदंशचक्षुर्बाह्यालोकअतः उपलब्धि की योग्यतावाले होने पर भी जब उपलब्ध नहीं होते तब मानना पडेगा कि रश्मियाँ का अस्तित्व नहीं है। यदि कहा जाय रश्मियों का रूप और स्पर्श अनुभूत होने से नेत्र या स्पर्शनेन्द्रिय से उन का उपलम्भ नहीं होता तो प्रश्न होगा कि ऐसा कौन सा अन्य तेजोद्रव्य 10 आपने ढूंढ लिया कि जिसमें रूप और स्पर्श होते हुए भी अनुद्भूत होने से वे द्रव्य उपलब्ध नहीं होते, जिस से कि यहाँ नयन रश्मियों में वैसी कल्पना की जा सके ? [ तेजोद्रव्य में अनुद्भूत रूप एवं स्पर्श की सिद्धि नहीं ] सन्मतितर्कप्रकरण - काण्ड - २ २८२ अथ दृश्यते सतोरपि तैजसरूप-स्पर्शयोनीर- हेम्नोरनुद्भूतिः । न, स्वर्ण- तप्तोदकयोस्तेजस्त्वाऽसिद्धेः, दृष्टानुसारेण चानुपलभ्यमानभावप्रकल्पना: प्रभवन्ति अन्यथा रात्रौ भास्करकराः सन्तोऽपि नोपलभ्यन्ते अनुद्भूतरूपस्पर्शत्वान्नायनरश्मिवदित्यपि कल्पनाप्रसक्तेः । 15 नैयायिक :- अरे भाई ! जलान्तर्गत तेजोद्रव्य का रूप एवं सुवर्ण ( तैजसद्रव्य) का उष्णस्पर्श अनुद्भूत होता है तभी तो उन के भास्वरशुक्ल रूप एवं उष्ण स्पर्श प्रत्यक्ष नहीं होते । सिद्धान्ती :- नहीं । स्वर्ण का तैजस होना एवं तप्त उष्ण जल में तेजोद्रव्य का होना प्रमाणसिद्ध नहीं है। जिन भावों की उपलब्धि नहीं होती उन के लिये किसी निमित्त की कल्पना लोकप्रतीति के अनुसार ही हो सकती है, यानी सुवर्ण कठोरतादि के कारण पार्थिवस्वरूप होने से ही उस में तेजस्त्व नहीं होने पर उष्णस्पर्श भी अनुभूत नहीं होता यह कल्पना लोकप्रतीति अनुसार है, तैजसत्व मान कर उष्णस्पर्श अनुद्भूत होने की कल्पना लोकप्रतीति विरुद्ध है । कोई भी लौकिक व्यक्ति सुवर्ण को तेजोद्रव्यरूप 20 नहीं स्वीकारता, पार्थिवरूप ही स्वीकारता है। लोकप्रतीति के अनुसार नीर में भी नीर के ही उष्णस्पर्श 30 - की अनुभूति होती है, न कि नीर अन्तर्गत अग्नि के उष्णस्पर्श की । अतः लोकप्रतीति अनुसार तप्त जल का ही उष्णस्पर्श गुण माना जा सकता है। तप्तजल में अग्निद्रव्य का प्रवेश और उसके भास्वरशुक्लरूप की अनुभूति नहीं होती इस के विरुद्ध आम आदमी तो यही कहता है कि जल उष्ण है, कोई यह नहीं कहता कि जल अन्तर्गत अग्नि उष्ण है जल के रूप की उपलब्धि तो होती ही है । इस तथ्य 25 की उपेक्षा कर के यदि आप लोकप्रतीतिविरुद्ध कल्पना करने पर तुले रहेंगे तो कोई ऐसी भी कल्पना कर सकेगा कि जैसे नेत्र के किरणों का अस्तित्व होने पर भी उन का रूप अनुद्भूत होने से दिन में दिखते नहीं वैसे ही सूर्य के किरणों का रात्रि में अस्तित्व होने पर भी उन का स्पर्शगुण एवं रूप अनुद्भूत होने के कारण रात को चाक्षुष या स्पार्शन प्रत्यक्ष नहीं होता । [ चक्षुरश्मिसाधक अनुमान का प्रतिबन्ध ] नैयायिक :- हालाँकि प्रत्यक्ष से नयनरश्मियाँ दिखती नहीं है, फिर भी उन का अनुमान लगाया जा सकता है। अनुमानप्रयोग : नेत्र तैजसकिरणालंकृत होते हैं, क्योंकि रूप-रसादि वर्ग में से सिर्फ रूप का ही प्रदर्शन करते हैं, जैसे करता । आपने जो रात्रि में भी दीपकलिका । यह अनुमान नेत्र किरणों का अस्तित्व द्योतित सूर्यकिरणों के अस्तित्व की कल्पना व्यक्त की है वह गलत है Jain Educationa International - - For Personal and Private Use Only — www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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