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________________ २७२ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-२ कुतश्चिनिमित्तात् प्रागभावविशेषणता, तच्च निमित्तं भोजनादिकार्यं भ्रातृकृतम्, तद् भ्रातुरनागतस्य नोपपद्यत इत्यनागमनकाल एव कार्येण बुद्ध्युपस्थापितस्य भ्रातुः श्वस्तनागमनविशिष्टतां प्रतिपद्यते। सद्व्यवहारनिबन्धनं च सत्त्वम् तच्च विधिप्रतिभास एव, अतो विधिप्रतिभासस्वभावत्वान्न निर्विषया प्रतिभा। ___ मा भूत् निर्विषयत्वं तस्याः। तेन त्वर्थेन सह सन्निकर्ष इन्द्रियस्य वाच्यः, इन्द्रियार्थाऽसन्निकर्षजन्य प्रत्यक्षत्वानुपपत्तेः। अत्र केचित् समादधति - 'वो मे भ्राताऽत्र देशे आगन्ता' इति प्रतिभोत्पादाद् देशादेश्चेन्द्रियेण संयोगात् तद्विशेषणत्वाच्च श्वस्तनागमनविशिष्टस्य भ्रातुः संयुक्तविशेषणभावः सन्निकर्षः । एतत् परे नानुमन्यन्ते, विशेषणविशेष्योरेकविषयत्वान्न भ्रात्रा विशेषणेन चक्षुरादे: संनिकर्षः, तदभावाद् (जैसे- खरविषाण में, वन्ध्यापुत्र में।) तो फिर (मीमांसक पूछता है) सही उत्तर दीजिये कि भाव की भाविता (= भाविरूपता) क्या है ? 10 उत्तर :- बुद्धि में भासित होने वाले (भावि अर्थ के) आकार की किसी विशेष निमित्त से प्रयोजित ____ जो प्रागभावविशेषणता (यानी प्रागभावप्रतियोगिता) है वही भाव की भाविरूपता है। प्रश्न :- वह निमित्तविशेष क्या है ? उत्तर :- भाई का भोजनादि कार्य। किसी को याद आ गया कि अग्रिम दिनों में कभी भी मैंने मेरे भाई को भोजन के लिये नौता दिया है, लेकिन अभी तो वह देशान्तर गया हुआ है। बार 15 बार उस की याद आती है। कभी ऐसे ही बैठा है और अचानक प्रतिभा के द्वारा उस को स्फुरणा होती है कि मेरा भाई कल जरूर आयेगा। यह स्वभ्रातृ का अग्रिमदिन में आगमन का प्रतिभाजन्य प्रत्यक्ष बोध होने में अपने भाई का भोजन रूप कार्य स्मरण यानी भ्रातृकृत भोजन निमन्त्रण निमित्त बन गया। अब जो प्रश्न है कि अपने स्मृत भ्राता में अग्रिमदिनागमन वैशिष्ट्य का भान कैसे प्रतिभा के द्वारा हुआ ? उस का उत्तर यह है कि जब तक अपना भाई अनागत है (आया नहीं है) तब 20 तक तो भ्रातृकृत भोजनादि निमित्त सम्पन्न नहीं हो सकता। अतः भाई का जो अनागमन काल (जब तक नहीं आया उस अवधि पर्यन्त काल) है वही काल स्मृत भोजनादि कार्य के निमित से बुद्धिविषयतापन्न भाई की अग्रिमदिनागमनविशिष्टता के रूप में ज्ञात होता है। इस प्रकार अनागमनकाल में प्रागभाव के विशेषणरूप में अग्रिमदिनागमनरूप भाविअर्थ का प्रतिभा से बोध हो सकता है। सत्त्व का मतलब यह नहीं है कि वर्तमानकाल में ही जो विद्यमान हो। किसी भी काल में वस्तुसत्ता (भोजनादि कार्य) 25 के व्यवहार के निमित्तभूत अर्थ भी सत्त्व ही कहलाता है। इस लिये यहाँ भी भावि भोजनादि कार्य का सत्त्व प्रतिभा का विषय बना हुआ है, जो कि विधिरूप में प्रतिभासित होने के स्वभाव से अलंकृत होने से, प्रतिभा को निर्विषयक नहीं माना जा सकता। [ संनिकर्ष के विना प्रत्यक्ष प्रतिभा कैसे ? ] मीमांसक :- प्रतिभा भले निर्विषयक न हो, किन्तु वहाँ भी इन्द्रिय के साथ अर्थ का संनिकर्ष 30 तो होना जरूरी है क्योंकि इन्द्रियार्थसंनिकर्ष से अजन्य ज्ञान में प्रत्यक्षत्व धर्म नहीं रह सकता। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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