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________________ २२८ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-२ तस्मादुदकसरूपा मरीचय एव देशकालादिसव्यपेक्षाः उदकज्ञानं जनयन्ति। तथाहि - सामान्योपक्रम विशेषपर्यवसानं 'इदमुदकम्' इत्येकं ज्ञानम् तस्य सामान्यवानर्थः स्मृत्युपस्थापितविशेषापेक्षो जनकः, तिरस्कृतस्वाकारस्याऽऽगृहीताकारान्तरस्य सामान्यविशिष्टस्य वस्तुनो विपर्ययजनकत्वे तथाविधस्येन्द्रियेण सम्बन्धोपपत्तेः कथं नेन्द्रियार्थसंनिकर्षजो विपर्ययः ?। मरीचिवाले प्रदेश की ओर ही गमन प्रवृत्ति करता है इस से मानना होगा कि वह व्यभिचारि जलज्ञान का विषय मरीचि हैं। यदि उस ज्ञान को मरीचि विषयक न मान कर ‘पूर्वकाल में प्रत्यक्षीकृतजल' विषयक मानें तो ? (मतलब उस ज्ञान को इन्द्रियजन्य मानने के बदले स्मृतिरूप माने तो ?) तो उस जलज्ञान से किस देश में प्रवृत्ति होगी ? पूर्व काल में जहाँ जल प्रत्यक्ष किया होगा उस दिशा में ही प्रवृत्ति होगी, मरीचिवाले देश की ओर प्रवृत्ति नहीं होगी। यदि कहें कि – “देश विषय में 10 भ्रान्ति के कारण वह मरीचिदेश में प्रवृत्ति करता है - तात्पर्य यही है कि जो अभ्रान्त है वह पूर्वानुभूतजल के देश में प्रवृत्ति करेगा, उस को अभ्रान्त ही मानना पडेगा, और जो भ्रान्त है वह संमुखवर्त्ति मरीचिदेश में प्रवृत्ति करता है, उस को भ्रान्त मानना” – तो यह युक्तियुक्त नहीं है, क्योंकि यहाँ मरीचिदेश में प्रवृत्ति करनेवाले को भ्रान्ति मानना गलत है क्योंकि वहाँ पूर्वानुभूतविषय देश की संमुखप्रदेश में भ्रान्ति होने के लिये कोई निमित्त ही नहीं है। (ध्यान में लो कि मरीचियों में जलज्ञान तो भ्रान्ति 15 ही है किन्तु प्रस्तुतदेश में पूर्वानुभूतजलदेश के ज्ञानरूप भ्रान्ति का निरूपण बेबुनियाद है क्योंकि वैसी कोई भ्रान्ति का मूल यहाँ नहीं है।) यदि कहें कि – 'मरीचिदेश में वर्तमान में जो चक्षुइन्द्रियव्यापार है वही उस भ्रान्ति का मूल है' - तो यह गलत है। गलत है मतलब कि वह इन्द्रियव्यापार तथोक्त भ्रान्ति का मूल नहीं है किन्तु व्यभिचारि जलज्ञान में इन्द्रियजन्यत्व को उलटा स्थापित करता है। इसीलिये उस ज्ञान को स्मृतिरूप नहीं कह सकते, क्योंकि स्मृति कभी इन्द्रियजन्य नहीं होती, जब 20 कि यह व्यभिचारीजलज्ञान तो बाह्यइन्द्रियोत्पन्न है। अत एव वह 'स्मृति' नहीं है। प्रश्न :- जलज्ञान में मरीचि का अवभास तो होता नहीं फिर वे उस ज्ञान का विषय कैसे माना जाय ? उत्तर :- अन्वय से। यह पहले कह दिया है कि मरीचिदेश में जो प्रवृत्ति होती है वह चक्षुइन्द्रिय का उस देश के साथ संनिकर्ष होने के बाद होनेवाले जलज्ञान से होती है इस लिये उस ज्ञान के 25 विषय मरीचि हैं यह मानना चाहिये। प्रश्न :- जलरहित देश में जलावभास होता है तो मरीचि के बदले वृक्षादि में क्यों नहीं होता ? उत्तर :- नहीं होता है क्योंकि वृक्षादि का जलादि के साथ वैसा सादृश्य नहीं है। निष्कर्ष, जल सदृश मरीचि ही देश-कालादि सहकार से जलज्ञान को (भ्रान्ति को) जन्म देता है। किस प्रकार से यह समझ लिजिये - प्रारम्भ में सामान्यरूप से मरीचि को देख कर अन्त में जलत्वरूप विशेष के 30 ग्रहण में निष्ठित होने वाला यह जलज्ञान ‘यह जल है' ऐसे आकारवाला उत्पन्न होता है। इस ज्ञान में सामान्यरूप से (तरंगादि द्रव्यादिरूप से) मरीचि रूप अर्थ इन्द्रियसंनिकृष्ट हो कर, स्मृति के द्वारा उपस्थापित विशेषरूप यानी जलत्वरूप से यानी उस के द्वारा सहकृत हो कर ज्ञानोत्पादक बनता है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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