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खण्ड-४, गाथा-१ तत्कारणमभ्युपगम्यत इति नायं दोषः। नन्वत्राप्यभ्युपगमे Aयेन स्वभावेन तत् तदनन्तरभावि कार्यमुत्पादयति तेनैव यदि सुगतज्ञानमिदानीन्तनकालभावि जनयति तदैकस्वभावत्वाद् नित्यादिवत् कार्यक्रमाऽयोगात् पूर्वमेवैतदप्युत्पद्येत। अथ समनन्तरप्रत्ययस्य सुगतज्ञानहेतोरिदानीमेव भावाद् न पूर्वमुत्पत्तिः। असदेतत्यतः आलम्बनकारणं चिरातीतसमयभावि तदैव तत्कार्यमुत्पादयितुं प्रभवति समनन्तरप्रत्ययस्त्विदानीमिति विरुद्धकारणसामर्थ्यानुविधायिनः कार्यस्योत्पत्तिरेव न भवेत् । Bअथान्येन स्वभावेन तर्हि सांशं तत् प्रसज्यत 5 इति तद्ग्राहिणोऽपि ज्ञानस्य सांशकवस्तुग्राहकत्वेन सविकल्पकताप्रसक्तिः। एवं भाविकारणेऽपि वक्तव्यम् । तन्न योगिप्रत्यक्षमर्थसामर्थ्यप्रभवमभ्युपगन्तव्यम् अन्यथा पूर्वोक्तदोषप्रसक्तेः । तच्च तदप्रभवमपि यथा विशदम्अन्यथा प्रत्यक्षत्वानुपपत्तेः- तथा विकल्पज्ञानमर्थसामर्थ्याऽप्रभवमपि यदि विशदं भवेत् तदा को विरोधः ? दोष नहीं होगा।' – तो सर्वज्ञ ज्ञान की पहले ही उत्पत्ति होने का अनिष्ट होगा - Aयदि जिस स्वभाव से चिर अतीत अर्थ अपने उत्तरकालीन सजातीय अर्थ को उत्पन्न करता है उसी स्वभाव से 10 सर्वज्ञज्ञान को भी उत्पन्न करने का मानेंगे, (क्योंकि उस स्वभाव से अपने सजातीय अर्थ तो दूसरे ही क्षण में उत्पन्न हो जाते हैं) तो उसी स्वभाव से उत्पन्न होने वाले वर्तमानकालीन सर्वज्ञज्ञान को पहले ही उत्पन्न होने में विलम्ब क्यों होगा ? जैसे विना क्रम से ही एक साथ सभी कार्यों को उत्पन्न कर देने का अनिष्ट नित्य वस्तु में आप लगाते हैं।
यदि कहें कि - 'वर्तमानकालीन बुद्धज्ञान का समनन्तर प्रत्यय (अपने पूर्वक्षण का प्रत्यय) भी 15 कारण है वह पूर्वकाल में न होने से पूर्वकाल में बुद्ध ज्ञान उत्पन्न हो जाने का अनिष्टापादन निरवकाश है।' - तो यहाँ बुद्ध ज्ञान की अनुत्पत्ति का ही दोष प्रसक्त होगा, क्योंकि चिरभूतकालभावि विषयभूत अर्थ क्षण तो अपने अव्यवहित (भूतकालीन) उत्तरक्षण में ही बुद्धज्ञान को उत्पन्न करने में सजग रहेगा, दूसरी ओर समनन्तर प्रत्यय वर्तमान काल में ही बुद्ध ज्ञान को उत्पन्न करने का आग्रही रहेगा, दोनों की इस स्पर्धा में बुद्ध ज्ञान उत्पन्न ही नहीं हो सकेगा, क्योंकि अपनी उत्पत्ति के कारणभूत चिरातीत 20 विषयक्षण एवं समनन्तर प्रत्यय दोनों प्रतिस्पर्धि हैं, विरुद्ध हैं।
___Bयदि कहें कि – 'चिरातीत विषयक्षण जिस स्वभाव से अपने उत्तरकालीन अर्थक्षण को उत्पन्न करेंगे उसी स्वभाव से नहीं किन्तु अन्यविध स्वभाव से ही वर्तमान में बुद्धज्ञान को उत्पन्न करेगा, तो पूर्वोत्पत्ति का दोष नहीं होगा।' – तो यहाँ निरंश माने गये विषयक्षण में विरुद्ध स्वभावद्वय समावेश से सांशता की विपदा आ पडेगी। फलस्वरूप उस के ग्राहक वर्तमान बुद्धज्ञान भी सांश 25 (चिरातीत अर्थक्षण) वस्तु का ग्राहक होने से सविकल्प बन जाने की विपदा प्रसक्त होगी।
जैसे चिरातीत अर्थक्षण के ग्रहण में ये विपदाएँ प्रसक्त हैं वैसे भावि अर्थक्षण ग्रहण को मानने पर भी ये सब विपत्तियाँ घेरा डालेगी।
निष्कर्ष :- योगी प्रत्यक्ष विशद होने पर भी, अर्थसामर्थ्य से उत्पन्न नहीं होने की बात स्वीकार योग्य ही है। फिर भी स्वीकार करेंगे तो पूर्वोत्पत्ति आदि दोष प्रसक्त होंगे। निश्चित हो गया कि, 30 योगीज्ञान अर्थजन्य न होने पर भी विशद होता है, यदि विशद नहीं मानेंगे तो वह प्रत्यक्ष नहीं होने की आपत्ति है; तब बताईये कि सविकल्प ज्ञान अर्थसामर्थ्यजात न होने पर भी विशद होने में क्या विरोध है ?
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