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खण्ड-४, गाथा-१
१६१ स्कार इति अविकल्पनिश्चयस्तदैव भवेत्, न चैवम्, अतो नाऽविकल्पस्य विकल्पेनैकत्वाध्यवसायः।
किञ्च, 'विकल्पेऽविकल्पकस्यैकत्वेनाध्यारोप' इति कुतो निश्चीयते ? ‘अस्पष्टाऽस्वलक्षणग्राहिणि स्पष्ट-स्वलक्षणग्राहित्वस्य प्रतीतेस्तदध्यारोपावगतिरिति चेत् ? ननु यदि नाम तत्र तत्प्रतीतिः अविकल्पारोपस्तु कुतः ? स्पष्टत्वादेस्तद्धर्मस्य तत्र दर्शनात्' इति चेत् ? 'तद्धर्मः स्पष्टत्वादिः' इत्येतदेव कुतः ? 'तत्र दर्शनात्' इति चेत् ? अत एव विकल्पधर्मोऽप्यस्तु अन्यथाऽविकल्पस्यापि मा भूत् । न च विकल्पव्यति- 5 रेकेणाऽविकल्पमपरमनुभूयते यस्य स्पष्टत्वादिधर्मः परिकल्प्येत । एवमपि तत्र तत्परिकल्पने ततोऽप्यपरमनुभूयमानं विशदत्वादिधर्माधारं परिकल्पनीयमित्यनवस्थाप्रसक्तिः। अथ किञ्चिद् ज्ञानं सविकल्पकम् अपरं निर्विकल्पकम् राश्यन्तराभावात् । विकल्पस्य चार्थसामोद्भूतत्वाऽसंभवाद् न विशदत्वादिधर्मयोगः। अविकल्पविकल्पोत्पत्ति के अनिष्ट के निवारणार्थ एक-दूसरे को प्रतिबन्धक मानने की कल्पना भी निरर्थक ठहरेगी। निष्कर्ष. तथाविध असद आकार को विकल्प का विषय बताने की चेष्टा असंभव के कारण निरर्थक 10 होने से एवं विकल्प का कोई विकल्प्य अर्थ भी असत् होने से - 'दर्शन एवं विकल्प के विषयों का एकीकरण करने में विकल्प सक्रिय बने' - ऐसी प्ररूपणा असंगत ठहरती है। इस लिये विकल्प बलवान् होने का कथन भी निष्फल होने से, विकल्प से अविकल्प का अभिभव कैसे हो सकेगा ? अविकल्प का अभिभव जब शक्य नहीं तब अविकल्पगृहीत का निश्चय भी उसी काल में (विकल्प के साथ) हो जाना चाहिये। किन्तु नहीं होता है इसी से सिद्ध होता है कि अविकल्प का विकल्प 15 के साथ ऐक्य का अध्यवसाय संभवरहित है।
[विकल्प-अविकल्प के ऐक्याध्यवसाय का निश्चायक कौन ? ] यह भी स्पष्ट कहो कि विकल्प में अविकल्प का एकत्व अध्यारोप होता है - यह निश्चय कैसे किया ? यदि उत्तर हो कि - ‘स्वलक्षण को स्पर्श न करनेवाले अस्पष्ट विकल्प में स्पष्टता एवं स्वलक्षणग्राहकता अपने आप तो प्रतीत नहीं हो सकती, अत एव विकल्प में अविकल्प के एकत्व 20 का अध्यारोप सिद्ध हो जाता है।' – यहाँ भी प्रश्न है कि स्पष्टता आदि जो विकल्प में प्रतीत होता है वह अविकल्प के अध्यारोप से ही प्रयुक्त है - इस में क्या प्रमाण ? 'स्पष्टत्वादि अविकल्प के ही धर्म हैं और वे विकल्प में दिखते हैं इसी लिये अविकल्प का अध्यारोप सिद्ध होगा।' - ऐसा उत्तर हो तो यहाँ भी प्रश्न होगा कि स्पष्टत्वादि अविकल्प के ही धर्म हैं - इस का प्रमाण क्या ? 'उस में दिखते हैं इस लिये उस के ही धर्म होंगे' - ऐसे उत्तर पर भी कहना होगा कि 25 इसी न्याय से स्पष्टत्वादि विकल्प में भी दिखते हैं तो वे विकल्प के धर्म क्यों नहीं ? उस में दिखते हैं फिर भी उस के धर्म नहीं मानते तो अविकल्प में उन धर्मों को देखने पर भी उन्हें अविकल्प का धर्म नहीं मानना चाहिये। सच बात तो यह है कि विकल्प को छोड कर दूसरा कोई अविकल्प अनुभवारूढ भी नहीं है जिस का धर्म स्पष्टत्वादि होने की कल्पना की जा सके। अनुभव के विना ही यदि स्पष्टत्वादि धर्मवाले एक अविकल्प की कल्पना करेंगे तो अविकल्प से अतिरिक्त और भी 30 नये नये किसी आधार की कल्पना स्पष्टत्वादि के आश्रयरूप में करते ही जायेंगे तो ऐसी अप्रामाणिक कल्पना का अन्त कहाँ होगा ?
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