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सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-२ साधारणस्याऽस्पष्टस्य स्व-परयोरविद्यमानस्याकारस्य शब्दसंसर्गयोग्यस्य विषयीकरणं निर्विषयत्वम् । न, तस्य तत्र सम्बन्धाभावतो विषयीकरणाऽसम्भवात्। तथापि तद्विषयीकरणे सर्वमपि ज्ञानं तथैव स्वविषयं विषयीकुर्यादिति तदुत्पत्त्यादिसम्बन्धकल्पनमनर्थकमासज्येत।
न च तादात्म्यलक्षणस्तत्र तस्य सम्बन्धः, तदाकारेऽविकल्पकत्वस्य अ(?)विकल्पकत्वे वा तदाकारत्वस्य प्रसक्तेः । 'तदुत्पत्तिसम्बन्धवशात् तेन तद्ग्रहणम्' इत्येतदप्ययुक्तम् तदाकारस्य तज्ज्ञानोत्पादकत्वेन स्वलक्षणत्वप्राप्तेस्तज्ज्ञानस्य सविषयताप्रसक्तिदोषात्। न च स्ववासनाप्रकृतिविभ्रमवशादतदुत्पन्नमतदाकारं च तत् तद्विषयीकरोति, अक्षसमनन्तरविशेषात् अन्यस्याप्युपजातस्य तथा स्वविषयीकरणप्रसक्तेः, सर्वत्र तदाकार-तदुत्पत्तिप्रतिबन्धकल्पनावैयर्थ्यप्रसक्तेः । अतस्तदाकारविषयीकरणाऽसम्भवाद् विकल्प्यार्थाऽभावतो दृश्य
विकल्प्यावेकीकृत्य प्रवर्त्तत इत्ययुक्तमभिधानम् । ततो न बलवान् विकल्पः इति कथं तेनाऽविकल्पतिर10 निर्विकल्प भी आत्मविषयक ही होने से सविकल्प से वह भिन्न नहीं रहेगा, यानी सविकल्प का ही सम्भव रहेगा। किसी भी बोधकर्ता को ऐसी बात मान्य नहीं है।
बौद्ध :- विकल्प निर्विषयक होता है - इस का अर्थ यह है कि - विकल्प का विषय स्व या पर में सर्वथा असत् सिर्फ शाब्दिकसम्बन्धविषयीभूत (यानी मात्र शब्दगोचर) अस्पष्ट सामान्य
(घटत्वादि) होता है। (जो वास्तव में असत् है।) 15 जैन :- यह भी अच्छा नहीं है, विकल्प का उस साधारण असत् पदार्थ से कोई संसर्ग न होने
से वह उसे विषय नहीं कर सकता। विना सम्बन्ध भी अगर विषय करेगा तो सभी ज्ञान उसी प्रकार सभी को अपना विषय करने लगेगा, कर सकेगा। फिर प्रत्यक्षादि के लिये विषय के साथ तदुत्पत्ति आदि सम्बन्धों की कल्पना निरर्थक ठहरेगी। (बौद्ध ऐसा मानता है कि जिस विषय से जो
ज्ञान उत्पन्न होता है वही उस को विषय करता है यानी विषय से ज्ञान की उत्पत्ति यह तदुत्पत्ति 20 संबन्ध ज्ञान का विषय के साथ रहने पर ज्ञान उस को विषय करता है।)
[विषय और अविकल्प में तादात्म्य / तदुत्पत्ति असंगत ] अविकल्प और विषय में तादात्म्य सम्बन्ध भी असंगत है क्योंकि तादात्म्य मानने पर असद् आकार में विकल्पत्व का या विकल्प में असदाकारता का अनिष्ट प्रवेश होगा। यदि कहें कि – “उस
असत् साधारण आकार का विकल्प से तदुत्पत्ति सम्बन्ध होने से विकल्प से उस आकार का ग्रहण 25 होगा' - तो यह भी ठीक नहीं है। तब वह असद आकार ज्ञानोत्पाद रूप अर्थक्रिया-कारक बन
जाने से असद् नहीं किन्तु सद्रूप यानी स्वलक्षणस्वरूप प्रसिद्ध होगा, फलतः उस का विकल्प ज्ञान भी तदाकारविषयक (न कि निर्विषयक) प्रसक्त होगा। यदि कहें कि - ‘विना सम्बन्ध ही वह विकल्प अपनी वासनात्मक प्रकृति के विपर्यय (विभ्रम) से, साधारण आकार से न तो उत्पन्न है, न
साधारणआकारयुक्त है फिर भी उस को विषय करेगा।' – यह भी असंगत है क्योंकि यदि 30 इन्द्रियोत्तरकालीनत्व यानी सिर्फ समनन्तर प्रत्यय विशेष के प्रभाव से ही विकल्प अपने पूर्वकालीन
उक्त आकार को विषय कर सकता है तो इन्द्रियोत्तर कालीन उत्पन्न अन्य अन्य हर कोई विकल्प हर कोई आकार को विषय करने के लिये सक्षम बन बैठेगा। फलस्वरूप, अन्य विकल्पों में तदाकार
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